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Robin Singh: ईमेल में एक अक्षर की गलती ने पहुंचाया अमेरिका, आज दुनियाभर में मशहूर है यह शख्स

Robin Singh: ईमेल में एक अक्षर की गलती ने पहुंचाया अमेरिका, आज दुनियाभर में मशहूर है यह शख्स

हर शख्स की अपनी एक कहानी होती है, मगर रॉबिन सिंह की कहानी पूरी तरह फिल्मी है. अपनी अब तक की जिंदगी में उन्होंने कई तरह के काम किए, मगर राहत और सुकून नहीं मिला. फिर जो सफर शुरू हुआ वो Peepal Farm पर आकर मुकम्मल हुआ और अब उनकी ये कहानी एक मिसाल बन गई है.

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पीपल फार्म पर किसान तक से बात करते रॉबिन सिंह. पीपल फार्म पर किसान तक से बात करते रॉबिन सिंह.

दूसरे युवाओं की तरह हिमाचल प्रदेश के रहने वाले रॉबिन पढ़ाई करने के साथ ही जेब खर्च के लिए फ्रीलांस कम्यूटर प्रोग्रामिंग का काम करते थे. साथ ही दिल्ली में शिवानी को डेट भी कर रहे थे. अपना रोजमर्रा का खर्च निकालने और शादी के लिए रकम जमा करने के लिए काम को बढ़ा रहे थे. काम लेने के लिए दूसरे लोगों को ईमेल कर अपने काम के बारे में भी बताते थे. ऐसे ही एक दिन किसी को मेल भेज रहे थे तो मेल एड्रेस में एक जगह पर T की जगह K हो गया. इस एक गलती की वजह से ये मेल पहुंच गया अमेरिका के एरिजोना में डैनी के पास. डैनी वहां के एक फिल्म एक्टर का दोस्त था. डैनी ने अपने दोस्त से वादा किया था कि वो उसकी वेबसाइट बनवा देगा. इसी दौरान डैनी को रॉबिन का मेल मिल गया. 

डैनी ने रॉबिन से कांटेक्ट किया और वेबसाइट बनाने के लिए 20 डॉलर प्रति घंटे के हिसाब से देने की बात कही. बस यहीं से रॉबिन सिंह की किस्मत ऐसी पलटी की कुछ वक्त के बाद ही डैनी ने रॉबिन को अमेरिका बुला लिया. यहां रॉबिन को खूब काम मिलने लगा. रॉबिन ने थोड़े ही वक्त  में वहां एक घर भी खरीद लिया. 

नौकरी में मन नहीं लगा तो बेचने लगे सॉफ्टवेयर और बना दी कंपनी

42 साल के रॉबिन सिंह ने किसान तक को बताया, “साल 2003 में अमेरिका जाकर मुझे काम तो खूब मिला, लेकिन मैं उसके बीच फंसने लगा. मेरी जिंदगी के घंटे फिक्स होने लगे. मेरी आजादी में खलल पड़ने लगा. एक दिन मैंने यह बात डैनी को बताई कि मैं यहां नौकरी करने नहीं आया था. तब डैनी ने मुझे सब्र से काम लेने की सलाह देते हुए सोचने को कहा. इसी पर अमल करते हुए मैंने सॉफ्टवेयर बनाकर बेचना शुरू किया. लेकिन यहां भी नौकरी जैसा महसूस होने लगा कि सॉफ्टवेयर बेचने के बाद उसे पार्टी को भेजो, फिर पेमेंट की डिमांड, पेमेंट के लिए रिमाइंडर भेजना वगैरह-वगैरह. फिर इस सब का हल मैंने यह निकाला कि एक ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार किया जिस पर सारे काम हो जाते थे और मेरा वक्त बचने लगा. 

इसी से मैंने एक कंपनी भी बना दी. फिर थोड़े से ही वक्त में मेरी इतनी इनकम होने लगी कि मेरे सभी खर्च पूरे होने लगे और मैं ज्यादा से ज्यादा फ्री रहने लगा. इस दौरान में खूब खाता-पीता, यहां-वहां घूमता, घर पर वीडियो गेम्स  खेलता. किताबें पढ़ता.”

पीपल फार्म पर अपने पशु-पक्षि‍यों से घि‍रे रॉबिन सिंह.
पीपल फार्म पर अपने पशु-पक्षि‍यों से घि‍रे रॉबिन सिंह.

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एक और गोल के पीछे भागने के बजाए सब कुछ छोड़कर आ गया 

रॉबिन सिंह बताते हैं, “एक वक्त ऐसा भी आया जब मैं खुद से उकताने लगा. वक्त मिलने के बाद जो जिंदगी जिंदादिल लगने लगी थी वो ही अब खोखली सी महसूस होने लगी. क्योंकि जिंदगी में इंसान के लिए जो चीजें अहमियत रखती हैं वो सब मेरे पास था, फिर भी एक खुशी महसूस नहीं हो रही थी. पापा से सलाह ली तो उन्होंने कहा कि बच्चा  पैदा कर लो, किसी नए प्रोजेक्ट  में वक्त देने लगो. मतलब यह कि एक और नया गोल तय करो और उसके पीछे भागते रहो. लेकिन मैं अपनी जिंदगी हर रोज किसी न किसी गोल के पीछे भागते हुए खत्म नहीं करना चाहता था. मैं अमेरिका में अपना सब कुछ बेचकर साल 2011 में बीवी शिवानी के साथ वापस हिन्दुास्तान आ गया.”

