
भारत के 5 प्रधानमंत्री आए और चले गए, भारत सरकार में उस दौर में 9 खाद्य मंत्रियों ने कुर्सी संभाली, एक के बाद एक 7 रेल मंत्री भी बदलते गए. इसी दौरान भारतीय रेल की चीनी से भरी बोगियां बेहद रहस्यमय ढंग से गायब होती गईं. 1984 में इन बोगियों के गायब होने का जो सिलसिला शुरू हुआ था वो बदस्तूर जारी रहा. 1995 तक आते-आते चमत्कारिक ढंग से गायब बोगियों की संख्या 300 तक पहुंच गई. हैरानी की बात ये है कि इसी दौर में जिस देश में 64 करोड़ रुपये के बोफोर्स घोटाले पर सरकार तक गिर गई, उसी देश में और उसी दौर में 48 करोड़ रुपये की चीनी गायब हो गई. पर किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. उत्तर भारत से निकली चीनी की वो बोगियां पूर्वोत्तर भारत में पहुंचने वाली थीं, लेकिन आज 38 साल बाद भी उनकी तथाकथित तलाश जारी है. देश का ये सबसे शर्मनाक और भद्दा घोटाला है, जिसकी पड़ताल आज तक जारी है. भारतीय रेल और फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया यानी FCI के बीच आज तक मीटिंग-मीटिंग का खेल जारी है, लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि 48 करोड़ रुपये तक की चीनी गायब हो जाने के बावजूद आज तक पुलिस में FIR तक दर्ज नहीं कराई गई. किसान तक ने इस तथाकथित घोटाले की तह तक पड़ताल की और ये पड़ताल हमें कदम दर कदम चौंकाती गई. वर्तमान में जब उस तथाकथित घोटाले फाइलें बंद की जाने लगी हैं, तो ये जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर ये अद्भुत घटना घटी कैसे थी?
किसान तक के पास RTI की जो कॉपी मौजूद है, उसमें 1 जनवरी 2008 की हाई लेवल मीटिंग के मिनट्स दिए हुए हैं. कॉपी को पढ़ने पर पता चलता है कि मिनट्स जारी होने से 20 दिन पहले 12 दिसंबर 2007 को ये मीटिंग हुई थी. ये मिनट्स बताते हैं कि उस दिन की बैठक में अफसर किस कन्फ्यूजन से गुजर रहे थे. FCI और भारतीय रेल के अफसर एक ऐसे गड़बड़झाले को सुलझाने के लिए बैठे थे, जिनके दस्तावेज तक गायब हो चुके थे. मिनट्स में लिखा है कि- ‘1984 से शुगर वैगन्स के मिलान के मुद्दे को डिस्कस किया गया. चूंकि 1984 के बाद की डिटेल लिस्ट निकालना मुश्किल है, इसलिए 2007 से पीछे के अनकनेक्टेड वैगन्स को खोजने का फैसला किया गया है.’
दरअसल मीटिंग में चर्चा इस बात पर हो रही थी कि 1984 के बाद FCI ने जो चीनी की खेप पूर्वोत्तर भारत के लिए भेजी थी, उनमें से चीनी से लदी बोगियां गायब होती गईं. एक-एक कर बोगियां गायब होती रहीं और दस साल के अंदर 1995 का वित्त वर्ष खत्म होने से पहले तक रेल के 293 डिब्बे गायब हो गए. इनमें लदी चीनियों का तो अता-पता नहीं ही चला, रेलवे के टनों वजनी डिब्बे भी हवा हो गए. इसी मुद्दे पर जब 2007 के दिसंबर महीने में रेलवे और FCI अफसरों की टीम मीटिंग करने बैठी तो उनके सामने सबसे बड़ा प्रश्न था कि 1984 के बाद का तो लेखा जोखा ही मौजूद नहीं है. इसके बाद देश के काबिल अफसरों ने तरीका निकाला कि जांच को 1984 से बढ़ाते हुए आगे ले जाने की जगह 2007 से पीछे ले जाया जाए. ताकि जांच किसी ठोस नतीजे की ओर बढ़ सके. अब मीटिंग के मिनट्स से पता चलता है कि चूंकि कई बोगियों के गायब होने की घटना की जांच करना अब असंभव हो चुका है, इसलिए 24 मार्च, 2015 को FCI ने 48 करोड़ में से कुछ मामलों की जांच की जिद छोड़ दी और 18 बोगियों में भरी चीनी का क्लेम माफ कर दिया.
