अब कॉफी उत्पादकों की मजदूरी लागत हो जाएगी कम! आईआईटी खड़गपुर बना रहा हार्वेस्टर मशीन, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

अब कॉफी उत्पादकों की मजदूरी लागत हो जाएगी कम! आईआईटी खड़गपुर बना रहा हार्वेस्टर मशीन, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर कॉफी की कटाई करने के लिए एक ऐसी मशीन बना रहा है जो कॉफी उत्पादक किसानों की मजदूरों पर निर्भरता को लगभग 50-60 प्रतिशत तक कम कर सकता है. वहीं कॉफ़ी बोर्ड ने पारंपरिक कॉफ़ी उगाने वाले राज्यों कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के लिए एक राष्ट्रीय पुनर्रोपण नीति/national replantation policy का प्रस्ताव दिया है.

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अब कॉफी उत्पादकों की मजदूरी लागत हो जाएगी कम! आईआईटी खड़गपुर बना रहा हार्वेस्टर मशीन, पढ़ें पूरी रिपोर्ट आईआईटी खड़गपुर

कॉफी बोर्ड के सीईओ और सचिव केजी जगदीशा ने बुधवार को कहा कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर कॉफी की कटाई करने के लिए एक ऐसी मशीन बना रहा है जो कॉफी उत्पादक किसानों की मजदूरों पर निर्भरता को लगभग 50-60 प्रतिशत तक कम कर सकता है. दरअसल बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, कुन्नूर में यूनाइटेड प्लांटर्स एसोसिएशन ऑफ साउथ इंडिया (उपासी) के सदस्यों को संबोधित करते हुए, केजी जगदीशा ने कहा कि कटाई मशीन का प्रोटोटाइप भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप बनाया गया है. मालूम हो कि भारत में कॉफी की खेती बड़े पैमाने पर पहाड़ी इलाकों में छाए में होती है, जहां पर मशीनों के सहारे खेती और फसल प्रबंधन करना किसानों के लिए हमेशा से एक चुनौतीपूर्ण काम रहा है.

कॉफी उत्पादकों की प्रमुख चुनौतियां

बढ़ती मजदूरी लागत और मजदूरों की कमी हाल के वर्षों में कॉफी उत्पादकों के लिए प्रमुख चुनौतियां बनकर उभरी हैं. उन्होंने कहा कि कॉफी की खेती की लागत में मजदूरी लागत लगभग 65 प्रतिशत होती है. लागत कम करने और उपज की कीमतों में सुधार होने से उत्पादकों को कॉफी की खेती से अच्छी आमदनी होगी.

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केजी जगदीशा ने कॉफी उत्पादकों को आराम क्षेत्र से बाहर आने और अगले पांच वर्षों में पुरानी झाड़ियों को बदलने के लिए मशीनीकरण अपनाने के लिए भी प्रोत्साहित किया. उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा कदम है जो पैदावार को बढ़ा सकता है. किसी एस्टेट में कॉफी का लगभग 90 प्रतिशत उत्पादन 40 प्रतिशत पौधों से होता है, जबकि बाकी 60 प्रतिशत पौधे, जो 40-50 साल के हैं, कम उपज दे रहे हैं क्योंकि वे बहुत पुराने हो चुके हैं. अरेबिका के पौधों में 40 वर्ष के बाद और रोबस्टा में 50 साल के बाद पैदावार कम होने लगती है. उन्होंने आगे कहा कॉफी बोर्ड ने पारंपरिक कॉफी उगाने वाले राज्यों कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के लिए एक राष्ट्रीय पुनर्रोपण नीति का प्रस्ताव दिया है, जिसे सरकार की मंजूरी का इंतजार है.

'गुणवत्ता में सुधार के लिए अधिक समय निवेश करें'

यह कहते हुए कि भारतीय कॉफ़ी सर्वोत्तम हैं, जगदीशा ने कॉफी उत्पादकों से कॉफ़ी की गुणवत्ता में सुधार के लिए अधिक समय और प्रयास करने को कहा. भारतीय कॉफ़ी के लिए एक ब्रांड बनाने पर, कॉफ़ी बोर्ड के सीईओ ने इंडस्ट्री के लोगों से कहा कि यह प्रयास सभी के द्वारा होना चाहिए. उन्होंने कहा, “हम सभी को एक साथ आने की जरूरत है. भारतीयों को हमारी कॉफी के बारे में खुलकर बात करनी चाहिए.” 

मालूम हो कि कॉफी का पांचवां सबसे बड़ा निर्यातक भारत 25 से 28 सितंबर तक बेंगलुरु में विश्व कॉफी सम्मेलन (डब्ल्यूसीसी 2023) का आयोजन कर रहा है, जिसमें 2,000 से अधिक प्रतिनिधियों के भाग लेने की उम्मीद है. इस कार्यक्रम में वैश्विक खरीदारों के सामने भारतीय कॉफी पेश किए जाने की उम्मीद है.

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