देश में किन्नू का सबसे ज्यादा उत्पादन पंजाब के अबोहर में होता है. लेकिन बीते कुछ वक्तम से किन्नूस अपनी रंगत और स्वाद दोनों ही खो रहा है. यही वजह है कि पंजाब का किन्नू लगातार एक्सपोर्ट में पिछड़ रहा है. डिमांड और रेट भी कम होते जा रहे हैं. हाल ही में इस संबंध में पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (पीएयू) की एक रिपोर्ट भी आई है. लेकिन पंजाब के किन्नू की ये हालत झींगा से सुधर सकती है. ये कहना है झींगा एक्सपर्ट डॉ. मनोज शर्मा का.
उनका कहना है कि सिट्रिक वैराइटी के फल और सब्जियों के लिए झींगा से बनी खाद बहुत ही फायदेमंद और सस्ती है.पंजाब और हरियाणा में झींगा के कई बड़े तालाब भी है. यहां होने वाला झींगा किन्नू की जरूरत की खाद की पूर्ति भी कर सकता है.
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डॉ. मनोज शर्मा ने किसान तक को बताया कि पंजाब और हरियाणा दोनों जगह मिलाकर करीब 10 हजार टन झींगा हर साल हो रहा है. यहां तैयार हुआ झींगा दक्षिण भारत के राज्यों में चला जाता है. वहीं इसकी प्रोसेसिंग होती है. क्योंकि पंजाब और हरियाणा दोनों में से किसी भी राज्य में झींगा की प्रोसेसिंग यूनिट तो दूर की बात, उसका पीलिंग शेड (तुड़ाई शेड) तक नहीं है. अगर पंजाब-हरियाणा में सिर्फ पीलिंग शेड ही लग जाएं तो किन्नू, नींबू, अनार उगाने वालों को तो फायदा होगा ही साथ में झींगा उत्पादन में भी मदद मिलेगी.
जब पीलिंग शेड में झींगा की तुड़ाई होती है तो उसका मुंह और पीछे का हिस्सा तोड़ा जाता है. करीब 30 फीसद हिस्सा वेस्ट चला जाता है. इस हिसाब से पंजाब-हरियाणा में तीन हजार टन झींगा का वेस्ट निकलेगा. और अगर आंकड़ों की मानें तो तीन हजार टन झींगा वेस्ट से 30 हजार टन खाद बनेगी. क्योंकि झींगा वेस्ट के साथ और दूसरी चीजें भी मिलाई जाएंगी. बागवानी एक्सपर्ट की मानें तो ऐसे फल और सब्जियां जिसमे विटामिन सी होता है उसके लिए झींगा से तैयार की गई खाद बहुत ही फायदेमंद साबित होती है.
हाल ही में पीएयू की एक टीम ने अबोहर में किन्नू के बागों का दौरा किया था. इस दौरान पीएयू के वाइस चांसलर सतबीर सिंह गोसाल ने बताया कि पंजाब को सबसे ज्यादा किन्नू उत्पादक राज्य के तौर पर देखा जाता है. लेकिन इस वक्त किन्नू् के किसान एक्सपोर्ट में गिरावट से जूझ रहे हैं. बाजार में लागत के हिसाब से रेट भी नहीं मिल रहे हैं. इसकी वजह साफ हैं. जैसे किन्नू को ट्रांसपोर्ट करने का तरीका सही नहीं है.
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प्रोसेसिंग यूनिट की कमी है. किन्नू पर आने वाले निशान और उसमे केमिकल की मात्रा होने की वजह से एक्सपोर्ट में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. एक्सपोर्ट किए जाने वाले किन्नू की सही तरीके से ग्रेडिंग ना होना, फल में फाइटोफ्थोरा संक्रमण, वाहन प्रदूषण और फलों के पतला होने और उनका साइज छोटा होने की वजह से खासतौर पर एक्सपोर्ट में परेशानी आ रही है.
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