देश के उत्तर पूर्वा राज्यों में ऊगाई जाने वाले मखीर अदरक को अब बढ़ावा देने की कोशिश की जा रही है. साल 2021 की पद्मश्री अवार्ड विजेता त्रिनिती साइउ मखीर अदरख को प्रोत्साहित करने का कार्य कर रही है. इससे पहले त्रिनिती ने मेघालय के लाकाडॉंग हल्दी उत्पादक किसानों की खूब मदद की थी. मखीर अदरख में एक खास तीखापन होता है और इसमें खूब सारे औषधीय गुण होते हैं. अपने अथक प्रयास से मेघालय की हल्दी को एक खास पहचान दिलाने वाली पद्मश्री विजेता त्रिनिती साइउ ने कहा की मखीर हल्दी के खास गुणों के कारण राज्य में इसकी खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है औऱ किसानों को इसकी खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.
बिजनेसलाइन के अनुसार मुंबई में आयोजित ग्लोबल टर्मरिक कॉन्फ्रेंस में पद्मश्री विजेता ने बताया कि मेघालय में प्रमुख तौर पर दो प्रकार के अदरक पाए जाते हैं. जो अपने खास गुणों के चलते काफी मशहूर हैं. इन दो में से एक मखीर अदरक है जबकि दूसरे का नाम नादिया है. छोटे आकार की इस हल्दी का उपयोग करने से अत्यधिक स्वास्थ्य लाभ होता है. उन्होंने कहा कि वो लोग पश्चिम पूर्वी खासी पहाड़ी जिले में हल्दी की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए कार्य कर रहे हैं. इसका फायदा यह होगा कि जो लोग रैट होल माइनिंग (Rat Hole Mining) करते हैं उन्हें रोजगार का एक स्थायी विकल्प मुहैया कराया जा सके जो पर्यावरण के लिए भी नुकसानदायक नहीं हो.
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पश्चिमी जयंतिया पहाड़ी क्षेत्र के मूलिया गांव की निवासी पद्मश्री त्रिनिती पिछले दो दशकों से जिले राज्य में हल्दी की खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कार्य कर रही है. हल्दी को लेकर किये गए कार्य के लिए वह टर्मरिक त्रिनिती के नाम से मशहूर हैं. उनके माता पिता भी मसालों की खेती करते थे. उनके कार्यों को देखते हुए मसाला बोर्ड उनसे अधिक से अधिक किसानों को हल्दी की खेती कराने के लिए उनसे मदद ले रहा है. इस हल्दी के कई औषधिय गुण हैं खास कर इसमें काफी अधिक मात्रा में इनटॉक्सीडेंट होते हैं. दरअसल सामान्य हल्दी में पाए जाने वाले कर्कमीन की मात्रा तीन प्रतिशत होती है, जबकि मेघालय की हल्दी में इसकी मात्रा आठ प्रतिशत होती है.
त्रिनिती ने वहां की अनपढ़ महिलाओं के बीच हल्दी की खेती को बढ़ावा देने के लिए उन्हें लाकाडॉंग किस्म की हल्दी की खेती के लिए अनुदान भी दिलवाया. इस काम में उन्हें अधिक परेशानी नहीं हुई क्योंकि वह खुद एक स्वयं सहायता समूह की अगुवाई कर रही थी जो कृषि विकास परियोजना के तहत अंतराष्ट्रीय स्तर पर वित्त पोषित है. उन्होंने लाकाडॉंग हल्दी की खेती के लिए 2023 में 10 किसानों के साथ शुरुआत की थी आज उनके पास 1000 से अधिक किसान हैं. इसके अलावा 36 गांवों में 100 से अधिक स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया है. त्रिनिती छह बच्चों की मां है और एक प्राइमरी स्कूल में शिक्षक है जो स्कूल के बाद और छुट्टी के दिनों में किसानों से मिलती है औक उन्हें अनुदान दिलाने के लिए उनके फार्म भरती है.
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त्रिनिती की हल्दी की खेती प्रयासों को तब सफलता मिली जब एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत पश्चिमी जयंतिया हिल से लाकाडॉंग हल्दी का चयन किया गया. उन्होंने ना सिर्फ हल्दी की इस वेरायटी की खेती करने लिए किसानों को तेयार किया और मदद की बल्कि स्थानीय महिला किसान संघ के जरिए इसके कारोबार को भी बढ़ावा दे रही है. आज उनके प्रयास का ही नतीजा है कि कभी स्थानीय बाजारों में बिकने वाली हल्दी आज देश भर के बाजारों में बिक रही है. आज महिलाओं का समूह हल्दी की प्रोसेसिंग भी कर रही है. जो इस बात का ध्यान रखती है कि इसमें दूसरे किस्म की हल्दी की मिलावट नहीं हो. आज यह सूमह 50,000 टन से अधिक लाकाडॉंग हल्दी का कारोबार कर रही है.
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