अदरक की खेती भारत में प्रमुख तौर पर की जाती है. इसका इस्तेमाल मसाला और औषधि के तौर पर किया जाता है. अदरक की खेती किसानों के लिए फायदेमंद मानी जाती है क्योंकि इसकी कीमत हमेशा बाजार में अच्छी बनी रहती है और मांग भी अच्छी बनी रहती है. भारत विश्व में अदरक का सबसे बड़ा उत्पादक है. देश के अधिकांश राज्यों में इसकी खेती की जाती है. हाल के दिनों में इसके प्रसंस्करण के बाद बनने वाले उत्पादों की मांग काफी बढ़ी है. इससे इसकी मांग में तेजी आई है. यही कारण है कि अधिक से अधिक किसान अब इसकी खेती से जुड़ रहे हैं. बड़े पैमाने पर किसान इसकी खेती कर रहे हैं.
अदरक की खेती गर्म और नम जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है. इसकी खेती वर्षा आधारित भी होती है और जिन किसानों के पास सिंचाई की सुविधा है वो भी इसकी खेती कर सकते हैं. अदरक की खेती के लिए 20-30 डिग्री सेल्सियस का तापमान उचित माना जाता है जबकि इसकी खेती के लिए नमी 70-90 प्रतिशत होनी चाहिए. अदरक की खेती के लिए जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है. हालांकि बलुई लाल और चिकनी मिट्टी में भी इसकी खेती अच्छी होती है. अदरक की खेती में इस बात का ध्यान देना चाहिए की एक ही खेत में लगातार इसकी खेती नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे इसकी पैदावार प्रभावित हो सकती है.
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जो किसान बिना सिंचाई किए अदरक की खेती करना चाहते हैं, उन किसानों के लिए अभी अदरक की खेती करने का उपयुक्त समय है. मई-जून के महीने में किसान इसकी खेती कर सकते हैं. अदरक की खेती के लिए खेत तैयार करने के लिए खेत की जुताई अच्छे तरीके से करनी चाहिए. चार पांच बार खेत को हल से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना देना चाहिए. इसकी रोपाई के लिए एक मीटर चौड़ा और 30 सेंटीमीटर ऊंचा बेड बनाना चाहिए. दो मेड़ों के बीच की दूरी 60 सेंमी होनी चाहिए. जिन खेतों में नेमोटेड का प्रकोप होता है, उस जमीन पर मेड़ों को पारदर्शी प्लास्टिक शीट से ढंक कर सोलर हीट देना चाहिए.
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अदरक का अच्छा उत्पादन हासिल करने के लिए यह जानना जरूरी है कि किस प्रकार से बीज की बुवाई करने पर अधिक उत्पादन होगा. अदरक की बुवाई के लिए प्रमुख रूप से तीन विधियों का इस्तेमाल किया जाता है.
क्यारी विधिः इस विधि में 1.20 मीटर चौड़ी और तीन मीटर लंबी क्यारी बनाई जाती है जिसकी ऊंचाई जमीन की सतह से 15-20 सेंमी ऊंची होती है. प्रत्येक क्यारी के चारों तरफ 50 सेंमी चौड़ी नाली बनाई जाती है ताकि उचित तरीके से जल निकासी हो सके. क्यारी में दो पौधों के बीच उचित दूरी बनाएं. साथ ही 10 सेंमी की गहराई में रोपाई करें. ड्रिप सिंचाई प्रणाली के लिए यह विधि उपयुक्त है.
मेड़ विधिः इस विधि में 60 सेंमी की दूरी पर कुदाल से ही खेत में हल्के गड्ढे बनाकर उसमें खाद डाली जाती है. इसके बाद उसमें 20 सेंमी की दूरी पर अदरक के बीज डाले जाते हैं. फिर उसके ऊपर मिट्टी ढंककर उसे मेड़ की तरह उंचा कर दिया जाता है. इसमें यह ध्यान दिया जाना चाहिए की मेड़ में बीज 10 सेंमी की गहराई पर हो ताकि उसका अंकुरण अच्छे तरीके से हो सके.
समतल विधिः अदरक लगाने के लिए यह विधि हल्की और ढाल वाली जमीन पर अपनाई जाती है. इस विधि में मेड़ से मेड़ की दूरी 30 सेंमी होती है और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंमी तक होती है, जबकि बीज की बुवाई 10 सेंमी की गहराई पर की जाती है.
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