देश के पहाड़ी और कुछ मैदानी इलाकों में बारिश का कहर देखने को मिल रहा है. वहीं, कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहां कम बारिश के कारण फसलों के उत्पादन पर असर पड़ रहा है. इस ख़रीफ़ सीज़न में प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में कम बारिश के कारण सूरजमुखी का रकबा बुरी तरह प्रभावित हुआ है. इस वजह से किसान मक्का और दाल जैसी अन्य फसलें लगाना पसंद करते हैं. कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 18 अगस्त तक सूरजमुखी की बुआई का रकबा 64% घटकर 0.66 लाख हेक्टेयर (एलएच) रह गया है, जो एक साल पहले 1.85 लाख हेक्टेयर था. रकबे में तेज गिरावट मुख्य रूप से सबसे बड़े उत्पादक राज्य कर्नाटक में देखी गई है क्योंकि राज्य के प्रमुख किसान मॉनसून की देरी और क्षेत्र में कम बारिश से प्रभावित हुए हैं.
इसके अलावा, सूरजमुखी किसानों, जिन्हें पिछले सीजन में बाजार की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम होने के कारण कम मुआवजा मिला था, उन किसानों ने मक्का और दालें बोने का मन बना लिया है. उधर, कर्नाटक में तिलहनों की बुआई भी प्रभावित हुई है. कर्नाटक में इस साल सूरजमुखी की बुआई केवल 0.59 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 1.59 लाख हेक्टेयर था.
केंद्र ने 2023-24 खरीफ बिक्री सीज़न के लिए सूरजमुखी बीज की एमएसपी 6,760 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया है जो पिछले सीज़न की तुलना में 360 रुपये की वृद्धि है. हालांकि इस वृद्धि के बावजूद किसानों के बड़े धड़े में मूल्य को लेकर नाराजगी देखी गई. इस बार हरियाणा में एमएसपी को लेकर कई दिनों तक आंदोलन भी चला जिसमें किसान सड़कों पर अड़े रहे. कम दाम की वजह से भी किसान सूरजमुखी की खेती छोड़ रहे हैं जिससे पैदावार गिर रही है.
इस बीच सूरजमुखी की कई वैरायटी मार्केट में आ गई हैं जिनसे किसानों को अच्छी उपज मिल रही है. 2020 में यूएएस-बी द्वारा जारी सूरजमुखी संकर केबीएसएच-78, पश्चिम बंगाल और ओडिशा और उत्तर पूर्वी राज्यों में लोकप्रिय हो रहा है. केबीएसएच-85 भी ऐसी किस्म है जिसमें तेल की मात्रा अधिक होती है.
इसके अलावा, दूसरी फसलों के दाम बढ़ने से किसान उनकी तरफ आकर्षिक हो रहे हैं और उनका झुकाव सूरजमुखी की तरफ कम हो रहा है. मक्के की कीमतें 2,000 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक होने के साथ-साथ दलहन फसलों में मौजूदा तेजी के रुझान के कारण किसानों का एक वर्ग सूरजमुखी की खेती से हट गया है. इस बार स्थिति ये रही कि सूरजमुखी के बीज को इस साल कोई खरीदार नहीं मिला और दो किलोग्राम बीज के पैकेट की कीमत लगभग 1,000 रुपये पर बेची गई, जबकि एक साल पहले यह 3,000 रुपये थी.
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