इस बार घट सकता है कपास की खेती का रकबा, मजदूरों की कमी से दूसरी फसलों को चुन रहे किसान

इस बार घट सकता है कपास की खेती का रकबा, मजदूरों की कमी से दूसरी फसलों को चुन रहे किसान

कॉटन उद्योग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि मजदूरों की समस्या के कारण इस बार कपास की खेती का रकबा घट सकता है. खास कर पंजाब और राजस्थान में इसकी खेती का रकबा कम होने की आशंका है क्योंकि इन दोनों ही राज्यों में पिछले साल श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ा था. 

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इस बार घट सकता है कपास की खेती का रकबा, मजदूरों की कमी से दूसरी फसलों को चुन रहे किसानकपास की खेती (सांकेतिक तस्वीर)

पंजाब में इस बार कपास के उत्पादन में कमी आ सकती है क्योंकि कई ऐसे किसान हैं जो इस बार कपास की खेती छोड़कर दूसरी अन्य फसलें लगाने का मन बना रहे हैं. किसानों का कहना है कि कपास की खेती में होने वाले खर्च के अनुरूप उन्हें कपास पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का लाभ नहीं मिलता है, ना ही उन्हें कपास की अच्छी कीमत मिल रही है. इसके अलावा किसानों को एक और समस्या का सामना करना पड़ रहा है, वह है मजदूरों की कमी. बठिंडा के किसान बलदेव सिंह बताते हैं कि एक तो खेतों में काम करने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं. दूसरी तरफ लेबर की लागत भी बढ़ रही है, इसलिए उन्होंने कपास खेती छोड़ने का फैसला किया है. 

हालांकि कपास की खेती से दूरी बनाने वाले बलदेव सिंह अकेले ऐसे किसान नहीं हैं. हो सकता है पंजाब, राजस्थान और गुजरात में भी कई ऐसे किसान हों जो इस तरह का फैसला कर रहे हों. 'बिजनेस लाइन' में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार तेलंगाना में कुछ ऐसे भी किसान हैं जो हाई डेन्सिटी फार्मिंग तकनीक से कपास की खेती करने की योजना बना रहे हैं. किसान बलदेव सिंह जैसे किसानों के फैसले को देखकर कॉटन उद्योग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि मजदूरों की समस्या के कारण इस बार कपास की खेती का रकबा घट सकता है. खास कर पंजाब और राजस्थान में इसकी खेती का रकबा कम होने की आशंका है. इन दोनों ही राज्यों में पिछले साल श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ा था. 

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नहीं मिल रहे मजदूर

किसानों को खेती में मजदूरों की कमी का सामना इसलिए भी करना पड़ रहा है क्योंकि मनरेगा के तहत मजदूरों को हर दिन लगभग 300 रुपये मिल रहे थे तो वे मनरेगा में काम कर रहे थे. राजस्थान में तो किसान कपास की कटाई के बदले अपनी फसल का हिस्सा तक मजदूरी के रूप में देने के लिए तैयार थे, पर इसके बाद भी मजदूर नहीं मिल रहे थे. जोधपुर स्थित साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर (एसएबीसी) के संस्थापक निदेशक भागीरथ चौधरी ने कहा कि राजस्थान में कपास किसान पंजाब और हरियाणा की तरह प्रवासी मजदूरों पर निर्भर नहीं हैं. पर उन्होंने माना की पिछले साल कपास चुनने के सीजन में श्रमिकों की कमी को लेकर किसानों को समस्याओं का सामना करना पड़ा था.

बढ़ी है मजदूरी

श्रमिकों की कमी का सामना सिर्फ पंजाब और राजस्थान के किसानों को ही नहीं बल्कि तेलंगाना के किसानों को भी करना पड़ रहा है. खास कर खरीफ सीजन में जहां पर छोटे वाले अधिकांश किसान धान की खेती करते हैं और कपास किसानों के लिए मजदूरी नहीं मिल पाती है. जबकि तेलंगाना देश के सबसे बड़े कपास उत्पादक राज्यों में से एक है. रायचूर स्थित घरेलू मिलों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सोर्सिंग एजेंट रामानुज दास ने बताया कि किसान पहले कपास चुनने के लिए 10 रुपये प्रति किलोग्राम का भुगतान कर रहे थे, पर अब मजदूरी  बढ़कर 12 रुपये हो गई है. 

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गुलाबी बॉलवॉर्म से घटी उपज

कपास के खेतों में गुलाबी बॉलवॉर्म का संक्रमण भी खेती में कमी आने का एक बड़ा कारण बन रहा है क्योंकि इसके संक्रमण के कारण उत्पादकता में कमी आती है. इसके कारण भी मजदूर खेतों में काम करने नहीं जा रहे थे क्योंकि उन्हें मजदूरी कम मिलती. तेलंगाना के किसान बताते हैं कि  कपास की खेती में कीट के संक्रमण का मतलब है कि कम कपास के लिए अधिक मेहनत करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि कपास फसल चक्र की पहली दो कटाई ठीक थी, लेकिन किसानों को तीसरी और चौथी कटाई के लिए मजदूरों की कमी महसूस हुई क्योंकि गुलाबी बॉलवॉर्म के कारण पैदावार कम हो गई थी. इसके अलावा अब उत्तर भारत से मजदूरों का पलायन भी कम हुआ है. क्योंकि विकास कार्य होने के कारण लोगों को अपने घरों के पास ही रोजगार मिल रहा है. 

 

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