
भारत ने 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष के रूप में मनाने का नेतृत्व किया था. पिछले साल, यानि 2023 में मिलेट्स अनाजों की कुल 188.2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती की गई थी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल 2023 में जुलाई के दूसरे पखवाड़े तक देश में 134.91 लाख हेक्टेयर में मिलेट्स अनाजों की बुवाई हो चुकी थी. लेकिन इस साल देश में जुलाई के दूसरे पखवाड़े तक केवल 123.72 लाख हेक्टेयर में मिलेट्स अनाजों की बुवाई हो पाई है, जो पिछले साल की तुलना में लगभग 11.20 फीसदी कम है.
हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स दिवस का उद्देश्य मिलेट्स अनाजों जैसे बाजरा, ज्वार, रागी, कोदो, सांवा आदि की खेती और खपत दोनों को प्रोत्साहित करना था. ये अनाज पानी की कम खपत, रासायनिक खादों-कीटनाशकों की कम जरूरत और अधिक गर्मी व सूखे का सामना करने की क्षमता रखते हैं. इन अनाजों में पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं और यह भोजन और पोषण सुरक्षा के लिए अहम साधन बन सकते हैं. हालांकि, सरकारी नीतियों और नेक इरादों के बावजूद, मिलेट्स का उत्पादन बढ़ाने के प्रयासों के बावजूद इस साल क्षेत्रफल घटता है तो नीति-निर्माताओं के सामने चुनौतियां हैं कि इसे कैसे बढ़ाया जाए.
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धान को लगभग सभी राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के जरिए इसकी बिक्री की गारंटी मिलती है. दूसरी ओर, मिलेट्स के लिए अधिकांश राज्यों में ऐसा बाज़ार नहीं है. पिछले साल बाजरा का MSP रेट 2500 रुपये निर्धारित किया गया था, लेकिन हरियाणा राज्य के किसानों को टोकन लेकर इंतजार करना पड़ा, जिसके कारण उन्हें बाजरा 1700 से 2100 रुपये प्रति क्विंटल बेचना पड़ा और खरीद एजेंसी 2200 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बाजरा खरीद रही थी. कहा गया कि सरकार MSP की बची राशि भांवांतर भरपाई योजना के तहत किसानों को देगी. इस तरह की समस्याएं भी मिलेट्स के प्रति किसानों की रुचि कम करने का एक कारण हो सकती हैं.
उत्तर प्रदेश सरकार ने मिलेट्स अनाजों की खेती बढ़ाने के साथ किसानों के सपोर्ट के लिए मोटे अनाजों की MSP पर खरीदारी के लिए बेहतर व्यवस्था की है. यूपी में कृषि सरकारी खरीद के आंकड़े बताते हैं कि मोटे अनाज में बाजरा की खरीद में जबरदस्त उछाल आया है. बाजरा की खरीफ सीजन 2022-23 में 8532 किसानों ने 43,438 मीट्रिक टन बाजरा बेचा था. जबकि 2023-24 में किसानों ने पिछले सीजन की तुलना में लगभग 7 गुना इजाफा दर्ज करते हुए 3.43 लाख मीट्रिक टन बाजरा बेचा था. यूपी सरकार ने इन खरीद किए गए अनाजों को घरेलू खपत बढ़ाने के लिए खाद्य विभाग द्वारा राशन में चावल और गेहूं की मात्रा को कम करते हुए बाजरा देने की व्यवस्था की है. लेकिन बिना प्रोसेसिंग किए बाजरा को लेकर लाभार्थियों ने नाराजगी जताई थी कि बाजरा के छिलके निकालने और प्रोसेसिंग के लिए कोई विशेष उपकरण उपलब्ध नहीं हैं. प्रोसेसिंग की कमी भी एक बड़ी समस्या है, खासकर छोटे अनाजों जैसे कोदो और कुटकी के लिए. इन चरणों को हाथ से करना बोझिल होता है और यह जिम्मेदारी आमतौर पर महिलाओं पर आती है, जिसके कारण मिलेट्स की खपत नहीं हो पाती है और इसकी खेती किसानों को निराश करती है. इसलिए यदि प्रोसेसिंग करके सरकारी विभागों द्वारा दिया जाता तो शायद मिलेट्स अनाजों के प्रति नकारात्मक धारणा नहीं बनती.
