देश में Electoral Politics के लिहाज से यूपी सबसे बड़ा और अहम राज्य माना जाता है. यही वजह है कि लोकसभा के लिए 80 सांसद देने वाले यूपी से ही गुजर कर देश की सत्ता का रास्ता जाता है. ऐसे में यूपी में चुनावी राजनीति की हवा का रुख भांपना नेताओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है. इसके मद्देनजर Political wave को भांपते हुए यूपी के नेताओं ने सुरक्षित सीट की तलाश तेज कर दी है. इसमें मुख्य विपक्षी दल सपा, बसपा और कांग्रेस के नेताओं का दल बदल बढ़ गया है. पिछले दिनों सपा से मोहभंग होने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य और रालोद नेता जयंत चौधरी ने अपने रास्ते अलग कर लिए. अब बारी बसपा की है. बसपा के 4 सांसद हाथी की सवारी छोड़ चुके हैं.
बसपा ने General Election 2019 सपा के साथ गठबंधन करके लड़ा था. इसका फायदा उठाते हुए बसपा के टिकट पर 10 सांसद लोकसभा पहुंचे थे. इनमें से 4 सांसदों ने अब तक बसपा को अलविदा कह दिया है. इनमें गाजीपुर से सांसद अफजाल अंसारी और अमरोहा से सांसद दानिश अली ने बसपा सुप्रीमो मायावती की नाराजगी के कारण पहले ही पार्टी छोड़ दी.
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ताजा मामला लोकसभा में बसपा ने नेता रहे रितेश पांडे का है. अंबेडकर नगर से सांसद रितेश ने रविवार को बसपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने के महज 2 घंटे बाद भाजपा का दामन थाम लिया. इस कड़ी में अगला नंबर जौनपुर के सांसद श्याम सिंह यादव हैं. यादव का बसपा से मोहभंग होने के बाद कांग्रेस के साथ मेलजोल बढ़ गया है. वह कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में सोमवार को शामिल होकर बसपा से नाता तोड़ने की औपचारिकता पूरी कर देंगे. सूत्रों की मानें तो बसपा के शेष बचे 6 सांसदों में से 4 सांसदों को सुरक्षित ठिकाने की तलाश है. जल्द ही ये सांसद भी पाला बदलकर 'बसपा काे बाय बाय' कर जाएंगे.
बसपा अध्यक्ष मायावती ने पार्टी के सांसदों का साथ छोड़ने को 'नेताओं का स्वार्थ' करार देते हुए कहा कि टिकट कटने की आशंका से इन नेताओं ने पार्टी छोड़ी है. उन्होंने कहा कि सभी नेताओं को लोकसभा चुनाव का टिकट देना संभव नहीं है. मायावती ने सांसदों के बसपा छोड़ने को लेकर Social Media पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि बीएसपी Political Party होने के साथ ही परम पूज्य बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के आत्म-सम्मान व स्वाभिमान के मिशन को समर्पित मूवमेंट भी है. जिस कारण इस पार्टी की नीति व कार्यशैली देश की पूंजीवादी पार्टियों से अलग है. जिसे ध्यान में रखकर ही चुनाव में पार्टी के उम्मीदवार भी उतारती है.
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उन्होंने कहा कि अब बीएसपी के सांसदों को इस कसौटी पर खरा उतरने के साथ ही स्वयं जांचना है कि क्या उन्होंने अपने क्षेत्र की जनता का सही ध्यान रखा? क्या अपने क्षेत्र में पूरा समय दिया? साथ ही, क्या उन्होंने पार्टी व मूवमेन्ट के हित में समय-समय पर दिये गये दिशा-निर्देशों का सही से पालन किया है?
गौरतलब है कि रितेश पांडे ने मायावती कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए पार्टी छोड़ी है. उन्होंने अपने इस्तीफे में कहा कि वह बसपा अध्यक्ष से मिलने का कई बार समय मांगा, लेकिन उन्होंने मिलने का समय नहीं दिया. ऐसे में वह पार्टी छोड़ने पर मजबूर हुए हैं. पांडे के इस्तीफे के बाद मायावती ने सोशल मीडिया पर कहा कि अधिकतर लोकसभा सांसदों का टिकट दिया जाना क्या संभव है. खासकर तब जब वे स्वंय अपने स्वार्थ में इधर-उधर भटकते नजर आ रहे हैं और निगेटिव चर्चा में हैं. मीडिया द्वारा यह सब कुछ जानने के बावजूद इसे पार्टी की कमजोरी के रूप में प्रचारित करना अनुचित है. बीएसपी के लिए पार्टी का हित सर्वोपरि है.
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