Farmers Politics : एमएसपी से लेकर जीएसटी तक, चुनाव से पहले किसानों के मुद्दों पर सियासी दल बताएं अपनी रणनीति

Farmers Politics : एमएसपी से लेकर जीएसटी तक, चुनाव से पहले किसानों के मुद्दों पर सियासी दल बताएं अपनी रणनीति

आगामी लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू होते ही किसान संगठनों ने MSP से लेकर GST तक, किसानों से जुड़े तमाम मुद्दों पर राजनीतिक दलों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है. किसान संगठनों के संघ ने सत्तापक्ष और विपक्षी दलों से किसानों के मुद्दों पर अपनी भावी रणनीति उजागर करने को कहा है.

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Farmers Politics : एमएसपी से लेकर जीएसटी तक, चुनाव से पहले किसानों के मुद्दों पर सियासी दल बताएं अपनी रणनीतिआम चुनाव से पहले किसान संगठनों ने किसानों के मुद्दे पर राजनीतिक दलों पर दबाव बनाना शुरू किया

किसान संगठनों के संघ Consortium of Indian Farmers Associations (CIFA) ने राजनीतिक दलों से किसानों के ज्वलंत मुद्दे तय करके उनकी समस्यों के समाधान का संकल्प पत्र तैयार कर लिया है. सि‍फा के अध्यक्ष रघुनाथ दादा पाटिल की अगुवाई में किसान संगठनों की दिल्ली में हुई 3 दिन की बैठक में बने 10 सूत्री संकल्प पत्र में किसानों की समस्याएं और समाधान बताए गए हैं. पाटिल ने बताया कि सत्ता पक्ष को किसानों की मांगों से अवगत कराने के लिए कृष‍ि मंत्री अर्जुन मुंडा से मुलाकात कर यह पत्र सौंपा गया है. इसमें खेती की लागत से जुड़ी वस्तुओं को जीएसटी से मुक्त करने और एमएसपी का दायरा बढ़ाने सहित 10 प्रमुख मांगे शामिल है. उन्होंने बताया कि दिल्ली स्थित आंध्र प्रदेश भवन में हुई तीन दिवसीय बैठक में किसान महापंचायत सहित अन्य किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. इसे भाजपा और कांग्रेस सहित अन्य सभी सियासी दलों को सौंप कर उनसे इन मुद्दों पर चुनाव में अपनी रणनीति उजागर करने को कहा जाएगा.

ये मांगे हैं किसानों की

बैठक में शामिल हुए किसान महापंचायत की एमपी इकाई के प्रमुख राजेश धाकड़ ने बताया सिफा द्वारा तय किए गए प्रारूप में पहली मांग कृष‍ि उपयोग की वस्तुओं को जीएसटी से मुक्त करने की है. इसमें कहा गया है कि बीज, कीटनाशकों के अलावा ट्रैक्टर सहित सभी Farm Machinery पर लगने वाले जीएसटी के बोझ से किसानों को मुक्त किया जाए.

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मसौदे का दूसरा संकल्प MGNAREGA से जुड़ा है. इसमें खेती में मजदूरों की समस्या से किसानों को मुक्ति दिलाने के लिए मनरेगा के 80 फीसदी फंड को Agriculture Related Works से जोड़ने की मांग की है. जिससे मनरेगा मजदूरों को किसान अपने खेती के काम से भी जोड़ सकें. मौजूदा व्यवस्था में मनरेगा मजदूर ग्रामीण विकास के कामों में नियोजित किए जाते हैं. इनमें सड़क, नाली, सरकारी भवन बनाने आदि में लगाया जाता है.

सीएसीपी को खत्म किया जाए

सिफा के संकल्प पत्र में MSP का दायरा बढाने की मांग करते हुए कहा गया है सभी कृष‍ि उत्पादों और फसलों को एमएसपी के दायरे में लाया जाए. इसमें कहा गया है कि मौजूदा व्यवस्था में एमएसपी तय करने की जिम्मेदारी खेती की लागत तय करने वाली समिति CACP के पास होती है. सिफा ने मांग की है कि एमएसपी तय करने के लिए सीएसीपी की जगह एक अलग Statuary Body का गठन किया जाए.

सिफा ने अपने एक अन्य अहम संकल्प में कृष‍ि उत्पादों के निर्यात पर लगने वाले प्रतिबंधों को समाप्त करने की जरूरत पर बल दिया है. सिफा की दलील है कि सरकार कभी भी Export of Agriculture Produce को प्रतिबंधित कर देती है. इससे किसानों को काफी नुकसान होता है और फलस्वरूप Farmers Income में निरंतर कमी आ रही है. इस समस्या पर राजनीतिक दलों से अपनी राय बताने की मांग करते हुए सिफा ने कृष‍ि उत्पादों के निर्यात को प्रतिबंधित करने पर रोक लगाने का सुझाव दिया है.

फसल बीमा

सिफा ने अपने संकल्प में फसल बीमा योजना PMFBY के प्रावधानों में भी सुधार करने की जरूरत पर बल दिया है. इसमें कहा गया है कि किसानों को बीमा करने वाली कंपनी का चयन खुद करने की छूट देनी चाहिए. इसके लिए सरकार को बीमा कंपनी का जिलेवार निर्धारण खुद न करके किसानों को इसका निर्धारण करने की छूट देना चाहिए. Crop damage का भुगतान 30 दिन के भीतर करने की अनिवार्यता को लागू करने और प्राकृतिक आपदा के अलावा जानवरों द्वारा फसल चौपट करने को भी फसल बीमा का हिस्सा बनाया जाए.

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सिफा ने गन्ना किसानों की समस्या को भी गंभीर बताते हुए बकाया भुगतान करने और बंद पड़ी Sugar Mills को शुरू करने की मांग की है. साथ ही दो गन्ना मिलों के बीच की दूरी तय करने वाले प्रावधान को भी खत्म करने, चीनी को आवश्यक वस्तु अधिनियम से बाहर करने और गन्ना ढुलाई पर प्रतिबंध हटाने की मांग की है.

धाकड़ ने बताया कि किसानों के हित से जुड़े इन संकल्पों को सभी राजनीतिक दलों को सौंप कर उनसे इन्हें अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करने को कहा जाएगा. इससे इन संकल्पों को लेकर राजनीतिक दलों की मंशा और राय भी उजागर हो जाएगी. इसके आधार पर देश के किसान चुनाव में अपनी भूमिका भी तय कर सकेंगे.

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