भारत के ‘मिलेट मैन’ के नाम से मशहूर पीवी सतीश का लंबी बीमारी की वजह से रविवार हैदराबाद में निधन हो गया. आम लोगों में मिलेट्स को लोकप्रिय बनाने के लिए उनके काम को हमेशा याद रखा जाएगा. तेलंगाना के जहीराबाद क्षेत्र में मिलेट्स और वंचित महिलाओं के साथ काम करने के लिए उन्होंने डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी (डीडीएस) की स्थापना की थी. उनका निधन 78 साल की उम्र में उस वक्त हुआ है, जब पूरी दुनिया में मिलेट ईयर बनाया जा रहा है. डीडीएस ने साबित कर दिया है कि छोटी फसलें बड़े काम की साबित हो सकती हैं. इस संगठन को उन्होंने अपने समान विचारधारा वाले लोगों के साथ बनाया था.
पिछले करीब 40 साल में उन्होंने लगभग 3,000 महिलाओं और छोटे किसानों को ग्राम-स्तरीय एसोसिएशन बनाने में मदद की. ये एसोसिएशन फसल योजनाओं, बीज आवश्यकताओं, ऋण आवश्यकताओं और फसल कटाई के बाद के प्रबंधन पर चर्चा करते हैं. पीवी सतीश हमेशा छोटे किसानों का समर्थन करते रहे. मिलेट यानी मोटे अनाजों के मुद्दे पर किसानों का समर्थन किया. हमेशा यही तर्क दिया कि मोटे अनाजों को खाद्य श्रृंखला में प्रमुखता मिलनी चाहिए.
‘मिलेट मैन’ ने डीडीएस के जरिए किसानों द्वारा उत्पादित अनाज के लिए बाजार लिंकेज प्रदान करने के लिए अपने शहरी संपर्कों का उपयोग किया. हमेशा मोटे अनाजों की पैरोकारी की. आज पूरी दुनिया मोटे अनाजों की पौष्टिकता और उसके पर्यावरण अनुकूल होने के मसले पर बात कर रही है. डीडीएस हर साल वार्षिक जैव विविधता उत्सव के दौरान मोटे अनाजों के मॉडल को प्रदर्शित करता है, जो भारत और विदेशों के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता है. डीडीएस ने सतीश को याद करते हुए कहा कि मोटे अनाजों को मुख्यधारा में लाने में पीवी सतीश के जीवन भर के योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा.
भारत में काफी उपेक्षित रहे मोटे अनाजों को लोकप्रिय बनाने के लिए जो कुछ लोग काम कर रहे थे. उनमें पीवी सतीश का नाम प्रमुख था. इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट घोषित होने के बाद आज मोटे अनाज काफी लोकप्रिय हो चुके हैं. भारत और दूसरे कई देशों में मिलेट्स पर अब जागरूकता फैलाई जा रही है. इसकी खेती बढ़ाने की बात हो रही है, क्योंकि ऐसे अनाजों के फायदे की जानकारी लोगों को मिल चुकी है.
मोटे अनाजों की खेती और जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए सतीश ने काफी काम किया था. यही नहीं तेलंगाना के कई गांवों की हजारों गरीब महिलाओं की आजीविका में सुधार किया. अशिक्षित महिलाओं के बीच से, सबसे हाशिए पर रहने वाले समुदायों से शक्तिशाली नेता तैयार किए, जो परिवर्तन के सशक्त दूत बने. सार्वजनिक वितरण प्रणाली में मोटे अनाजों को शामिल करने के हालिया प्रयासों का श्रेय उनके मार्गदर्शन में डीडीएस के काम को जाता है.
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