कृषि अनुसंधान और जलवायु विज्ञान के क्षेत्र में एक नई क्रांति की शुरुआत होने जा रही है. डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (डॉ. राजेंद्र प्रसाद सीएयू), पूसा और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (SAC), अहमदाबाद के बीच हुई साझेदारी के तहत बिहार में उच्च-रिज़ॉल्यूशन एडी कोवेरियंस टावर की लगाया जाएगा. यह हाईटेक ईसी टावर विश्वविद्यालय परिसर में लगेगा, जिसका उद्देश्य, कृषि और जलवायु अध्ययन के लिए उच्च गुणवत्ता वाले फ्लक्स डेटा (जैसे CO₂, जलवाष्प, ऊर्जा प्रवाह) इकट्ठा करना और वैज्ञानिक अनुसंधान को मजबूती देना है. यह पहल विशेष रूप से अंतरिक्ष आधारित कृषि मिशनों के लिए मजबूत आधार तैयार करेगी.
ईसी (Eddy Covariance) टावर से उच्च गुणवत्ता वाले फ्लक्स डेटा (जैसे CO₂, जलवाष्प, ऊर्जा प्रवाह) आकलन किए जाएंगे. यह डेटा कृषि और जलवायु अध्ययन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. इस तकनीक के माध्यम से सतह और वायुमंडल के बीच गैसों और ऊर्जा के प्रवाह को मापा जा सकता है, जिससे खेती की प्रक्रिया को बेहतर समझने और जलवायु के प्रभावों का आकलन करने में सहायता मिलेगी.
वहीं, ईसी टावर की मदद से खेतों से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड और जलवाष्प के प्रवाह की निगरानी की जाएगी. यह वैज्ञानिकों को पर्यावरणीय परिवर्तनों और फसल चक्र के बीच संबंधों को समझने में मदद करेगा. साथ ही फसल उत्पादकता का सटीक अनुमान भी लगाया जा सकता है. जिससे कृषि योजना और प्रबंधन में सहायता मिलेगी.
ईसी टावर से प्राप्त डेटा से वैज्ञानिक ग्रॉस प्राथमिक उत्पादकता (GPP) और शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता (NPP) जैसे पारिस्थितिकीय संकेतकों का विश्लेषण कर सकेंगे. इसके अलावा, वाष्पीकरण, जल संतुलन, फसल जल उपयोग दक्षता (WUE) और जल उत्पादकता (CWP) का मूल्यांकन भी किया जा सकेगा. यह सब जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा.
इसरो और डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा समस्तीपुर के बीच यह सहयोग देश के कृषि अनुसंधान क्षेत्र के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा. ईसी टावर की स्थापना न केवल जलवायु और कृषि के मध्य संबंधों को बेहतर समझने में सहायक होगी, बल्कि यह किसानों के लिए अधिक टिकाऊ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित खेती के मार्ग प्रशस्त करेगा. यह पहल विज्ञान और किसान के बीच सेतु बनाकर भारत को जलवायु-लचीली कृषि की दिशा में मजबूती से आगे बढ़ने में मदद करेगी. साथ ही बिहार जैसे कृषि-प्रधान राज्य के लिए विशेष रूप से लाभकारी सिद्ध होगा.
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