कई देशों में मोटे अनाज एक प्रमुख फसल हैं. सामान्य तौर पर मोटे अनाज से लोगों को बाजरा का ख्याल आता है. इसका कारण यह है कि बाजरा मोटे अनाजों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. वहीं मोटे अनाजों की खेती अफ्रीका और एशिया के क्षेत्रों में की जाती है. ये प्राचीन अनाज हैं. दूसरी फसलों के मुकाबले ये बहुत कम पानी में पैदा होने के अलावा कीटाणुरोधी होते हैं.
वहीं, दुनियाभर के कृषि क्षेत्र के लगभग 5% हिस्से में मोटे अनाजों की खेती होती है, लेकिन मोटे अनाजों का दुनियाभर के अनाज उत्पादन में महज 1.5 प्रतिशत ही योगदान है. कुल मिलाकर मोटे अनाज कुल अनाज उत्पादन के मामले में पिछड़े हुए हैं. आईए जानते हैं कि मोटे अनाजों के पिछड़ने के वजह क्या है.
भारत जैसे विकासशील देशों में, कुछ वाणिज्यिक कृषि क्षेत्रों को छोड़कर, उन्नत तकनीकों के सीमित इस्तेमाल के साथ मोटे अनाजों की खेती होती है. ये फसलें आमतौर पर सिंचाई या रासायनिक उर्वरक के बिना, हल्की, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी पर उगाई जाती हैं, जिनमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा कम होती है.
ध्यान देने वाली बात है जब सिंचाई की सुविधा अच्छी उपलब्ध होती है, तो किसान अधिक लाभकारी फसलों की खेती करना पसंद करते हैं. हालांकि, कुछ क्षेत्रों (जैसे भारत में गुजरात) में अपवाद होते हैं, जहां दुधारू पशुओं के चारे के रूप में मोटे अनाज फसल के अवशेषों की मौसमी उच्च मांग होती है. इसके अलावा, उच्च मूल्य वाली फसलों से पहले या बाद में कम समय में तैयार होने वाले मोटे अनाज उन क्षेत्रों में उगाए जाते हैं, जहां दो फसलों के सीजन के मध्य लंबा अंतर होता है.
उक्त कारणों के अलावा, कई अन्य कारणों से मोटे अनाजों की पैदावार आमतौर पर अन्य अनाजों (जो कि अधिक अनुकूल परिस्थितियों में उगाई जाती हैं) की पैदावार की तुलना में बहुत कम होती है. हालांकि, दुनियाभर के अनाज क्षेत्र के लगभग 5 फीसद हिस्से में मोटे अनाजों की खेती की जाती है, लेकिन दुनियाभर के अनाज उत्पादन में मोटे अनाजों का सिर्फ 1.5 फीसद योगदान है. इसके अलावा, मोटे अनाजों की पैदावार में एक मौसम से दूसरे मौसम में काफी अंतर देखा जाता है. उदाहरण के लिए, नाइजर में, मोटे अनाजों की औसत उपज साल 1988 में 510 किग्रा/हेक्टेयर से गिरकर साल 1990 में 240 किग्रा/हेक्टेयर हो गई, फिर साल 1992 में बढ़कर 360 किग्रा/हेक्टेयर हो गई.
विकासशील देश, मुख्य रूप से एशिया और अफ्रीका में, मोटे अनाजों के वैश्विक उत्पादन का लगभग 94% हिस्सा होता है, जो लगभग 28 मिलियन टन (वर्ष-1992-94 औसत) अनुमानित है. इसमें से बाजरा लगभग 15 मिलियन टन, फॉक्सटेल मिलेट 5 मिलियन टन, प्रोसो मिलेट 4 मिलियन टन और रागी 3 मिलियन टन से अधिक है. लगभग सभी मोटे अनाजों का उत्पादन छोटे किसानों द्वारा घरेलू खपत और स्थानीय व्यापार को ध्यान में रखते हुए किया जाता है. पर्ल मिलेट, विशेष रूप से, दुनिया के कुछ सबसे गर्म, सूखे खेती वाले क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण है.
गौरतलब है कि विकसित देशों में बहुत सीमित मात्रा में मोटे अनाजों का उत्पादन होता है. कुछ देश मोटे अनाजों के आंकड़ों को ज्वार और अन्य अनाज के साथ जोड़ते हैं, और मोटे अनाजों को सामान्य श्रेणी "अन्य मोटे अनाज" के तहत शामिल करते हैं. ऊपर बताए गए कई आंकड़े केवल मोटे अनुमान हैं; इसलिए, इन आंकड़ों से प्राप्त विश्लेषणों को कई अन्य जगहों से भी पुष्टि की भी दरकार है!
दुनिया के अधिकांश हिस्सों में, मोटे अनाजों को स्थानीय मांग और अपनी जरूरतों के लिए उगाया जाता है. वहीं, बाजार के दृष्टिकोण से उत्पादन, विशेष रूप से अफ्रीका में जोखिम भरा है. क्योंकि, उत्पादन में उतार-चढ़ाव होने पर कीमतों में भी उतार-चढ़ाव देखने को मिलेगा, खासकर उन क्षेत्रों में जहां मोटे अनाज मुख्य खाद्य फसल हैं. अनाज के अलावा मोटे अनाजों की खेती पशुओं के चारा के लिए भी की जाती है. दरअसल, मिलेट फसल के अवशेष चारे की आपूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. उदाहरण के लिए, भारत में मिलेट की कुछ लोकप्रिय किस्में 3 मीटर से अधिक लंबी होती हैं, और उनसे प्राप्त किए जाने वाले चारे की मांग हमेशा होती है, भले ही अनाज की पैदावार अपेक्षाकृत कम हो.
मोटे अनाज कई प्रकार के होते हैं जैसे- फॉक्सटेल मिलेट, फिंगर (रागी) मिलेट, बार्नयार्ड मिलेट, ब्राउनटॉप मिलेट, लिटिल मिलेट, कोदो मिलेट, पर्ल मिलेट और प्रोसो मिलेट आदि. लेकिन, इनमें सबसे महत्वपूर्ण प्रजातियां हैं पर्ल मिलेट, रागी बाजरा, प्रोसो मिलेट और फॉक्सटेल मिलेट आदि.
दुनियाभर में की जाने वाली मोटे अनाजों में पर्ल मिलेट का उत्पादन का लगभग 50% है. वहीं, अफ्रीका और एशिया के जिन क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है उन क्षेत्रों के खाद्य सुरक्षा में योगदान में मोटे अनाजों की सबसे महत्वपूर्ण प्रजाति है. फिंगर मिलेट की खेती बड़े स्तर पर अफ्रीका और एशिया के ठंडे और अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में खाद्य फसल के रूप में की जाती है.
प्रोसो मिलेट की खेती एशिया के कुछ हिस्सों में खाने के लिए किया जाती है. वहीं फॉक्सटेल मिलेट एशिया (मुख्य रूप से चीन) और यूरोप के कुछ हिस्सों में होती है. मोटे अनाजों की अन्य प्रजातियां (बार्नयार्ड, कोदो और छोटे बाजरा, फोनिओस और टेफ) स्थानीय रूप से महत्वपूर्ण खाद्यान्न हैं जो छोटे क्षेत्रों या अलग-अलग देशों तक सीमित हैं. वहीं, मोटे अनाजों की विभिन्न प्रजातियां अपनी भौतिक विशेषताओं, गुणवत्ता, मिट्टी, जलवायु आवश्यकताओं और विकास अवधि में भिन्न होती हैं.
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