केला की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद मानी जाती है. अगर किसान सही तरीके से इसकी खेती करते हैं तो उन्हें अच्छा मुनाफा होता है. केले की खेती में खेत प्रबंधन का विशेष ध्यान रखना पड़ता है. इसके फलों और फूलों को रोग और कीट से बचाए रखने की जरूरत होती है. तब जाकर ही किसान अच्छा उत्पादन हासिल कर सकते हैं. केला किसानों के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि केले में कौन-कौन से रोग लगते हैं. इन रोगों पर नियंत्रण कैसे किया जा सकता है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि केला के तीन सबसे खतरनाक रोग कौन-कौन से हैं, इनकी पहचान कैसे कर सकते हैं और इन रोगों से केले का बचाव कैसे किया जा सकता है.
केले की खेती में किसानों को जिन तीन प्रकार के रोगों का सामना करना पड़ता है, उसमें सबसे पहला नाम आता है कि पीला सिगाटोका का. यह एक फफूंदजनित रोग है. इस रोग के प्रभाव के कारण केले के नए पत्ते के ऊपरी भाग पर हल्का-पीला दाग या धारीदार लाइन दिखाई देता है. बाद में ये धब्बे बड़े और भूरे रंग के हो जाते हैं. इस धब्बे का केंद्र हल्का कत्थई रंग का होता है. केले में लगने वाला दूसरा रोग है काला सिगाटोका. इस रोग के कारण केले की पत्तियों के निचले भाग में काला धब्बा हो जाता है. यह धारीदार लाइन के रूप में दिखता है. यह रोग बारिश के दिनों में अधिक तापमान होने के कारण फैलता है. इस रोग के प्रभाव के कारण केला परिपक्व होने से पहले ही पूरी तरह से पक जाता है. इसके कारण इसकी गुणवत्ता सही नहीं होती है और किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ता है.
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पनामा विल्ट केले में लगने वाला तीसरा रोग है. इस रोग के प्रभाव के कारण केले के पौधे अचानक सूखने लगते हैं. या नीचे के हिस्से की पत्ती सूखने लगती है. यह इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं. पनामा विल्ट रोग के प्रकोप के कारण पत्तियां पीली होकर रंगहीन हो जाती हैं जो बाद में मुरझाकर सूख जाती हैं. इस रोग का प्रकोप होने पर पत्ते की मोटी डंठल और केले के तने से सड़ी हुई मछली की दुर्गंध आती है. इसलिए इन रोगों से उपचार के तरीके भी जानने चाहिए.
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