आपको जानकर शायद अटपटा लगे, लेकिन ये सच है कि मीट प्रोसेसिंग यूनिट में इस्तेमाल होने वाली मशीनों की टाइमिंग भी हलाल सर्टिफिकेट के नियमों के मुातबिक सेट की जाती है. अगर मशीनों की टाइमिंग हलाल के हिसाब से नहीं है तो उस कंपनी को सर्टिफिकेट नहीं दिया जाएगा. इतना ही नहीं कंपनी में जानवर या मुर्गे को हलाल (काटने) करने वाला कर्मचारी मुस्लिम होना जरूरी है. पोल्ट्री इंडिया एक्सपो-2023 में कई मीट प्रोसेसिंग कंपनी के स्टॉल लगे हैं. ऐसे ही एक स्टॉल पर स्टोर्म कंपनी के जनरल मैनेजर श्रीधर इंगोले ने किसान तक के साथ मीट प्रोसेसिंग और हलाल से जुड़ी कई अहम जानकारियां साझा की.
साथ ही उन्होंने बताया कि किस तरह एक प्लांट में मीट प्रोसेसिंग के दौरान साफ-सफाई का ख्याल रखा जाता है. पोल्ट्री एक्सपो में भी पोल्ट्री एक्सपर्ट चिकन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा मीट प्रोसेसिंग यूनिट लगाने और वैल्यूट एडिशन पर ही जोर दे रहे हैं.
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स्टोर्म के जीएम श्रीधर ने बताया कि हलाल सर्टिफिकेट के मुताबिक एक मुर्गे को काटने के बाद 3.45 मिनट तक हवा में लटका कर रखना होता है, जिससे की उस मुर्गे का ब्लड पूरी तरह से बाहर निकल जाए. इसलिए मशीन की टाइमिंग इस तरह सेट की जाती है कि मुर्गा काटने के बाद इतने वक्त तक वो मशीन के हैंगर से हवा में ही घूमता रहता है. जब टाइम पूरा हो जाता है तो उसे अगली प्रोसेसिंग के लिए भेजा जाता है. हलाल के इन सभी नियमों का पालन किया जा रहा है या नहीं, ये देखने के लिए हलाल कमेटी के एक्सपर्ट यूनिट का दौरा करते रहते हैं. मशीन की टाइमिंग को भी चेक करते हैं.
श्रीधर ने बताया कि मुर्गे को काटने के लिए मुस्लिम कर्मचारी रखा जाता है. ये कर्मचारी हलाल नियमों के मुताबिक छूरी की मदद से हाथ से ही मुर्गे की गर्दन काटता है. इस दौरान ये कर्मचारी पूरी तरह से हलाल के नियमों का पालन करता है. बिना इस नियम का पालन किए हलाल का सर्टिफिकेट नहीं मिलता है.
हरियाण की वीटा डेयरी हलाल दूध भी बेचती है. लेकिन ये सारा दूध एक्सगपोर्ट होता है. डेयरी के जनरल मैनेजर (प्रोडक्शन) चरण जीत सिंह ने किसान तक को बताया कि इंडोनेशिया और मलेशिया की कई कंपनी हमसे दूध खरीदती हैं. लेकिन इस सौदे पर आखिरी मुहर तभी लगती है जब हम उन्हें हलाल दूध का सर्टिफिकेट दिखा देते हैं. वैसे तो देश में हलाल सर्टिफिकेट देने वाली कई संस्थाएं हैं, लेकिन हमने दिल्ली की एक संस्था से इसके लिए संपर्क किया था. उस संस्था की एक टीम जिसमे तीन से चार लोग थे ने हमारी डेयरी का कई बार दौरा किया.
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सबसे पहले वो यह देखते हैं कि दूध कहां से आ रहा है, उस पशु को खाने में क्या-क्या दिया जा रहा है. उसके बाद डेयरी में जब दूध आ जाता है तो उसे कई दिन तक रखने के लिए उसमे कोई कैमिकल तो नहीं मिलाए जा रहे हैं. कई दिन की जांच के दौरान टीम के सदस्य इस बात की तस्दी्क करते हैं कि गाय या भैंस ने जैसा दूध दिया है वैसा ही कंपनी को सप्लाई किया जा रहा है. दूध की यह खासियत है कि उसे बिना किसी कैमिकल की मदद से कई दिन तक रखा भी जा सकता है और ट्रांसपोर्ट कर एक जगह से दूसरी जगह भेजा भी जा सकता है.
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