तय कर लिया कि अब जिंदगी को खत्म कर लेना है 

अपनी जिंदगी के एक खास पल को किसान तक से साझा करते हुए रॉबिन सिंह ने बताया, “ मैं जब भारत आया तो हाथ में कोई काम नहीं था, तो सोचा चलो खेती करेंगे और खुद का उगाया खाएंगे. लेकिन जमीन खरीदने गया तो वो बहुत महंगी थी. खेती करना भी कोई आसान काम नहीं लगा. फिर सोचा चलो घूमते-फिरते हैं और फिल्में  बनाएंगे. इसके लिए मैंने एक जीप खरीद ली. जीप लेकर कभी जंगल में तो कभी पहाड़ों की ओर निकल जाता था. एक बार लेह के रास्ते में था. तभी ख्याल आया कि यार मैं अपनी जिंदगी से किसी को क्या दे रहा हूं. हां इतना जरूर है कि अपनी खुशी के लिए दूसरे को दर्द या परेशानी जरूर दे रहा हूं. जैसे एक अच्छे  सीन के लिए लेह जैसी खूबसूरत जगह पर डीजल जला रहा हूं. 

 

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अपनी जिंदगी से दूसरे को कुछ दे सकूं जब यह समझ नहीं आया तो मैं हिप्पी बन गया. बाल बड़े कर लिए और अपने ही रंग-ढंग में धर्मशाला में जाकर घूमने लगा. लेकिन ख्यालों ने फिर भी पीछा नहीं छोड़ा. अब यह ख्याल आया कि प्रकृति से मैं सांस ले रहा हूं, खाने-पीने को ले रहा हूं, लेकिन बदले में मैं क्या दे रहा हूं. बस यही ख्याल आते ही मैंने खुद को खत्म करने यानि सुसाइड करने की सोच ली. लेकिन सोचना आसान है खुद की जान लेना उतना ही मुश्किल. बस यही सोचकर वापस पहाड़ों पर से नीचे आ गया.” 

पीपल फार्म पर गाय-बैल के बीच रॉबिन सिंह.
पीपल फार्म पर गाय-बैल के बीच रॉबिन सिंह.

दीवार पर लगे एक पोस्टर ने दिखाया मंजिल का रास्ता  

रॉबिन ने इसके आगे बताया, “एक बार मैं ओरोविल पहुंचा. यहां मेरे पिता काम कर चुके थे. यहां एक बार मैंने सड़क किनारे लगे एक पोस्टर को देखा. वो किसी लोरियन नाम की महिला ने लगाया हुआ था. 60 साल की लोरियन बीमार रहती थी, बहुत कमजोर थी, गरीब भी थी, बावजूद इसके वो गली-मोहल्ले के कुत्तों को खाना खिलाती थी. बीमार रहने के बाद भी होटल और रेस्टोरेंट से खाना इकट्ठा कर कुत्तों को खिलाती थी. मुझे यह काम कुछ ऐसा लगा जैसे हम बिना किसी को परेशान किए किसी दूसरे के दर्द को कम और दूर कर रहे हैं. दर्द से किसी को राहत पहुंचा रहे हैं. मैं लोरियन से जुड़ गया. मैं उसके इस काम में उसकी मदद करने लगा. मुझे अब मजा आने लगा था. 

इसके बाद मैं इसी काम को दिल्ली में आकर करने लगा. लेकिन मुझे लगा कि दिल्ली में तो जानवरों की मदद करने के लिए बहुत सारे लोग हैं, लेकिन हिमाचल प्रदेश जैसी जगह में बहुत ही कम लोग हैं. दूर-दराज के इलाकों में सड़क पर लाइट न होने की वजह से बहुत सारे जानवर वाहनों से टकरा कर घायल होते रहते हैं. साथ ही छोटे जानवरों के साथ भी कुछ न कुछ होता ही रहता है. इसलिए मैंने कांगड़ा जिले की शाहपुर तहसील के धनोटू गांव में जानवरों की मदद करने और लोगों को इस अभियान से जोड़ने के लिए पीपल फार्म शुरू किया.” 

ऐसे काम करता है रॉबिन का पीपल फार्म 

साल 2014-15 से पीपल फार्म लगातार काम कर रहा है. अच्छी बात यह है क‍ि वक्त के साथ इसका दायरा भी बढ़ता जा रहा है. पीपल फार्म घायल और बीमार जानवरों को सड़क से उठाकर अपने यहां लाता है और जब तक वो ठीक नहीं हो जाते उनके इलाज, खाने-पीने और रहने का इंतजाम फार्म पर ही किया जाता है. ठीक होने के बाद जो छोड़ने लायक होते हैं तो उन्हें छोड़ दिया जाता है, अगर जरा भी लगा कि दोबारा सड़क पर छोड़ने से उनकी जिंदगी को कोई खतरा हो सकता है तो उन्हें फार्म के ही एक छोटे से हिस्से में ही जगह दे दी जाती है.