RTI से हुए खुलासे में पता चला कि 1984-85 से 1994-95 के बीच 10 सालों में FCI के जोनल ऑफिस गुवाहटी के लिए चीनी की स्पेशल ट्रेनें भेजी गईं थी. लेकिन चीनी के कुछ डिब्बों के गायब होने की शिकायत जोनल ऑफिस गुवाहटी से दर्ज कराई जाती रही. जाहिर है, ये घटना बताती है कि चीनी से भरे डिब्बों के गायब होने की शिकायत दर्ज होती रही होगी, फिर भी चीनी के डिब्बे गायब होते रहे होंगे. FCI से रेलवे और रेलवे से FCI के बीच मीटिंग्स का खेल चलता रहा होगा. इन मीटिंग्स में इस गड़बड़झाले का कोई हल नहीं निकला और शायद मंशा भी नहीं रही होगी. ये गड़बड़झाला इतना बड़ा था, इसका खुलासा हुआ 14 जून 2022 को, जब FCI ने RTI के तहत इसकी जानकारी दी और जिस RTI की कॉपी किसान तक के पास भी मौजूद है.
24 मार्च साल 2015 का इस मामले से जुड़ा एक पत्र भी जोनल ऑफिस ने भेजा है. इस पत्र में चीनी से संबंधित 48 करोड़ रुपये की बात की गई है. लेकिन पत्र के साल पर गौर करें तो जोनल ऑफिस की ओर से साल 2022 में भेजा गया ये पत्र बताता है कि शायद इस क्लेम का अभी तक कोई हल नहीं निकला है.
29 मार्च 2019 को जोनल ऑफिस गुवाहटी ने हेडक्वार्टर, दिल्ली समेत FCI के नागालैंड ऑफिस को एक पत्र लिखा है. पत्र में चीनी से भरे 293 डिब्बे के बारे में जिक्र किया गया है और बताया गया है कि इन डिब्बों में चीनी से भरी 1.59 लाख बोरियों मौजूद थीं. जोनल ऑफिस के पत्र में बाकायदा उन डिब्बों के नंबर का जिक्र है, जिन डिब्बों के साथ-साथ चीनी से भरी बोरियां भी गायब हो गईं. RTI में साल 2015 और 2019 के पत्र के साथ ही और भी पत्रों की जानकारी दी गई है. लेकिन जोनल ऑफिस की ओर से साल 2022 तक इस पत्र के बारे में चर्चा करना ये बताता है कि अभी तक यह डिब्बे नहीं मिले हैं. FCI ने यह भी सूचना दी है कि उसने गायब डिब्बों से संबंधित हर तरह की लिस्ट रेलवे को दे दी है, लेकिन रेलवे की तरफ से किसी भी तरह की लिस्ट एफसीआई को नहीं दी गई है.
