लोकसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है और सभी दल अपनी तैयारियों में लगे हुए हैं. इन सबके बीच दुनिया के सबसे ज्यादा बाघ रखने वाला एक ज़िला पीलीभीत, बांसुरी के लिए प्रसिद्ध पीलीभीत और गन्ने की मिठास के लिए जाने जाने वाला पीलीभीत इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में है. इस बार यहां तकरीबन साढ़े तीन दशकों के बाद मेनका गांधी और वरुण गांधी के बगैर चुनाव होना है. वरुण गांधी के बगैर क्या ये चुनाव बीजेपी को भारी पड़ेगा या बीजेपी को भारतीय जनता पार्टी (BJP) के इस गांधी परिवार से मुक्ति मिल गई है? ये सियासी चर्चा अब पीलीभीत के चौक चौराहों पर हो रही है. पीलीभीत को मिनी पंजाब भी कहा जाता है, क्योंकि विभाजन के बाद पाकिस्तान से आए सिखों ने इस पीलीभीत को आबाद किया. जंगल काटकर खेत बनाए और इसे धान और गन्ने का कटोरा बना दिया. आज भी यहां बड़े बड़े गुरुद्वारे आपको पंजाब का एहसास करा देंगे.
एक तरफ बाघों के हमले की समस्या है, तो दूसरी तरफ पीलीभीत में धीरे-धीरे चुनावी पारा चढ़ने लगा है. तीनों पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं. वरुण गांधी का टिकट काटकर इस बार बीजेपी ने जितिन प्रसाद को अपना प्रत्याशी बनाया है. अपना नामांकन करने के बाद जितिन प्रसाद ने जो चुनावी सभा की, उसमें सिखों और मुसलमानो के चेहरे भी दिखाई दे रहे थे. इसका मतलब साफ है कि जितिन प्रसाद कांग्रेस के दौर की अपनी विरासत को समेट कर चुनाव में उतर रहे हैं. चुनावी संभावनाओं को लेकर जितिन प्रसाद ने खास बात की और कहा कि इसबार पीएम मोदी की आंधी चल रही है. वरुण कद्दावर नेता रहे हैं लेकिन चुनाव किसे लड़ना है, ये पार्टी तय करती है.
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हालांकि टिकट नहीं मिलने पर भी वरुण गांधी ने चुप्पी साध रखी है और बीजेपी से बगावत नहीं की. लेकिन पीलीभीत वासियों के नाम अपना मार्मिक पत्र जरूर लिखा है. इसमें उन्होंने कहा कि वे पीलीभीत के लोगों के लिए आखिरी वक्त तक खड़े रहेंगे. जितिन प्रसाद कहते हैं कि पार्टी का नेतृत्व वरुण के लिए भी सोच रहा होगा कि उनका इस्तेमाल किस रूप में करना है. पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी दावा कर रहे हैं कि वरुण के लोग वरुण गांधी की सहमति से समाजवादी पार्टी को जिताने मे जुट गए हैं. इधर बीएसपी ने इस चुनाव में जिले के अपने सबसे मजबूत चेहरे अनीस अहमद उर्फ फूल बाबू को उतारा है. बीएसपी का मानना है कि वरुण गांधी का नहीं होना उसे फायदा देगा और मुसलमान दलित और लोधी राजपूत का समीकरण उसके पक्ष में जाएगा.
2919 में एसपी-बीएसपी मिलकर लड़ी थी तो भी वरुण ढाई लाख वोटों से जीते थे. इसबार दोनों के पार्टियां अलग हैं, ऐसे में बीजेपी और बड़ी जीत की उम्मीद कर रही है. दरअसल वरुण गांधी बीजेपी के होकर भी पीलीभीत में कभी बीजेपी के नहीं रहे. पिछले 5 साल तो वरुण गांधी अकेले विपक्ष की भूमिका में रहे. बीजेपी के संगठन, कार्यकर्ता, झंडा, बैनर, पोस्टर, मीटिंग आदि सभी गतिविधियों से दूर रहे. खुलेआम बीजेपी के स्थानीय नेताओं की आलोचना करते रहे. बीजेपी के नेता यूं तो वरुण के खिलाफ कुछ नहीं बोल रहे लेकिन जितिन के प्रत्याशी बनाए जाने से बेहद खुश हैं. पीलीभीत में पत्रकारों की मानें तो वरुण का टिकट काटने से बीजेपी की जीत की संभावनाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा. उल्टे पीलीभीत के लोगों को वरुण और मेनका से निज़ात मिल गई है.
सिख किसान पीलीभीत की रीढ़ कहे जाते हैं. यहां गन्ने की खेती और चीनी मिलों की भरमार है. गन्ने से लदे ट्रेक्टर और ट्रॉली दिखाई देने लगे तो समझ लें कि पीलीभीत शुरू हो चुका है. ये चीनी का कटोरा भी माना जाता है. जब किसान आंदोलन हुआ तो पीलीभीत के किसानों की बड़ी भूमिका थी और वरुण गांधी किसान आंदोनल में पार्टी के खिलाफ किसानों के साथ खड़े दिखाई दिए थे. सिखों का वोट किधर जाएगा, ये अहम है क्योंकि सिख यहां के बड़े वोटबैंक हैं. हालांकि जितिन की सभा में सिखों की तादाद दिखाई दे रही है. सिख बिरादरी वरुण और मेनका को हमेशा से वोट करती रही है. ऐसे में उन्हें वरुण के टिकट कटने का मलाल तो है, लेकिन उनके वोट अब एकमुश्त की बजाय बंट जाएंगे.
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पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र की आबादी 25 लाख के आस पास है और वोटर 18 लाख से ज्यादा हैं. जातिगत आकड़ों पर नजर डालें तो 5 लाख के आसपास मुस्लिम, लोध, किसान 3 से 4 लाख के बीच और कुर्मी वोट लगभग 2 लाख है. वरुण गांधी को लेकर तरह-तरह के कयास लगने लगे हैं. ऐसे में यह सीट सबसे चर्चित सीटों में एक है. वरुण गांधी ने पिछली बार तकरीबन ढाई लाख वोटों से ये सीट जीती थी. अब जितिन प्रसाद क्या जीत के इस लीड को बढ़ा पाते हैं या फिर बीजेपी यह सीट गंवा देती है, इस पर सबकी नजर रहेगी. (कुमार अभिषेक की रिपोर्ट)
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