डेवलपमेंट ऑफ ह्यूमेन एक्शन (DHAN) फाउंडेशन, एक पेशेवर विकास संगठन है, जो गरीबों और वंचित समुदाय के उत्थान के लिए काम करता है. इसने तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय कोयंबटूर के साथ मिलकर मोटे अनाजों पर परियोजना चलाई है. उन्होंने पाया कि दक्षिण एशिया में आहार विविधता की कमी कुपोषण और मधुमेह जैसी गैर-संचारी बीमारियों के प्रसार के प्रमुख कारणों में से एक है. मौजूदा फसलों के पूरक के रूप में उगाए जाने वाले मिलेट्स इस समस्या का समाधान हो सकते हैं. इसलिए 2011 से नियमित आहार में मिलेट्स को मुख्यधारा में लाने पर ध्यान केंद्रित करके काम शुरू किया. लेकिन देखा गया कि मिलेट्स अनाजों के प्रति लोगों की रुचि कम होने के मुख्य कारण कम उत्पादकता और प्रोसेसिंग की व्यवस्था का न होना है. मिलेट्स अनाजों का उत्पादन और खपत में गिरावट आई है. प्रासंगिक मुद्दों को समझते हुए, धन फाउंडेशन ने गांव स्तर पर प्रोसेसिंग के लिए छोटे मिलेट्स हलर मशीन की व्यवस्था कराई और प्रोसेसिंग की व्यवस्था की गई, जिससे उन क्षेत्रों में खपत के साथ क्षेत्रफल और मिलेट्स अनाजों का व्यापार बढ़ा और लोग मिलेट्स अनाजों के प्रति रुचि लेने लगे.
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किसानों का झुकाव गेहूं, चावल और मक्का जैसी उन्नत फसलों की ओर है, क्योंकि इनमें अधिक उत्पादन और आय की संभावना होती है. इन फसलों को अधिक सरकारी समर्थन और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मिलता है, जिससे किसानों को आर्थिक लाभ मिलता है. उन्नत फसलों को अधिक पानी की जरूरत होती है, और जिन क्षेत्रों में सिंचाई की बेहतर सुविधाएं हैं, वहां किसानों ने मिलेट्स की बजाय इन फसलों को उगाना शुरू कर दिया है. मिलेट्स अनाजों में उच्च उत्पादकता के लिए उन्नत कृषि तकनीकों का उपयोग न करने से मिलेट्स की खेती में रुचि कम हो रही है. उन्नत बीज, उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग गेहूं, चावल और मक्का जैसी फसलों के लिए अधिक फायदेमंद साबित हो रहा है. बदलते जलवायु के कारण मिलेट्स की खेती पर असर पड़ा है. कुछ क्षेत्रों में मिलेट्स की परंपरागत किस्में अब उस प्रकार की जलवायु में अच्छी तरह नहीं बढ़ पा रही हैं, जिससे किसानों को अन्य फसलों की ओर रुख करना पड़ा है. मिलेट्स की मांग और मूल्य निर्धारण में कमी के कारण किसान इन्हें उगाने में कम रुचि दिखा रहे हैं. अन्य फसलों की तुलना में मिलेट्स के लिए बाजार में अधिक स्थिर और आकर्षक मूल्य नहीं मिल पाते हैं. सरकारी नीतियों में मिलेट्स की ओर कम ध्यान देने से भी इनकी खेती पर प्रभाव पड़ा है, जैसे कि फसल बीमा योजनाओं में मिलेट्स को उचित कवरेज नहीं मिल पाता है.
मिलेट्स अनाज के उत्पादन और प्रोसेसिंग से जुड़े विषयों को हल करने के लिए स्थानीय स्तर पर प्रोसेस, स्टोर, टेस्ट और पैकेज करने की क्षमता और इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना जरूरी है. अगर हम भारत के भोजन में मिलेट्स को फिर से शामिल करना चाहते हैं, तो हमें वैल्यू चेन में मौजूद इन मुद्दों को हल करने की जरूरत है. हमें मिलेट्स को लेकर एक सहयोगी इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने की जरूरत है, जैसा 1960 में गेहूं और चावल के लिए बनाया गया था. इस बार, हमारा उद्देश्य खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण और जलवायु सहजता को बढ़ावा देना होना चाहिए. मिलेट्स के क्षेत्रफल को बढ़ावा देने के लिए इन कारणों को समझकर समाधान निकालने की आवश्यकता है, जैसे कि उन्नत बीज, बेहतर कृषि तकनीक, सिंचाई सुविधाओं का विकास और सरकारी नीतियों में सुधार आदि. इन उपायों से मिलेट्स की खेती को फिर से प्रोत्साहित किया जा सकता है.
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