भारत में नवंबर से जनवरी तक अल-नीनो सक्रिय रहने वाला है. इस दौरान मौसम में कई बदलाव देखे जा सकते हैं. इस बारे में दुनिया की अलग-अलग एजेंसियों ने जानकारी दी है. मौसम एजेंसियों ने बताया है कि नवंबर से जनवरी तक अल-नीनो अपने पूरे प्रभाव में रहेगा. हालांकि इसमें एक अच्छी बात ये बताई गई है कि अल-नीनो का प्रभाव उतना नहीं दिखेगा जितना खतरनाक बने रहने की आशंका जताई जा रही है. इसकी वजह है इंडियन ओशन डाइपोल यानी कि IOD. आईओडी भी अल-नीनो की तरह मौसम का बदलाव है, लेकिन दोनों का काम अलग-अलग है. आईओडी अगर पॉजिटिव हो तो अल-नीनो के असर को कम करता है.
अमेरिका सहित कई देशों की मौसम एजेंसियों ने बताया है कि दुनिया के अलग-अलग इलाकों में अल-नीनो का प्रभाव देखा जा सकता है, लेकिन भारत के लिए राहत की खबर है. भारत में पॉजिटिव आईओडी की वजह से अल-नीनो का असर कम रह सकता है. अल-नीनो से एशिया में सूखा और कम बारिश दर्ज की जाती रही है. भारत में भी इसका असर दिखा है जब जून और अगस्त में दक्षिण पश्चिम मॉनसून की बारिश इसी अल-नीनो की वजह से कम हुई थी.
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एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जब नवंबर में भारत में अल-नीनो अपने शबाब पर होगा तो पॉजिटिव आईओडी उसके असर को कम करेगा. रिपोर्ट के मुताबिक, 08 अक्टूबर के बाद से भारत में पॉजिटिव आईओडी सक्रिय है जिसका बेहतर असर आगे तक देखा जाएगा. अधिकांश मौसम एजेंसियों ने बताया है कि पॉजिटिव आईओडी दिसंबर अंत तक सक्रिय रहेगा जिससे दुनिया के कुछ हिस्सों में बारिश की मात्रा घटेगी, जबकि भारत में इसके सकारात्मक असर देखने को मिलेंगे. पॉजिटिव आईओडी अल-नीनो के असर को कम करेगा जिससे कम बारिश होने की संभावना जाती रहेगी.
दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों में जहां पॉजिटिव आईओडी के चलते बारिश की कमी होगी, वहीं भारत के कई हिस्सों में अच्छी बारिश दर्ज की जा सकती है, खासकर दक्षिण भारत में. भारत के संदर्भ में आशंका जताई जा रही थी अल-नीनो के सक्रिय होने से ठंड में कमी हो सकती है. लेकिन जब पॉजिटिव आईओडी सक्रिय होगा तो अल-नीनो का प्रभाव घटेगा और सर्दी पर कोई विपरीत असर दिखने की संभावना कम होगी.
अल-नीनो का असर पूरी दुनिया पर देखा जा रहा है जिसके पीछे क्लाइमेट चेंज भी एक वजह है. इससे पूरी दुनिया के तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है और मौसम के पैटर्न में खतरनाक बदलाव देखे जा रहे हैं. कहीं बाढ़ तो कहीं बेमौसमी बारिश तो कहीं ओलावृष्टि तो कहीं वज्रपात. इसके पीछे क्लाइमेट चेंज और अल-नीनो को जिम्मेदार माना जा रहा है. इसने खेती के पैटर्न को भी प्रभावित किया है क्योंकि जब फसलों के बढ़ने और पकने का समय आता है तो उस वक्त बारिश हो जाती है. या जब फसलों को कम तापमान की जरूरत होती है तो उसमें अचानक तेज वृद्धि हो जाती है. इससे फसलों की पैदावार घट रही है.
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