खाने से लेकर कॉस्मेटिक तक में खुशबू का इस्तेलमाल भारत में सैकड़ों साल से चला आ रहा है. अगर मुगलदौर की बात करें तो इत्र बनाने के कारखाने के निशान आगरा में फतेहपुर सीकरी में मिले हैं. आज भी देश में ये कोई छोटा-मोटा कारोबार नहीं है. इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश के साइंटिस्टै की मानें तो आज देश में फूलों से निकले खुशबूदार तेल का कारोबार 700 करोड़ डालर का है. देश में कश्मीर से लेकर नॉर्थ-ईस्ट तक करीब 20 तरह की खुशबूदार फसलें होती हैं.
खुशबूदार तेल की डिमांड भारत ही नहीं पूरे विश्व में रहती है. लेकिन आज भी डिमांड और सप्लाई में बहुत गैप है. जैसे दमस्क रोज के तेल की करीब 45 टन तेल की डिमांड है, लेकिन मिल कितना रहा है सिर्फ 15 टन. अगर लेमन ग्रास तेल की बात करें तो कुछ वक्त पहले तक हम 400 से 500 टन तक आयात करते थे, लेकिन आज हम अपने ही देश में उत्पादन कर रहे हैं. आज दमस्क रोज के तेल की कीमत 12 से 15 लाख रुपये प्रति किलोग्राम है. ये 20 लाख रुपये तक भी पहुंच जाती है.
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आईएचबीटी के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. राकेश कुमार ने किसान तक को बताया कि देश में 15 से 20 तरह की ऐसी खुशबूदार फसलें हैं जिनसे खुशबू वाला तेल निकलता है. इसमे खासतौर से दमस्क रोज, खुशबूदार गेंदा, लेमन ग्रास, रोजमैरी, मैंथा, तुलसी, सिट्रोनेला और पचोली आदि हैं. अच्छी बात ये है कि हमारे देश में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग मौसम है. और यही सबसे बड़ी खासियत ऐसी फसलों को फलने-फूलने का मौका देती हैं. और एक अच्छी बात ये है कि कश्मीर से लेकर नॉर्थ-ईस्ट तक के इलाकों में इस तरह की फसलों को जंगली जानवर भी किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. जैसे तिलहन और दूसरी फसलों को पहुंचाते हैं.
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डॉ. राकेश कुमार ने बताया कि मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से आज हमारे देश में खुशबूदार तेल का कारोबार करीब 700 करोड़ डालर का है. अब इसे 1800 करोड़ डालर का करने की कोशिश हो रही है. इसी के चलते ही केन्द्ऱ सरकार ने अरोमा मिशन की शुरुआत की है. मिशन के तहत सभी 15 से 20 तरह की खुशबूदार फसलों को बढ़ावा दिया जा रहा है. ज्याआदा से ज्यादा किसान इन फसलों से जुड़ें इसके लिए उन्हें इन फसलों के अच्छे और उन्नत किस्म के पौधे दिए जा रहे हैं.
फसल से कैसे ज्यादा तेल लिया जाए इसकी ट्रेनिंग दी जा रही है. फूल उगाने के साथ ही उससे तेल निकालने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की ट्रेनिंग भी दी जा रही है. गौरतलब रहे साल 2017 में इस मिशन की शुरुआत हुई थी. अभी तक देशभर में इस तरह की फसलों पर पांच हजार हेक्टेयर से ज्याइदा जमीन पर काम किया जा चुका है.
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