Farmers Politics : किसानों और जवानों ने बनाई अपनी राजनीतिक पार्टी, लड़ेंगे लोकसभा चुनाव

Farmers Politics : किसानों और जवानों ने बनाई अपनी राजनीतिक पार्टी, लड़ेंगे लोकसभा चुनाव

उपज का वाजिब दाम मिलने की मांग को लेकर किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं. कांग्रेस से लेकर भाजपा तक, अब तक की सभी सरकारों से MSP Guarantee Law बनाने की मांग को लेकर, किसानों के हिस्से में निराशा ही आई है. थक हार कर अब किसानों ने खुद कानून बनाने का विकल्प चुन लिया है. इसके लिए किसान अब अपनी Political Party बनाएंगे. 

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Farmers Politics : किसानों और जवानों ने बनाई अपनी राजनीतिक पार्टी, लड़ेंगे लोकसभा चुनावफाइल फोटो

किसानों को उपज का वाजिब दाम दिलाने के लिए चल रहे आंदोलन को खत्म कर समस्या का समाधान निकालने की दिशा में तमाम उपाय सामने आ रहे हैं. इनमें एक उपाय किसानों द्वारा खुद अपने हक में कानून बनाने की संवैधानिक स्थिति हासिल करने के रूप में भी सामने आया है. बार बार सत्ता की राजनीति के शिकार हो रहे किसानों ने अब सड़क से संसद तक पहुंचने का मार्ग चुना है. इसके लिए किसान अपनी राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव लड़ेंगे और संसद में पहुंच कर अपनी मांग के अनुरूप कानून बनाएंगे. यह पहल महाराष्ट्र के किसानों ने की है. देश भर के 300 किसान संगठनों के संघ CIFA के अध्यक्ष रघुनाथ दादा पाटिल ने किसानों की राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है. हालांकि इस तरह के प्रयोग पहले भी चुनावों में किए गए, लेकिन जनता ने Electoral Politic में कूदने के किसानों के प्रयोगों को तवज्जो नहीं दी. पाटिल का दावा है कि इस बार पूरी राजनीतिक समझ बूझ के साथ किसानों की पार्टी बनाई गई है. आगामी लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में किसान चुनाव लड़ कर संसद में अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराएंगे.

ये है पार्टी का नाम

पाटिल ने किसान तक को बताया कि किसानों की पार्टी बनाने का आइडिया महाराष्ट्र के उन किसानों ने दिया है, जो बीते सालों में सेना से VRS लेकर अब खेती कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस विचार को अमली जामा पहनाने के लिए बेहतर राजनीतिक समझ वाले नौजवान किसानों, Retired Soldiers और सैन्य अधिकारियों की राजनीतिक पार्टी बनाई गई है.

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इस वजह से बनी राजनीतिक पार्टी

पाटिल ने बताया कि हाल ही में सिफा के बैनर तले दिल्ली में हुए किसानों के 3 दिन के सम्मेलन में एमएसपी की गारंटी सहित 11 सूत्रीय मांगों का एक मसौदा देश की सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के सामने पेश किया गया. इसमें भाजपा और कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं को यह मसौदा सौंप कर यह पूछा गया था कि आगामी चुनाव में ये दल अपने Manifesto में किसानों की इन 11 मांगों को शामिल करेंगे या नहीं.

पाटिल ने कहा कि उन्होंने सिफा के प्रतिनिधियों के साथ खुद भाजपा और कांग्रेस सहित अन्य प्रमुख दलों के नेताओं को किसानों का संकल्प पत्र सौंपा. उन्होंने बताया कि सत्तारूढ़ भाजपा की ओर से कोई बड़ा नेता किसानों से मिलने को ही तैयार नहीं हुआ. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे मिले जरूर, लेकिन उनकी तरफ से किसानों के संकल्प पत्र पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. पाटिल ने कहा कि राजनीतिक दलों के इस रवैये को देखकर ही किसान संगठनों ने अपनी राजनीतिक पार्टी बनाकर अब खुद किसानों को एक मजबूत राजनीतिक विकल्प बनाने का फैसला किया है.

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अब तक था राजनीति से परहेज

गौरतलब है कि किसानों को एमएसपी गारंटी कानून का संरक्षण दिलाने सहित अन्य मांगों को लेकर लंबे समय से संघर्ष कर रहे Farmers Organisations शुरू से ही खुद को राजनीति से दूर रखने की बात करते रहे हैं. किसानों के सबसे बड़े संगठनों में शुमार भारतीय किसान यूनियन BKU के नेता राकेश टिकैत ने भी दो टूक कहा कि उनका संगठन राजनीति से परहेज कर सामाजिक आंदोलन को ही अपना हथियार बनाएगा. वहीं, पंजाब के किसानों के आंदोलन की अगुवाई कर रहा संगठन संयुक्त किसान मोर्चा SKM में किसानों द्वारा राजनीति से दूरी बनाने और राजनीतिक ताकत बनने के मुद्दे पर ही दो फाड़ हो गए. यह बात दीगर है कि 2021 में हुए Farmers Protest के बाद हुए चुनाव में किस्मत आजमाने वाले गुट को कोई कामयाबी नहीं मिली.

देश भर में सक्रिय अधिकांश किसान संगठनों का मानना है कि किसानों को राजनीति से परहेज करते हुए आंदोलन की राह पर ही चलकर किसानों के हित सुनिश्चित करने चाहिए. ऐसे में सिफा के अध्यक्ष और महाराष्ट्र के वरिष्ठ किसान नेता रघुनाथ दादा पाटिल का स्पष्ट मत है कि जिस प्रकार से सरकारें Market Forces के दबाव में काम कर रही हैं, इसे देखते हुए किसानों की इन मांगों को आंदोलन के जरिए पूरा करा पाना अब मुमकिन नहीं होगा. उन्होंने कहा कि भाजपा हो या कांग्रेस, विपक्ष में रहने पर ही ये किसानों की मांगों की हिमायत करते हैं. इनका एकमात्र मकसद किसानों को लुभाकर वोट हासिल करना है. सत्ता में आने पर सभी राजनीतिक दल कारोबारियों के हितों का ही संरक्षण करते हैं.

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