लेह-कारगिल को बर्फीला रेगिस्तान भी कहा जाता है. 100 से 150 रुपये किलो का जो टमाटर अभी हम खा रहे हैं उसे वहां के लोग साल के चार से छह महीने तक खाते हैं. कुछ ऐसा ही हाल दूसरी सब्जियों का भी है. वजह बर्फवारी और माइनस डिग्री का तापमान है. लेकिन ऐसे हालात में भी लेह-कारगिल के किसानों ने बहुत ही महंगे और इम्पोर्ट किए जाने वाले लिलियम- ग्लेडियोलस और टयूलिप के फूल उगाकर कामयाबी की इबारत लिखी है. आज उनके उगाए फूल दिल्ली के बाजार में ऊंचे दाम पर बिक रहे हैं. पायलट प्रोजेक्ट के तहत ही लेह-कारगिल के किसानों ने फूल बेचकर 50 लाख रुपये से ज्यादा कमाए हैं.
किसानों को इस मामले में मदद कर रहा है इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश. हवाई जहाज से किसानों के फूल दिल्ली तक आते हैं. गौरतलब रहे फ्लोरीकल्चर मिशन के तहत देश के कई राज्यों में फूलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.
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आईएचबीटी के डॉ. भव्य भार्गव ने किसान तक को बताया कि फ्लोरीकल्चर मिशन के तहत लेह में बल्ब वाले लिलियम-ग्लेडियोलस और टयूलिप की खेती की शुरुआत की गई थी. इसके लिए लेह के चार गांव रणबीरपुर, स्टकना, तुक्चा और सांकर में, वहीं कारगिल के तीन गांव कुर्बाथांग, सांकू और कारगिल में 10 हजार पौधे लगाए गए थे. पौधे लगाने से पहले हमारे साइंटिस्ट की टीम कई बार इन इलाकों का दौरा कर चुकी थी. यहां ऐसे फूल उगने की बहुत संभावनाएं थी. और हुआ भी ठीक वैसा ही.
इसके बाद साल 2022 में इस खेती को बढ़ावा देने के लिए फिर से उन्हीं जगह पर 1.60 लाख पौधे लिलियम के और 1.50 लाख पौधे ग्लेडियोलस के लगाए गए. मौसम के हिसाब से फूलों की खेती में कहीं-कोई परेशानी नहीं आई.
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डॉ. भव्य ने बताया कि आज लेह और कारगिल में 80 किसान फूलों की खेती के लिए हमारे साथ जुड़े हुए हैं. पायलट प्रोजेक्ट के तहत ही किसानों को अच्छी इनकम हुई है. सबसे बड़ी बात ये है कि फसल तैयार होते ही उन्हें बाजार भी मिल गया. लिलियम-ग्लेडियोलस और टयूलिप की डिमांड को देखते हुए दिल्ली में ये फूल हाथ-ओं-हाथ बिक रहे हैं. लेह-कारगिल में होने वाले फूल हवाई जहाज से दिल्ली आ जाते हैं.
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