Rajasthan: जैसलमेर में खजूर की खेती को मिली उड़ान, सालाना हो रहा 400 टन से ज्यादा उत्पादन, दुनिया भर में पहुंच रही मिठास

Rajasthan: जैसलमेर में खजूर की खेती को मिली उड़ान, सालाना हो रहा 400 टन से ज्यादा उत्पादन, दुनिया भर में पहुंच रही मिठास

राजस्थान के जैसलमर में खजूर की सफलता पूर्वक खेती हो रही है. इस फार्म से सालाना 400 टन खजूर का उत्पादन किया जा रहा है. सिंचाई के लिए फार्म पर बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति का इस्तेमाल किया जा रहा है. वहीं जिले में खजूर की खेती का चलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है.

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Rajasthan: जैसलमेर में खजूर की खेती को मिली उड़ान, सालाना हो रहा 400 टन से ज्यादा उत्पादन, दुनिया भर में पहुंच रही मिठास जैसलमेर में खजूर की खेती

जैसलमेर के रेगिस्तान में भी अब खजूर की मिठास पसरने लगी है. खाड़ी देशों की तर्ज पर जैसलमेर जिले में भी अब करीब 400 टन से ज्यादा सालाना खजूर उत्पादन हो रहा है और जैसलमेर के अन्य रेगिस्तानी हिस्सो में खजूर की खेती की की अपार संभावनाओं को आकार देने की कड़ी में बड़ी संख्या में खजूर के पौधे तैयार कर किसानों को बांटे जा रहे हैं. इससे बड़ी संख्या में किसान खजूर की खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं. रेगिस्तान में यह खजूर की खेती का नखलिस्तान रुपी नजारा जैसलमेर जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर जोधपुर मार्ग पर भोजका गांव में स्थित एक विशाल डेट फार्म खजूर में देखा जा सकता हैं. 

इस मार्ग पर आने जाने वाली सैलानियों व अन्य लोगों की गाड़िया इस डेट फार्म को देखकर दांतों तले उंगली दबा देती हैं. और तो और राज्य सरकार ने इस खजूर उत्पादन के लिए पांच साल का ठेका दे दिया हैं. बताया जाता है कि ठेकेदार ने इस डेट फार्म को आने वाले सैलानियों के ठहरने व मनोरंजन के अन्य कई साधन भी जुटा कर उन्हें आकर्षित करने का प्रयास किया हैं.

जैसलमेर में 400 टन से ज्यादा खजूर का उत्पादन 

असल में राज्य सरकार के अथक प्रयासों की बदौलत राजस्थान का रेगिस्तान इलाका जैसलमेर अब परंपरागत खेती-बाड़ी के साथ ही कृषि क्षेत्र में अत्याधुनिक दौर में प्रवेश कर चुका है जहां वैज्ञानिकों की पहल और अथक  प्रयासों से जैसलमेर में 400 टन से ज्यादा खजूर का उत्पादन होने लगा है. रेगिस्तान में खजूर की मिठास अपने  आप में स्वप्न ही था, लेकिन अब यह आकार लेता हुआ रेत के समंदर में मिठास देने लगा है. इन्डो-इजरायल पद्धति से कृषि विभाग की ओर से सगरा-भोजका फार्म पर शुरू किए गए खजूर के अनुसंधान के सफल होने के बाद अब सेन्टर ऑफ एक्सीलेंस खजूर इजरायल तकनीकी से विकसित कर दिया है. वर्ष 2009 में 1 करोड़ 32 लाख रुपए की लागत से निर्मित प्रदेश के पहले सेंटर ऑफ एक्सीलेंस खजूर केन्द्र सचमुच अनूठा बन पड़ा है. 

खजूर उत्कृष्टता केंद्र
खजूर उत्कृष्टता केंद्र

फार्म पर बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति का इस्तेमाल 

होर्टी कल्चर व उद्यान विभाग के जैसलमेर में डिप्टी डायरेक्टर प्रताप सिंह खुशवाहा ने बताया कि जैसलमेर जिले के सगरा-भोजका में जैसलमेर- जोधपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर 104 हेक्टेयर में प्रायोगिक टिश्यु कल्चर खजूर फार्म की स्थापना की गई थी फार्म पर खाड़ी देशों से आयातित खजूर की विभिन्न 9 किस्मों के टिश्यु कल्चर से तैयार किये हुए पौधों का रोपण किया गया था. इनमें 7 फीमेल व 2 मेल प्रजातियां के पेड़ रोपण किये गए हैं और कुल 97.5 हेक्टेयर में खजूर के करीब 15900 पौधे लगाये गये थे जिनमें 900 मेल हैं व 15000 फीमेल पौधे हैं. मेल पौधों से निललने वाले परागकणों को फरवरी-मार्च के महीनों में फीमेल पेड़ों पर लगने वाले फूलों पर छिड़काव किया जाता है जिससे फूल फ्रूट में बदलते हैं. फार्म पर सिंचाई के लिए बोरवेल खुदे हुए हैं तथा सम्पूर्ण फार्म पर बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति (ड्रिप सिस्टम) की स्थापना की कर खजूर की खेती को बूंद-बूंद सिंचाई से उत्पादित किया जा रहा हैं.

