जीएम सरसों फेल, बीज के लिए पूरा नहीं कर रही मानक, जानिए कितनी है पैदावार

जीएम सरसों फेल, बीज के लिए पूरा नहीं कर रही मानक, जानिए कितनी है पैदावार

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा पिछले रबी सीजन में छह अलग-अलग स्थानों पर किए गए फील्ड परीक्षणों के परिणामों के अनुसार, डीएमएच-11 की उपज लगभग 26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और इसमें तेल की मात्रा 40 प्रतिशत है. लेकिन इसका वजन प्रति 1,000 बीजों पर लगभग 3.5 ग्राम है, जो कि बीज किस्म के रूप में पात्र होने के लिए 4.5 ग्राम के मानक से कम है.

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जीएम सरसों फेल, बीज के लिए पूरा नहीं कर रही मानक, जानिए कितनी है पैदावारजीएम सरसों क्यों हुई विफल?

पिछले कुछ सालों से जीएम सीड्स यानी जेनेटिकली मॉडिफाइड बीज (Genetically Modified Seeds) को लेकर हंगामा मचा हुआ है. जीएम के समर्थकों की ओर से दावा किया जा रहा है कि इससे देश में सरसों का उत्पादन बढ़ जाएगा..यानी एडिबल ऑयल के मामले में भारत आत्मनिर्भर हो जाएगा, लेकिन कई वैज्ञानिक इसे इंसान और खेत दोनों के लिए खतरनाक बता रहे हैं. इसी बीच भारत की पहली आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों की फसल धारा मस्टर्ड हाइब्रिड (डीएमएच-11) बीज के रूप में व्यावसायिक रिलीज के लिए आवश्यक न्यूनतम वजन मानदंड को पूरा करने में असफल रही है. हालांकि, सूत्रों के मुताबिक इसकी उपज और तेल सामग्री के दावों में कोई कमी नहीं पाई गई है. हालांकि, इससे ज्यादा पैदावार देने वाली गैर जीएम सरसों की किस्में भी मौजूद हैं.

सूत्रों ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा पिछले रबी सीजन में छह अलग-अलग स्थानों पर किए गए फील्ड परीक्षणों के परिणामों के अनुसार, डीएमएच-11 की उपज लगभग 26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और इसमें तेल की मात्रा 40 प्रतिशत है. लेकिन इसका वजन प्रति 1,000 बीजों पर लगभग 3.5 ग्राम है, जो कि बीज किस्म के रूप में पात्र होने के लिए 4.5 ग्राम के मानक से कम है.

आगे और रिसर्च की जरूरत 

विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार इस अध्ययन से आईसीएआर के आठ स्थानों में से छह में फील्ड परीक्षण जारी रख सकती है, जहां वह भारत की पहली जीएम खाद्य फसल का परीक्षण कर रही थी. बता दें कि 23 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि "पर्यावरण को होने वाले नुकसान को नजरंदाज नहीं किया जा सकता". हालांकि, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह आने वाले सीजन में जीएम सरसों की बुआई क्षेत्रीय परीक्षणों के लिए करना चाहता है, न कि व्यावसायिक रिलीज के लिए.

सरसों दानों के वजन का मामला

सरसों के बीज के कम वजन को लेकर विशेषज्ञों की राय काफी बंटी हुई है. जबकि एक वर्ग का कहना है कि "वजन कोई मुद्दा है ही नहीं", वहीं दूसरे विशेषज्ञों का कहना है कि बीज का आकार छोटा होने की वजह से अगर कृषि यंत्रों से कटाई की गई तो इससे उपज में नुकसान हो सकता है. मजदूरों की समस्या के कारण मैन्युअल कटाई में गिरावट आई है. यानी फसल कटाई को लेकर कई लोग सवाल उठा रहे हैं.

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मामले की सुनवाई 10 अक्टूबर को

सूत्रों ने बताया कि आईसीएआर फील्ड ट्रायल के परिणाम अटॉर्नी-जनरल को सौंप दिए गए हैं, जिसे वो 10 अक्टूबर को अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रख सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट जीएम सरसों की मंजूरी पर सुनवाई कर रही है, जिसे जीन कैंपेन और कार्यकर्ता अरुणा रोड्रिग्स ने चुनौती दी है.

आपको बता दें पिछली सुनवाई में अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल ऐश्वर्या भाटी सरकार की ओर से दो प्रस्ताव लेकर आईं थी. एक, इसमें कहा गया कि विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ परीक्षणों को संभाल सकते हैं. वैकल्पिक रूप से, इसने अदालत से आईसीएआर के 10 नामित स्थलों में से आठ में बोई गई जीएम सरसों की फसलों पर अनुसंधान की अनुमति जारी रखने का आग्रह किया. 

क्या है जीएम बीज का मतलब

सरल शब्दों में कहें तो पौधों के जीन या डीएनए में बदलाव कर तैयार किए गए बीजों को जीएम बीज कहा जाता है. बायो इंजीनियरिंग से जुड़े वैज्ञानिक पौधों की आनुवंशिकी को समझते हैं. इसका मतलब है कि वे पौधे के प्राकृतिक डीएनए का पता लगा सकते हैं. इसके बाद इसमें कृत्रिम रूप से कुछ विदेशी जीन डाले जाते हैं, जिससे पौधे का मूल डीएनए बदल जाता है. अगर किसी पौधे के जीन में बदलाव आ जाए और वह अपने मूल स्वरूप से अलग हो जाए तो उससे तैयार बीजों को जीएम बीज कहा जाता है.

क्या है जीएम मस्टर्ड से जुड़ा विवाद

अब बात आती है जीएम सरसों की. दावा किया जा रहा है कि जीएम सरसों से देश में सरसों तेल का उत्पादन 28 फीसदी तक बढ़ जाएगा. अब सवाल उठ रहा है कि जब किसान जीएम बीजों से बंपर सरसों उगा सकते हैं तो इसका विरोध क्यों किया जा रहा है? तो इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि जीएम बीजों के कारण किसानों को हर साल बीज खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. यानी किसान अब बीज के मामले में आत्मनिर्भर नहीं रहेगा. दूसरे, जीएम बीजों के आने के बावजूद फसल नई बीमारियों और नए कीड़ों से प्रभावित हो सकती है. जिससे देश के किसान कीटनाशक बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के चंगुल में फंस सकते हैं.

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