हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है. यह के एक किसान परिवार ने अपने पूर्वजों द्वार जमीन को गिरवी रखने के 125 साल बाद उसे वापस पाने के लिए कानूनी लड़ाई शुरू की. अब उस परिवार को इस कानूनी लड़ाई में जीत मिल गई है और उसे 1.6 एकड़ जमीन पर 125 साल बाद फिर से कब्जा मिलने वाला है. खास बात यह है कि इस किसान परिवार के पूर्वज ने जून 1899 में जमीन को महज 90 रुपये में गिरवी रखी थी.
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में एक किसान बीरू ने 17 जून, 1899 को अपने हिस्से की आधी जमीन प्रभु के परिवार को गिरवी रख दी थी. बंधक के कागजात के अनुसार, जमीन से होने वाली कमाई से ऋण पर ब्याज और देय राजस्व का भुगतान किया जाएगा. वर्ष 1900 में देय भू-राजस्व 2 रुपये 9 आने था. इसके अलावा, बंधक विलेख में ब्याज की दर का कोई निर्धारण नहीं था. वहीं, संपत्ति को छुड़ाने के लिए विलेख में कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई थी.
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वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका की अदालत में, मूल भूमि मालिक के उत्तराधिकारियों ने अपने वकील के माध्यम से कहा कि भूमि का कब्ज़ा पिछले 125 वर्षों से गिरवी रखने वालों के पास है और वे बिना हिसाब-किताब दिए अधिशेष संग्रह का आनंद ले रहे हैं. 4 अप्रैल को सुनाए गए आदेश में, खेमका ने कहा गिरवीदार अग्रिम ऋण के बदले 1.6 एकड़ (13 कनाल और 2 मरला) में फैली भूमि पर खेती के कब्जे का आनंद ले रहे हैं. आदेश में कहा गया है कि बंधकधारियों द्वारा अधिशेष लाभ और मूल ऋण-राशि के विरुद्ध उसके आवेदन को दर्शाने वाले खातों का कोई प्रस्तुतिकरण नहीं किया गया है.
खेमका ने आदेश में कहा कि हालांकि मूल ऋण-राशि नहीं बढ़ सकी, लेकिन ज़मीन से होने वाली कमाई पिछले 125 वर्षों में काफी अधिक बढ़ी होगी. क्षेत्र में गिरवी रखी गई भूमि (1.6 एकड़) का वर्तमान पट्टा किराया 80000-90000 रुपये प्रति वर्ष होने का अनुमान है. खेमका ने 1938 में सर छोटू राम द्वारा पेश किए गए एक कानून (पंजाब रेस्टोरेशन ऑफ मॉर्गेज्ड लैंड्स एक्ट, 1938) का भी हवाला दिया, जिसमें किसानों को सूदखोर साहूकारी प्रथाओं से राहत प्रदान करना है.
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सर छोटू राम द्वारा पेश किए गए कानून के बाद, किसानों को अपनी गिरवी भूमि की बहाली के लिए केवल जिला कलेक्टर को एक आवेदन जमा करना था. मौजूदा मामले में भी, मूल भूमि मालिक (बीरू) के उत्तराधिकारियों ने अपनी जमीन का कब्जा वापस दिलाने के लिए अक्टूबर 2018 में कलेक्टर (पेहोवा एसडीएम) के समक्ष एक याचिका दायर की थी. पड़ोसी गांव के दो निवासी - गुरमीत सिंह और हरकेश, जिन्होंने 1986 में गिरवी जमीन का आधा हिस्सा (6 कनाल और 11 मरला) गिरवी रखने वालों से 7,000 रुपये की कीमत पर खरीदा था, ने याचिका का विरोध किया. वहीं, कलेक्टर ने मूल भूमि मालिक के परिवार के पक्ष में फैसला सुनाया और गिरवी रखी गई भूमि को वापस करने का आदेश दिया.
इसके बाद गुरमित और हरकेश ने अंबाला डिविजनल कमिश्नर के पास याचिका दायर की. जब उन्हें कोई राहत नहीं मिली तो दोनों ने खेमका की अदालत में याचिका दायर की. वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने अपनी अर्ध-न्यायिक शक्तियों के तहत आदेश दिया है कि जमीन इस साल 30 जून से पहले मूल भूमि मालिक के उत्तराधिकारियों को सौंप दी जाए.
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