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OMG! बंदरों ने बदल दी किसानों की जिंदगी, आफत बनकर आए थे आइडिया बनकर छा गए, पढ़ें पूरी कहानी

OMG! बंदरों ने बदल दी किसानों की जिंदगी, आफत बनकर आए थे आइडिया बनकर छा गए, पढ़ें पूरी कहानी

जम्मू-कश्मीर के किसान बंदरों की वजह से काफी परेशान थे. बंदर उनकी पूरी फसल को बर्बाद कर दे रहे थे. हालांकि अब यहां के किसान बंदरों से परेशान नहीं हैं, और उन्हें आमदनी भी अच्छी हो रही है. ऐसे में आइए जानते हैं किसानों ने ऐसा क्या उपाय किया है जिससे वो बंदरों से परेशान भी नहीं हैं और आमदनी भी अच्छी हो रही है-

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बंदरों के आतंक से परेशान किसानों ने शुरू की औषधीय पौधों की खेती बंदरों के आतंक से परेशान किसानों ने शुरू की औषधीय पौधों की खेती

खेती-किसानी के दौरान मौसम के बाद किसानों को सबसे ज्यादा डर जंगली जानवरों से रहता है. वही जंगली जानवरों और किसानों का संघर्ष सदियों से चलता आ रहा है. जंगली जानवर कभी-कभी खेतों में खड़ी पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं. जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है. नतीजतन, किसान इन जंगली जानवरों से फसलों को बचाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं. हालांकि, कई बार इन हथकंडों को अपनाने के बाद भी किसानों को सफलता नहीं मिलती है, तो परंपरागत फसलों की खेती को छोड़ नई फसलों की खेती पर शिफ्ट हो जाते हैं.

कुछ ऐसा ही वाकया जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में हुआ है. यहां के किसान बंदरों से परेशान होकर परंपरागत खेती छोड़ औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं जिसमें उन्हें शानदार मुनाफा भी हो रहा है. 

किसान कर रहे औषधीय पौधों की खेती

जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में किसान अपनी फसलों को बंदरों से बचाने के लिए आजकल चावल, मक्का और गेहूं जैसी फसलों की जगह पर औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं. यहां पर जंगलों और फलों की कमी ने जंगली बंदरों को खेतों पर धावा बोलने के लिए मजबूर किया है, जिससे किसानों को काफी नुकसान हुआ है. वहीं, जंगली बंदरों द्वारा किए जा रहे नुकसान से बचाव के लिए, आयुष मंत्रालय के कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को चावल, गेहूं और मक्का जैसी पारंपरिक फसलों के बजाय जड़ी-बूटियां उगाने की सलाह दी है, इससे न केवल किसानों की फसल सुरक्षित हुई है, बल्कि आमदनी में भी इजाफा हुआ है.

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जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में वन क्षेत्रों के पास स्थित गांवों के कई किसानों ने इस समाधान को अपनाया है और अब सुगंधित पौधों जैसे लैवेंडर और टैगेटस मिनुटा के साथ-साथ ट्रिलियम (नाग-चत्री), सोसुरिया कोस्टस (कुथ), इनुला (मन्नू), सिंहपर्णी, जंगली लहसुन और बलसम सेब (बान-काकरी) जैसे औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं. 

किसान कमा रहे हैं बेहतर मुनाफा

रिपब्लिक भारत की रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारियों ने बताया कि इन औषधीय पौधों का स्वाद कड़वा होता है और इनमें तेज तीखी गंध होती है. नतीजतन, बंदर इनका सेवन नहीं करते हैं. एक स्थानीय व्यापारी तौकीर बागबान ने कहा कि औषधीय उत्पाद बनाने वाली कंपनियों द्वारा जड़ी-बूटियों की बढ़ती मांग के कारण किसान अब बेहतर मुनाफा कमा रहे हैं. बागबन ने कहा, "आयुष मंत्रालय के अधिकारी अपने-अपने क्षेत्रों में मिट्टी, पानी और हवा की स्थिति के आधार पर उपयुक्त फसलों की खेती के लिए किसानों को शिक्षित कर रहे हैं. इसके अलावा इन्फेक्शन से बचने के लिए आवश्यक ट्रेनिंग और रोपण सामग्री भी उपलब्ध करवाते हैं."

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अधिकारियों ने बताया कि जम्मू-कश्मीर के चिनाब क्षेत्र में 3,000 से अधिक किसान पहले से ही जड़ी-बूटियों और सुगंधित पौधों की खेती कर रहे हैं, जिनमें से 2,500 अकेले भद्रवाह में स्थित हैं. सरतिंगल गांव के किसान नवीद बट ने कहा, "इससे पहले, हमने कुत्तों से बंदरों को डराने कोशिश की और यहां तक कि एयर गन का भी इस्तेमाल किया, लेकिन फायदा नहीं हुआ. हम खेती छोड़ने वाले थे. लेकिन पिछले दो वर्षों से पारंपरिक फसल मक्का कि खेती छोड़ औषधीय पौधों की खेती की से हमें अच्छा लाभ हो रहा है. 

औषधीय पौधों की खेती से मिली नई उम्मीद  

काही गांव की एक 52 वर्षीय किसान शबनम बेगम ने कहा, "फसल की चौबीसों घंटे रखवाली करना एक चुनौती है, खासकर जब हमारे खेत घर के करीब नहीं होते हैं." उन्होंने कहा, "हम निराश थे क्योंकि हम पूरी तरह से खेती पर निर्भर हैं. औषधीय पौधों की ओर रुख करके हमें एक नई उम्मीद मिली है. आयुष मंत्रालय ने हमें एक नई उम्मीद दी है, क्योंकि दो साल बाद हमारे खेत फिर से हरे-भरे हो गए हैं."