ये एक ऐसा गड़बड़झाला है, जो पांच प्रधानमंत्रियों, सात रेल मंत्रियों और 9 खाद्य मंत्रियों के कार्यकाल में पसरा हुआ है. पहले प्रधानमंत्रियों की लिस्ट देख लेते हैं. अक्टूबर 1984 तक इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री रहीं. चीनी के डिब्बों के गायब होने की शुरुआत उनके कार्यकाल के आखिरी महीनों में शुरू हुई. इसके बाद दिसंबर 1989 तक इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री रहे. इसके बाद 11 महीनों के लिए वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने और 8 महीनों के लिए चंद्रशेखर. जून 1991 से पीवी नरसिंहा राव का कार्यकाल शुरू हुआ, जो 1996 तक चला. इस दौरान देश के सात रेलमंत्री बने. गनी खान चौधरी गए तो बंसी लाल ने कुर्सी संभाली. उनके बाद मोहसिना किदवई, माधव राव सिंधिया, जॉर्ज फर्नांडीज, जनेश्वर मिश्र और सीके जाफर शरीफ देश के रेल मंत्री बने. चूंकि मामला FCI का है तो इस लिहाज से ये गड़बड़झाला भारत के 9 खाद्य मंत्रियों के कार्यकाल में पसरा हुआ है. इस लंबे-चौड़े नेतृत्व के बीच अफसर मीटिंग पर मीटिंग करते रहे और 48 करोड़ की चीनी गायब हो गई.
FCI ने 29 मार्च 2019 को एक लेटर जारी किया है. सरकारी भाषा में कहें तो यह एक तरह का ऑर्डर है. जोनल ऑफिस गुवाहटी ने यह ऑर्डर अपने हेडक्वार्टर, दिल्ली समेत FCI के नागालैंड ऑफिस को भेजा है. ऑर्डर में साफतौर पर लिखा है कि गायब चल रहे 293 डिब्बों का क्लेम वापस लेने की अनुमति सक्षम विभाग द्वारा दे दी गई है. वहीं 18 डिब्बों को बट्टे खाते में डालने का जिक्र भी इस ऑर्डर में किया गया है.
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जानकारों की मानें तो जैसे ही कोई रैक (स्पेशल ट्रेन) कम बोगी के साथ FCI के गोदाम पर पहुंचती है तो उसकी लिखा-पढ़ी शुरू हो जाती है. सबसे पहले FCI रेलवे को पत्र भेजकर रैक में जितनी भी कम बोगियां हों, उसकी सूचना देता है. इसके बाद रेलवे उस लिस्ट पर बोगियों की तलाश करता और बताता है कि आपकी बताई गई बोगियों में से कितनी बोगियां ट्रेस कर ली गई हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि बोगी ट्रेस ही नहीं होती. रेलवे उनकी तलाश करता रहता है और ये तलाश कभी पूरी ही नहीं होती.
अब जो बोगी ट्रेस नहीं होती हैं उसकी तलाश जारी रहती है. इस दौरान दोनों विभाग एक-दूसरे को चिठ्ठी भी लिखते हैं. रिकॉन्सिलिएशन (सुलह/समाधान) की मीटिंग भी होती है. 1984 से गायब चीनी की बोगियों का मामला भी इसी तरह का था. 38 साल जैसे लम्बे वक्त तक मामला लिखा-पढ़ी में चलता रहा. रेलवे बोगियों की तलाश में जुटा रहा. किसान तक ने इस मामले पर FCI और रेलवे का आधिकारिक वर्जन जानना चाहा, लेकिन खबर लिखे जाने तक किसी भी विभाग ने प्रतिक्रिया नहीं दी है.
एफसीआई के एक अधिकारी ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया कि हम लगातार रेलवे के साथ बैठकें कर रहे हैं. गायब बोगियों से संबंधित लिस्ट भी रेलवे को दी जा चुकी है. बैठक में रेलवे के अधिकारी कहते हैं कि बोगियां गायब नहीं हुई हैं. किन्हीं वजहों के चलते बोगियां दूसरी जगह खाली हो गई हैं. लेकिन कहां, कब, कौन सी बोगी खाली हुई है, इसकी लिस्ट आजतक रेलवे ने नहीं दी है. एक अधिकारी ने तो यह भी बताया कि मामला 30 से 38 साल पुराना होने के चलते संबंधित फाइलें ही अब नहीं मिल रही हैं.
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