धान खरीद में 30 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया, 16 करोड़ रुपये का नुकसान, 74 लोग इसमें शामिल!

धान खरीद में 30 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया, 16 करोड़ रुपये का नुकसान, 74 लोग इसमें शामिल!

यह घोटाला एक बड़ी धोखाधड़ी का मामला है, जिसमें कई अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से सरकारी धन का घोटाला किया गया. प्रशासन ने इस घोटाले की जांच तेजी से की है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की योजना बनाई है. इस मामले से यह साफ होता है कि सरकारी सिस्टम में पारदर्शिता और सख्त निगरानी की जरूरत है, ताकि ऐसे घोटाले न हो सकें.

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धान खरीद में 30 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया, 16 करोड़ रुपये का नुकसान, 74 लोग इसमें शामिल!धान घोटाला मामला आया सामने

जबलपुर जिले में धान खरीदी और ढुलाई में 30 करोड़ रुपए का घोटाला सामने आया है, जिसमें नागरिक आपूर्ति निगम के जिला प्रबंधक समेत कुल 74 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. जांच के बाद जिला प्रशासन ने सात अलग-अलग थानों में धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज कराई है. इन आरोपियों में 17 मिल मालिक, निगम के प्रभारी जिला प्रबंधक समेत 13 कर्मचारी और सोसायटी व खरीदी केंद्र के 44 कर्मचारी शामिल हैं.

कैसे हुआ घोटाला?

इस घोटाले का खुलासा तब हुआ जब रिकॉर्ड्स की जांच के दौरान कई मामले सामने आए. रिकॉर्ड्स में पाया गया कि सैकड़ों क्विंटल धान हल्के मोटर वाहनों और कारों में लाया गया, जबकि हकीकत में धान खरीदा ही नहीं गया. अधिकारियों ने फर्जीवाड़ा करके धान की ढुलाई दिखाई.

घोटाले की गहरी जांच

जिला कलेक्टर दीपक सक्सेना के अनुसार, जांच के दौरान यह सामने आया कि मिलर्स ने अंतरजिला मिलिंग के लिए उठाया गया धान स्थानीय दलालों को बेचा. इसके बाद, अपर कलेक्टर ग्रामीण नाथूराम गोंड की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति गठित की गई. समिति ने पाया कि निगम पोर्टल पर 324 डीओ (डिलीवरी ऑर्डर) जारी किए गए थे, जिसमें प्रत्येक डीओ में 433 क्विंटल धान का हिसाब था, जो कुल मिलाकर लगभग 14,000 मीट्रिक टन धान बनता है.

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इसके बाद धान की आपूर्ति वाहनों द्वारा 614 ट्रिप्स में की गई. जब इन वाहनों के रजिस्ट्रेशन की जांच की गई, तो यह पाया गया कि इन वाहनों में से 571 ट्रिप्स टोल टैक्स से बाहर निकलीं, जिनमें से 307 ट्रिप्स तो कारों और हल्के लोडिंग वाहनों की थीं. इसके अलावा, रजिस्ट्रेशन नंबर भी फर्जी पाए गए.

नकली धान खरीद का खुलासा

साथ ही, यह भी सामने आया कि 7,200 मीट्रिक टन धान को ऑनलाइन पोर्टल पर खरीद के रूप में दिखाया गया, जबकि वास्तव में कोई खरीदी नहीं हुई थी. इस घोटाले के कारण लगभग 16 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. इसके अलावा, मिलिंग के लिए उठाए गए लगभग 13,000 मीट्रिक टन धान का घोटाला हुआ, जिसकी कीमत करीब 30 करोड़ रुपये है.

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आरोपियों पर की जा रही कार्रवाई 

इस घोटाले में शामिल सभी आरोपियों पर कार्रवाई की जा रही है. जिला प्रशासन ने सात अलग-अलग थानों में एफआईआर दर्ज कराई है और दोषी अधिकारियों, कर्मचारियों, सोसायटी और खरीद केंद्र के नोडल अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू की है. इसके अलावा, मिल मालिकों के लाइसेंस और अनुबंधों को काली सूची में डालने के साथ ही उनकी बैंक गारंटी को जब्त करने का प्रस्ताव सक्षम प्राधिकरण को भेजा गया है.

यह घोटाला एक बड़ी धोखाधड़ी का मामला है, जिसमें कई अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से सरकारी धन का घोटाला किया गया. प्रशासन ने इस घोटाले की जांच तेजी से की है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की योजना बनाई है. इस मामले से यह साफ होता है कि सरकारी सिस्टम में पारदर्शिता और सख्त निगरानी की जरूरत है, ताकि ऐसे घोटाले न हो सकें.

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