भारत की असली ताकत उसकी धरती, उसके गाँव और उसके किसान हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी, हमारे अन्नदाता धूप-बारिश सहकर भी हमें अन्न देते आए हैं. लेकिन क्या कभी किसी ने उनकी सही चिंता की? आज पहली बार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, किसानों को सिर्फ सहानुभूति नहीं, सशक्तिकरण मिल रहा है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त एक प्रसिद्ध पत्रिका ने हाल ही में मोदी सरकार की ऐतिहासिक नीतियों पर एक रिपोर्ट छापी. उसमें साफ लिखा था कि पहली बार कोई सरकार किसानों को आत्मनिर्भर बना रही है, उन्हें सरकारी दया पर निर्भर रहने के बजाय आर्थिक ताकत दे रही है.
पीएम किसान सम्मान निधि से लेकर फसल बीमा योजना, ई-नाम और ऐतिहासिक कृषि बजट तक, हर कदम किसानों को सीधा लाभ पहुंचाने के लिए उठाया गया है. मध्यस्थों और बिचौलियों की दुकानें बंद हो रही हैं, अब पैसा सीधे किसान के खाते में जा रहा है. और सबसे बड़ी बात, ‘सहकारिता मंत्रालय’ का गठन करके छोटे किसानों को वो ताकत दी गई है, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी.
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लेकिन अब ज़रा सोचिए—जब सरकार इतनी मेहनत से किसानों को सशक्त बना रही है, तब ये तथाकथित "किसान आंदोलन" अचानक क्यों उठ खड़े हो रहे हैं? ये कौन लोग हैं जो देश में अशांति फैलाना चाहते हैं? ये आंदोलन वैसा नहीं है जैसा कभी चंपारण सत्याग्रह था, जहां किसानों ने सच में अपने हक के लिए लड़ाई लड़ी थी. आज के तथाकथित आंदोलन बाहरी ताकतों और विदेशी फंडिंग से भरे पड़े हैं, जिनका मकसद भारत को रोकना है, किसानों को आगे बढ़ाना नहीं.
ज़रा सोचिए—जब भी भारत प्रगति करता है, तभी ये विरोध-प्रदर्शन क्यों भड़कते हैं? क्यों अंतरराष्ट्रीय मीडिया में अचानक किसानों की "दुर्दशा" पर आंसू बहाए जाते हैं? कौन हैं ये लोग जो सोशल मीडिया पर झूठ फैलाकर किसानों में भ्रम पैदा कर रहे हैं?
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सच्चाई ये है कि मोदी सरकार की ये नीतियां विदेशी कृषि कंपनियों और उन ताकतों को हजम नहीं हो रही हैं, जो हमेशा भारत को खाद्यान्न के लिए दूसरों पर निर्भर देखना चाहते थे. आज जब हम आत्मनिर्भर हो रहे हैं, जब भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने जा रहा है, तो कुछ ताकतें चाहती हैं कि हमें अराजकता और अस्थिरता में उलझाकर रख दिया जाए.
लेकिन अब भारत वो देश नहीं जो गुमराह हो जाए. हमारे किसान जागरूक हैं, हमारी युवा पीढ़ी समझदार है और हमारे नागरिक अब किसी भी अफवाह के पीछे आंख मूंदकर नहीं भागते. किसानों की भलाई का हल बातचीत से निकलेगा, न कि विदेशी पैसों से प्रायोजित हंगामे से.
तो, युवा भारत से मेरी अपील है—अब समय आ गया है कि हम सच्चाई और झूठ के बीच फर्क करें. हमें इस साजिश को पहचानना होगा और देश के विकास के खिलाफ चल रही इस मुहिम को नाकाम करना होगा.
एक भारत, श्रेष्ठ भारत सिर्फ एक नारा नहीं, यह हमारी पहचान है, हमारा भविष्य है.
जैसा कि वेदों में कहा गया है—
"संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्."
"हम साथ चलें, एक साथ बोलें, हमारे विचार एक हों."
अब हमें आगे बढ़ना है, एक साथ, एक संकल्प के साथ. भारत की प्रगति को कोई रोक नहीं सकता—ना अंदरूनी साजिशें, ना विदेशी चालें!
(लेखक एमएसपी और कृषि सुधार पर पर बनी भारत सरकार की हाई पावर कमेटी के सदस्य हैं)
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