झारखंड में जमीन हमेशा से ही एक विवादित मुद्दा रहा है. जहां एक तरफ सरकार सीएनटी और एसपीटी एक्ट का हवाला देते हुए आदिवासी, मूलवासी और किसानों की जमीन की रक्षा की बात करती है, वही दूसरी तरफ विभिन्न विकास परियोजनाओं के नाम पर झारखंड में लाखों एकड़ जमीन अधिग्रहित करके उस पर सदियों के काबिज किसानों को ठेंगा दिखाया जा रहा है. हम बात कर रहे हैं झारखंड में गैरमंजूरवा खास किस्म के जमीन की. ऐसे तो झारखंड में जमीनों को अलग-अलग श्रेणियों में बाटा गया है जिनमें से गैरमंजूरवा भी एक प्रकार है. इस प्रकार की जमीन पर यहां के किसानों, मूलवासियों और आदिवासीयों का सदियों से दखल रहा और इस जमीन को इन्हीं के पूर्वजों ने जंगलो की सफाई करके खेती योग्य बनाया है.
समय बीतने के बाद सरकार ने इस जमीन पर 2012 तक लगान भी लिया गया है और रसीद भी काटी गई है. पर 2012 में बिना कोई कारण बताए सरकार ने उन जमीनों की रसीद काटना बंद कर दिया और लगान भी लेना बंद कर दिया. मामले को लेकर झारखंड के तमाम किसान अंचल कार्यालय से लेकर भू एवं राजस्व मंत्रालय तक दौड़ लगाते रहे, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई. झारखंड हाईकोर्ट ने इस मामले में प्राप्त हुए विभिन्न मामलों पर संज्ञान लेते हुए सरकार को स्पष्ट आदेश दिया कि गैरमंजूरवा खास किस्म की वैसी जमीन जिसमें किसान 1944 से पहले दखलकार हैं और जिन जमीनों पर 2012 तक लगान वसूला गया, वैसी जमीनों पर अविलंब किसानों को मालिकाना हक बहाल किया जाए. साथ ही दखलकार किसानों को उक्त जमीन की रसीद उपलब्ध कराते हुए नियमित किया जाए.
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इस मामले पर झारखंड किसान महासभा के उपाध्यक्ष संतोष महतो ने बताया कि गैरमंजूवा खास की जमीन को लेकर सरकार और अधिकारी झारखंड के किसानों को लगातार गुमराह कर रहे हैं. यहां की सरकार जल, जंगल, जमीन की बात तो करती है लेकिन किसानों को उनकी अपनी ही जमीन से बेदखल करके भूमिहीन किया जा रहा है. हाल ही में भारतमाला परियोजना के तहत और एनटीपीसी की विभिन्न परियोजनाओं के तहत पूरे झारखंड में हजारों किसानों से गैरमंजूरवा खास किस्म की जमीन अधिग्रहित की गई और मुआवजे के नाम पर उनको ठेंगा दिखा दिया गया. जबकि गैरमंजूरवा खास किस्म की जमीन पर मालिकाना हक को लेकर हाईकोर्ट का किसानों के पक्ष में स्पष्ट आदेश है. लेकिन मंत्रालय से लेकर अधिकारियों के स्तर तक भ्रष्टाचार के कारण यहां के किसानों से उनकी जमीन लूटी जा रही है.
झारखंड किसान महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष पंकज राय ने बताया कि चुनाव अब खत्म हो चुके हैं और किसान जमीन के मुद्दे को लेकर गोलबंद हो रहे हैं. जून अंतिम सप्ताह से पूरे झारखंड में किसानों का महाजुटान किया जाएगा और गैरमंजूरवा खास जमीन की हो रही सरकारी लूट को लेकर किसान आंदोलन की रूपरेखा तैयार करेंगे. पंकज राय ने बताया कि इस मामले पर जेबीकेएसएस (झारखंड भाषा खतियान संघर्ष समिति) के प्रमुख युवा क्रांतिकारी नेता टाइगर जयराम महतो का भी समर्थन रहेगा जिससे किसानों का यह आंदोलन व्यापक रूप ले सकता है. बता दे कि 2024 में ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसी परिस्थिति में आंदोलन के लिए गोलबंद हो रहे किसानों को लेकर सरकार क्या नीति अपनाती है, यह देखने वाली बात होगी.
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बोकारो जिले के पेटरवार प्रखंड अंतर्गत लेपो गांव के किसान सहदेव महतो ने बताया कि उनके गांव से भारत माला प्रोजेक्ट के तहत दो सड़कें गुजर रही हैं. इनमें कोलकाता-बनारस और रांची-धनबाद रोड है. दोनों ही सड़कों का क्रॉसिंग लेपो गांव में पड़ रहा है. गांव में लगभग 75-80 डिसमिल इस सड़क परियोजना के लिए ली जा रही है जिसमें 60 एकड़ रैयती जमीन है और लगभग 20 एकड़ गैरमंजूरवा खास जमीन है. लेपो के पास के ही बूढ़नगोड़ा उर्फ मूंगाल सरला गांव की लगभग 80 एकड़ जमीन सड़क में गई है.
इसमें 40 एकड़ रैयती और 40 एकड़ गैरमंजूरवा खास जमीन है. सहदेह महतो ने कहा कि उनके परिवार की ढाई एकड़ जमीन गई पर इसके लिए उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिला है. जबकि रैयती जमीन के लिए 12 हजार और 14 हजार रुपये का मुआवजा मिला है. पूरा पैसा भी नहीं मिला. किसानों का कहना है कि बाजार भाव से कम कीमत पर किसानों से जमीन ली जा रही है. उन्होंने कहा कि 2012 तक गैरमंजूरवा खास जमीन का रसीद काटा पर अब नहीं कट रहा है. इसके लिए उन्होंने कई जगहों पर आवेदन दिया है पर कोई सुनवाई नहीं हुई है. इसलिए आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं.
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