विदेशों से हर साल आती है 45 हजार टन दालचीनी, अब अपने देश में यहां हो रहा उत्पादन 

विदेशों से हर साल आती है 45 हजार टन दालचीनी, अब अपने देश में यहां हो रहा उत्पादन 

दालचीनी कोई अकेला मसाला नहीं है जिसे उगाने के लिए आईएचबीटी कोशिश कर रहा है. केसर और हींग के पौधे भी आईएचबीटी में लगाए गए हैं. केसर की तो थोड़ी ही सही लेकिन एक फसल भी ली जा चुकी है. साल 2025 में हींग की फसल भी तैयार हो जाएगी. 

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विदेशों से हर साल आती है 45 हजार टन दालचीनी, अब अपने देश में यहां हो रहा उत्पादन आईएचबीटी, कैम्पस. फोटो क्रेडिट-किसान तक

देश में शायद ही किसी घर में कोई ऐसा किचिन होगा जहां गरम मसालों का इस्तेमाल न होता हो. और जब बात गरम मसालों की होती है तो फिर दालचीनी को उससे अलग कर बात नहीं की जा सकती है. दालचीनी जहां एक ओर मसालों का स्वाद बढ़ाती है तो वहीं दूसरी और इसे इम्यूनिटी बूस्‍टर भी कहा जाता है. कोरोना के दौरान इसका खासा जिक्र भी हुआ था. लेकिन अफसोस की बात यह है कि देश में इसका जितना इस्तेमाल होता है उसका ज्यादातर हिस्सा दूसरे देशों से आयात करना पड़ता है. खपत का 10 फीसद हिस्सा ही हमारे देश में पैदा होता है. 
 
लेकिन अच्छी बात यह है कि दालचीनी का उत्पादन बढ़ाने के लिए देश के दूसरे इलाकों में भी इसे उगाने की रिसर्च चल रही है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयो रिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश में दालचीनी पर बीते तीन साल से रिसर्च चल रही है. साइंटिस्ट का दावा है कि अभी तक के परिणाम बहुत अच्छे हैं. अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो आने वाले साल में हमे दालचीनी की पहली फसल मिल जाएगी. 

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देश में हर साल 50 हजार टन बिक जाती है दालचीनी 

आईएचबीटी के साइंटिस्ट डॉ. रमेश चौहान ने किसान तक को बताया कि हमारे देश में 50 हजार टन तक दालचीनी की खपत है. इसमे से 45 हजार टन दालचीनी श्रीलंका, नेपाल और वियतनाम समेत दूसरे देशों से आयात की जाती है. इसकी कीमत करीब 900 करोड़ रुपये होती है. अगर हम अपने ही देश में दालचीनी के उत्पादन की बात करें तो दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में करीब पांच हजार टन तक होता है. इन्हीं आंकड़ों से इसकी खपत का अंदाजा लगाया जा सकता है. खासतौर पर गरम मसालों के साथ इसका इस्तेमाल किया जाता है. बीते कुछ वक्त से इम्यूनिटी बूस्‍टर के तौर पर भी लोग इसे लेने लगे हैं. 

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हिमाचल के पांच शहरों में लगाए गए हैं दालचीनी के पौधे 

डॉ. रमेश चौहान ने बताया कि रिसर्च के दौरान हिमाचल प्रदेश के पांच शहरों में दालचीनी के पौधे लगाए गए हैं. साल 2021 से इस पर रिसर्च चल रही है. ऊना, बिलासपुर, कांगड़ा और सिरमौर में हमने इसके पौधे लगाए हैं. पालमपुर में हमारे संस्थान में भी इसके पौधे लगे हुए हैं. साल 2022 में भी हमने 10 हजार पौधे किसानों को दिए थे. शुरुआत में हमने केरल से यह पौधे मंगाए थे. इसका पौधा चार साल बाद दालचीनी का उत्पादन देने लगता है. हमारे कुछ पौधों को तीन साल हो चुके हैं. अभी तक सब कुछ बढ़िया चल रहा है. उम्मीद है कि साल 2024 में हमे दालचीनी की पहली फसल हिमाचल प्रदेश में मिल जाएगी. 

कोस्टल एरिया वाला वातावरण चाहिए दालचीनी को 

डॉ. रमेश ने बताया कि दालचीनी के लिए कोस्टल एरिया वाला वातावरण चाहिए होता है. जैसे तापमान की बात करें तो 25 से 30 होना चाहिए. वहीं आद्रता 70 से 80 हो. अगर हिमाचल की बात करें तो पोंग डैम और गोविंद सागर झील का इलाका दालचीनी के पौधों के लिए बहुत ही लाभदायक है. अभी हमने नौ हेक्टेयर एरिया में फसल लगाई है. हमारा शुरुआती लक्ष्य. 50 हेक्टेयर का है. दालचीनी लगाने के लिए हमारे पास हिमाचल में ही इतनी जमीन है कि देश की खपत को पूरा किया जा सकता है. 

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