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वे बताते हैं कि भोजका फार्म में बरही के 5696, खुनेजी के 3445, खदरावी के 993, खलास के 874, जामली के 993, मेडजूल के 1102 व सगई के 995 पौधे लगाए हैं. यह सभी प्रजातियां मादा हैं. इसके अलावा नर प्रजातियों में मदासरी के 575 व धनामी के 124 पौधे पनप कर 400 टन की पैदावार दे रहे हैं. बरही व खुनेजी को ताजे फल के तौर पर खाया जाता है. वहीं शेष किस्मों से पिंड खजूर बनाए जाते हैं.

जैसलमेर जिले में खजूर की खेती का बढ़ा प्रचलन

जनवरी 2009 से खजूर के पौधों का रोपण शुरू किया गया था और अब तक करीब 15900 पौधे रोपित हो चुके हैं जिसमें से सालाना टनो बंद खजूर का उत्पादन हो रहा है जिनकी गुणवत्ता एवं स्वाद बहुत अच्छा है. हालांकि खजूर पेड़ की जड़े नमी में होने चाहिए तथा तना गर्मी व शुष्क वातावरण में होना चाहिए. इस सीजन में जैसलमेर में जबरदस्त बरसात होने से उत्पादन होने वाले फू्रट्स को काफी नुकसान पहुंचा है. वर्तमान में रेगिस्तानी जिले जैसलमेर की धरती का यह खजूर देश-दुनिया तक अपनी मिठास पहुंचाकर प्रदेश को गौरव प्रदान कर रही हैं व आज पूरे जैसलमेर जिले में खजूर की खेती का प्रचलन बढ़ा हुआ देखा जा रहा है.

पौधे तैयार कर किसानों को वितरित करने का लक्ष्य

उन्होंने बताया कि सामान्यतः रेगिस्तान में वर्षो से मूंग, मोठ, बाजरा, रायड़ा, मूंगफली आदि की फसलें बोई जाती थीं, लेकिन अब स्थानीय ग्रामीणों को खजूर की खेती रास आ रही है. भोजका स्थित डेट फार्म में प्रति वर्ष हजारों खजूर के पौधे तैयार कर किसानों को न्यूनतम सरकारी दरों पर वितरित कर रहे हैं. जहां तक पिछले 3 सालों की बात है, 2020-21 में करीब 17 लाख रुपये के 3000 पौधे 2021-22 में 70 लाख रुपये के 4000 पौधे व 2022-23 में करीब 75 लाख रुपये के 5000 से ज्यादा खजूर के पौधे किसानों को न्यूनतम सरकारी दरों पर दिये गए हैं. इस वर्ष भी 2023-24 तक 6000 पौधे तैयार कर किसानों को वितरित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया हैं जिससे जैसलमेर के कई ग्रामीण अंचलों में बड़े पैमाने पर खजूर की खेती हो रही है और खाड़ी देशों की तर्ज पर रेगिस्तानी जिले जैसलमेर में भी खजूर की खेती का क्रेज बढ़ रहा है और इसकी डिमांड पूरे देश में बढ़ती जा रही है. जानकारी के अनुसार एक पौधे की कीमत 1500 रुपए है. इसमें राज्य सरकार 75 प्रतिशत करीब 1125 रुपए तक की सब्सिडी देती हैं. सब्सिडी के बाद पौधे की कीमत 375 रुपए है. एक हेक्टेयर में 156 पौधे लग सकते हैं. 

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खजूर के पेड़ को 4 साल तक 60 लीटर, 10 साल तक 100 और फिर 150 लीटर पानी चाहिए. पानी खारा हो तो भी चलेगा. पानी से ज्यादा तापमान जरूरी, क्योंकि फ्रूट 45 डिग्री में पकता है. जुटाई गई जानकारी में 2008 में सरकार के कृषि विभाग ने गुजरात की अतुल कंपनी के सहयोग से भोजका में खजूर फार्म तैयार किया था. उस समय यहां 15 हजार 500 पौधे लगाए गए थे. 4 साल बाद से ही फ्रूटिंग शुरू हो गई थी और अब रिकार्ड उत्पादन हो रहा है.

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