राजस्थान में आयोजित भारतीय किसान संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के दूसरे दिन शनिवार को किसान आंदोलन और खाद्यान्न मार्केटिंग व्यवस्था पर वक्ताओं ने अपनी बातें रखीं. किसानों ने कहा कि हमारे संगठन की नीति है कि किसानों का हित राष्ट्रहित के दायरे में रहे. इसलिए हम हिंसक आंदोलनों का समर्थन नहीं करते. लेकिन किसानों ने चेतावनी दी है कि सरकारें अनुशासन, राष्ट्रहित और संवाद की हमारी प्राथमिकता को कमजोरी न समझें.
भारतीय किसान संघ की ओर से पेश प्रस्ताव में महासचिव मोहिनी मोहन मिश्रा ने देशभर के किसानों की राय रखते हुए कहा कि जब देश के किसान संगठन अनुशासित और शांतिपूर्ण तरीके से दिल्ली आकर अपनी समस्याएं रखना चाहते हैं, तो सरकार को क्या दिक्कत है. आखिर सरकार उनसे बात करना क्यों नहीं उचित समझती है. सरकार का रवैया कुछ हद तक अफसोसजनक है. जिससे हिंसक आंदोलन को बढ़ावा मिलने की आशंका बढ़ जाती है.
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मिश्र ने कहा कि किसानों के नाम पर राजनीतिक चुनावी पैंतरेबाजी से किसानों को ही नुकसान हो रहा है. जिसमें किसान पीड़ित होने के साथ-साथ मर भी रहा है. ये दुख की बात है कि आज देश में हिंसक आंदोलन के माध्यम से किसान आंदोलन के प्रति समाज में नकारात्मक भावना पैदा की जा रही है. प्रतिनिधि सभा में पेश प्रस्ताव के जरिए किसान संघ ने मांग की कि हिंसक आंदोलन को बढ़ावा, समर्थन और मदद न दी जाए. सरकार, प्रशासन और समाज को भी हिंसक तरीकों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनानी चाहिए.
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मिश्र ने प्रतिनिधि सभा में किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए सुझाव प्रस्तुत करते हुए कहा कि किसानों को लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य मिलना चाहिए. कृषि आदानों पर जीएसटी समाप्त किया जाए. किसान सम्मान निधि में पर्याप्त बढ़ोतरी की जाए. जहर नहीं बल्कि जैविक को प्राथमिकता देकर जीएम बीजों को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. बीज किसानों का अधिकार है. सरकारों को मंडियों में किसानों का शोषण रोकने की व्यवस्था करनी चाहिए.
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वहीं, प्रतिनिधि सभा में श्रीअन्न के संबंध में प्रस्ताव में कहा गया कि विश्व को स्वस्थ भोजन उपलब्ध कराने की दिशा में भारत की दिशा भविष्य में वरदान साबित होगी. भारत सरकार भी श्रीअन्न को बढ़ावा देने के लिए अच्छा काम कर रही है. देश की सुरक्षा सैन्य संस्थानों में कार्यरत सैन्यकर्मियों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने की मंशा से सरकार ने भोजन में पच्चीस प्रतिशत का योगदान दिया है. यह एक स्वागत योग्य कदम है. प्रस्ताव के माध्यम से किसान संघ ने सुझाव दिया कि श्री अन्न के पारंपरिक बीजों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए और इसका पर्याप्त उत्पादन और उचित मूल्य पर उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए. प्रस्ताव में किसान संघ ने अनाज के विपणन के लिए एक व्यापक नीति की भी मांग की.
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