चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के दो पूर्व वैज्ञानिकों डॉ. हरिओम व डॉ. रामचंद्र सिहाग का चयन पदमश्री अवार्ड के लिए हुआ है. डॉ. हरिओम ने प्राकृतिक खेती व डॉ. रामंचद्र सिहाग ने मधुमक्खी पालन विषय पर बेहतरीन काम करके किसानों को फायदा दिलाया है. इन दोनों वैज्ञानिकों ने हजारों किसानों को न सिर्फ ट्रेंड किया बल्कि उनके स्वरोजगार इकाई को स्थापित करने में भी अपनी अहम भूमिका अदा की. डॉ. हरिओम ने 36 साल तक चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में अपनी सेवाएं दीं. वर्तमान में वे हरियाणा सरकार द्वारा संचालित परियोजना के तहत प्राकृतिक खेती विषय पर राज्य प्रशिक्षण सलाहकार के पद पर कार्य कर रहे हैं.
डॉ. हरिओम ने गुरुकुल कुरुक्षेत्र स्थित प्राकृतिक खेती प्रशिक्षण संस्थान में 10 हजार से अधिक किसानों एवं अन्य लोगों को प्राकृतिक खेती विषय पर ट्रेनिंग देकर उनको आत्मनिर्भर बनाया है. इसके अलावा उन्होंने देश के 500 से अधिक कृषि विज्ञान केंद्रों के आईसीएआर के वैज्ञानिकों को भी ट्रेंड किया है. इतना ही नहीं, उन्होंने नेपाल के 25 व्यक्तियों को भी ट्रेंड किया. साथ ही बीते साल गुजरात के 60 क्लेक्टरों और डीडीओ को भी प्राकृतिक खेती विषय पर अहम जानकारियां प्रदान कर उनका मूल्यांकन भी किया.
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चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार की ओर से बताया गया है कि डॉ. हरिओम ने अप्रैल 2023 में श्रीलंका के उच्चायुक्त की अध्यक्षता में वहां के प्रतिनिधियों का मार्गदर्शन करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसके अलावा उनकी अनेक वैज्ञानिक उपलब्धियों के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी सम्मानित कर चुके हैं. उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सहित चार राज्य जिनमें पंजाब, हरियाणा, गुजरात व हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के समक्ष प्राकृतिक खेती के कार्य, प्रदर्शन और संभावनाओं पर प्रस्तुतियां दी हैं. उनके नेतृत्व में जिला कैथल व कुरुक्षेत्र के 4 किसान जोनल व राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं.
दूसरी ओर, प्रो. रामचंद्र सिहाग अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शिक्षाविद् हैं. उन्होंने नवंबर 1979 से जनवरी 2012 तक चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दीं. जिनमें 1979 से 1988 तक उन्होंने विशेष रूप से मधुमक्खी पालन विषय पर अपना अहम योगदान दिया. डॉ. सिहाग के पास शिक्षण, अनुसंधान, शैक्षिक प्रबंधन व सरकारी संगठनों में काम करने का 40 वर्षों का अनुभव है. इसके अलावा उन्होंने मधुमक्खी पालन के साथ-साथ पर्यावरण जीव-विज्ञान, मछली रोग विज्ञान और वर्मीकल्चर में भी कई शोध किए हैं.
डॉ. सिहाग ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित 190 से अधिक शोध और तकनीकी लेख प्रकाशित किए हैं. साथ ही पत्रिकाएं समेत 6 पुस्तकें संपादित भी की हैं. साल 1980 से 82 तक मधुमक्खियों पर उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से रफी अहमद किदवई ममोरियल पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. इसी तरह 1993 में मधुमक्खियों के संरक्षण विषय पर कार्य करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग से समूह पुरस्कार मिला है.
साल 2005 में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में परागणकों के संरक्षण के लिए पादप विभाग भारत पर उन्हें स्क्रॉल ऑफ ऑनर प्राप्त हुआ है. उन्होंने एशियन एपीकल्चरल एसोसिएशन चीन में परागण अनुभाग के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया. वर्तमान समय में डॉ. रामचंद्र जर्नल ऑफ एंटोमोलॉजी के संपादक पद पर कार्यरत हैं. डॉ. सिहाग ने 29 पीजी स्कॉलर्स का मार्गदर्शन भी किया. साथ ही उन्होंने मधुमक्खी पालन में हजारों लोगों को स्वरोजगार दिया. उनके काम की बदौलत जो 1980 में मधुमक्खी की कालोनियां 5 हजार थी वह अब बढक़र 30 लाख हो चुकी हैं.
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