बदलते वक्त के साथ देश में अब कृषि, पशुपालन और मत्स्य पालन सभी चीजों में वैज्ञानिक विधि का इस्तेमाल हो रहा है. इन क्षेत्रों में वैज्ञानिक पद्धति अपनाने से उत्पादन और क्वालिटी बढ़ी है. इससे किसानों की आय भी बढ़ी है. मत्स्य पालन में भी अब अधिकांश किसान पारंपरिक मछली पालन को छोड़कर फीड आधारित मछली पालन की तरफ बढ़ रहे हैं. ऐसे में उनकी लागत तो बढ़ी है पर उत्पादन बढ़ने से कमाई भी बढ़ी है. वैज्ञानिक पद्धित से मछली पालन में तालाब में पानी के पैरामीटर की जांच से लेकर मिट्टी तक की जांच की जाती है. इससे मछली पालन करने में आसानी होती है.
उत्तर प्रदेश की जहां तक बात है तो किसान अपने जिले के मत्स्य पालक विकास कार्यालय में जाकर मिट्टी और पानी के नूमनें की जांच करा सकते हैं. यहां पर मिट्टी और पानी की जांच मुफ्त में की जाती है. इसके अलावा जांच रिपोर्ट के आधार पर किसानों को अधिकारियों और कर्मचारियों से तकनीकी सलाह भी मिल जाती है. इस तरह से मिट्टी और पानी की जांच कराकर और विशेषज्ञों की सलाह लेकर मछली पालन से बेहतर उत्पादन होता है और इससे किसानों की आय बढ़ती है. ऐसे में मत्स्य किसानों के मन में इसके अलावा कई तरह से सवाल आते हैं. इस खबर में हम आपको ऐसे ही पांच सवालों के बारे में बताएंगे और उसका जवाब देंगे.
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1-मछली पालन की पूरा जानकारी कहां मिलेगी और कौन-कौन सी मछलियां पाली जाती हैं?
मछली पालन के लिए उचित जानकारी हासिल करने के लिए मत्स्य पालक अपने जनपद में स्थित सहायक निदेशक मत्स्य, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, मत्स्य पालक विकास कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं. साथ ही अपने मंडल के मंडलीय उप-निदेशक मत्स्य कार्यालय से भी संपर्क कर जानकारी प्राप्त की जा सकती है. मछली पालन में मुख्य रूप से 6 प्रकार की मछलियां पाली जाती हैं. आईएमसी में रोहू, कतला, मृगल के अलावा विदेशी मेजर कार्प में सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प प्रमुख मछलियां हैं.
2-मत्स्य पालन के लिए बीज कहां से मिलता है?
मछली का बीज प्राप्त करने के लिए जिले के मत्स्य पालक विकास अधिकारी से संपर्क किया जा सकता है. यहां बीज का पैसा जमा कराने पर मत्स्य पालन कार्यालय की ओर से बीज मुहैया कराया जाता है. हैचरी से बीज लेने के बाद मत्स्य विभाग के कर्मचारी खुद ही किसान के तालाब में बीज डालते हैं. इसके अतिरिक्त मत्स्य पालक जनपदीय कार्यालय में मत्स्य बीज का पैसा जमा कराकर सीधे निगम की हैचरी से बीज लेकर खुद से मत्स्य बीज तालाब में डाल सकता है.
3-मछली पालन के लिए विभाग की तरफ से लोन पर किसी प्रकार का अनुदान दिया जाता है?
मछली पालन के लिए विभाग की तरफ से किसी प्रकार का लोन नहीं मिलता है. हालांकि तालाब निर्माण, बांधों की मरम्मत, पूरक आहार जैसी जरूरतों के लिए विभाग की तरफ से लोन का प्रस्ताव तैयार कराकर बैंकों में दिया जाता है. इस तरह से किसानों को मदद मिलती है. इसके बाद किसानों के लिए बैंकों द्वारा जो ऋण राशि स्वीकृत की जाती है, उस राशि पर सामान्य जाति के मत्स्य पालकों को 20 प्रतिशत और अनूसूचित जनजाति के मत्स्य पालकों को विभाग की तरफ से 25 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है.
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4-मछलियों को आहार किस प्रकार और कब देना चाहिए?
मत्स्य आहार को टोकरी में तालाब के चारों किनारे और बीच में पानी की सतह पर रखना चाहिए. यदि आहार का उपभोग कम हो तो यह जांच करनी चाहिए कि मछलियां किसी बीमारी से पीड़ित तो नहीं हैं. मछलियों को एक निश्चित समय निर्धारित करके आहार देना चाहिए. इसके लिए सुबह या शाम का समय निर्धारित किया जा सकता है. हालांकि बारिश और ठंड के दिनों में मछलियों को कम खाना देना चाहिए.
5-तालाब से पानी की निकासी कब करनी चाहिए, एक हेक्टेयर तालाब में कितना बीज डाल सकते हैं?
अगर बारिश में नाली का गंदा पानी तालाब में घुस जाता है और मछलियां रोग से ग्रसित होने लगती हैं तब तालाब से गंदे पानी की निकासी कर देनी चाहिए. एक हेक्टयेर के तालाब में किसान 10 से 15 हजार मतस्य बीजों को डाल सकते हैं. किसान इस बात का ध्यान रखें कि वे थाई मांगुर मछलियां नहीं डालें क्योंकि इस प्रजाति के मछलियों का पालन प्रतिबंधित है.
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