Success Story: हरियाणा की सीमा उगाती हैं 3 लाख रुपए किलो वाली मशरूम, अनूठी खेती ने कई अवॉर्ड दिलाए

Success Story: हरियाणा की सीमा उगाती हैं 3 लाख रुपए किलो वाली मशरूम, अनूठी खेती ने कई अवॉर्ड दिलाए

हरियाण के करनाल की सीमा ने ऑस्ट्रेलिया की नौकरी छोड़कर भारत में आधुनिक तरीके से खेती को अपना विकल्प चुना. अब अनूठी किस्म की सब्जियों, फलों की खेती उन्हें ख्याति दिलाने के साथ अवॉर्ड भी दिला रही है. वह 3 लाख रुपये किलो कीमत में बिकने वाले अनूठे मशरूम को उगा रही हैं और महिलाओं को आधुनिक खेती की ट्रेनिंग भी दे रही हैं.

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Success Story: हरियाणा की सीमा उगाती हैं 3 लाख रुपए किलो वाली मशरूम, अनूठी खेती ने कई अवॉर्ड दिलाएहरियाणा की हाई प्रोफाइल महिला उगाती है 3 लाख रूपये किलों वाली मशरूम

समृद्ध किसान समृद्ध भारत. इस नारे को बुलंद करने वाली एक महिला किसान, जिन्होंने तकनीक को हथियार बनाया. खुद फ़सल तैयार की, उसकी मार्केटिंग की और कारोबार को आगे भी खुद ही बढ़ा रही हैं. आधुनिक खेती में मिसाल बन चुकी ये महिला किसान अब नए शोध के साथ नए प्रोडेक्ट भी मार्केट में उतारने लगी हैं. खेती को घाटे का सौदा बताने वालों को सीख देने वाली ये महिला किसान करनाल की रहने वाली सीमा गुलाटी हैं, जो एक सफल किसान, एक सफल उद्यमी होने के साथ-साथ हरियाणा के कृषि डिपार्टमेंट की ब्रांड एंबेसडर भी हैं. जिनका एक कम्पलीट फार्म फूड चेन है, जहां वो बिल्कुल अलग तरीके का मशरूम उत्पादन करती हैं, जिसकी ग्लोबल मार्केट में कीमत है 3 लाख रुपए प्रति किलो है .

ऑस्ट्रेलिया से नौकरी छोड़ भारत लौटीं और खेती में जमाई धाक

हरियाणा के करनाल निवासी सीमा गुलाटी साल 2008 से पहले ऑस्ट्रेलिया में लेक्चरर की नौकरी करती थीं. उनके मन में कुछ नया करने का सपना था और इसी सपने को लेकर वो लौट आईं अपने वतन. हालांकि, उनके बच्चे अभी भी ऑस्ट्रेलिया में रह रहे हैं. करनाल के कुटेल गांव में सीमा खेती को नया आयाम दे रही हैं. उनका कहना है कि अपने ही देश में कुछ अलग करने की ठानकर वापस आईं हैं. गांव में अपनी जमीन पर मशरूम उत्पादन शुरू किया. सीमा छोटे से फार्म हाउस में कीड़ा जड़ी मशरूम यानी कार्डिसेप्स मिलिट्रीज मशरुम उगा रही हैं. वह इससे न केवल पैदावार ले रहीं हैं बल्कि किसानों को इसे उगाने का प्रशिक्षण भी दे रही हैं. वो इस काम के लिए महिलाओं को ट्रेनिंग भी देती हैं. कार्डिसेप्स मिलिट्रीज मशरुम को कीड़ा जड़ी का विकल्प भी कहा जाता है और यह बाजार में तीन लाख रुपये प्रति किलो की दर से बिक जाता है.

तीन लाख रूपये किलो वाली मशरूम

सीमा ने नेशनल सेंटर फॉर कोल्ड चेन डेवलपमेंट के माध्यम से विदेश में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद मशरूम उत्पादन शुरू किया था और अब वह 3 लाख रुपए प्रति किलो वाली मशरूम उगा रही है. उन्होंने बताया कि, वह 20 फुट लंबी और 22 फुट चौड़ी जगह में एक माह में तीन से पांच किलो कार्डिसेप्स मिलिट्रीज मशरूम का उत्पादन कर लेती हैं.वह कार्डिसेप्स मिलिट्रीज मशरूम से पाउडर, कैप्सूल, चाय, और एनर्जी ड्रिंक्स बनाती हैं. कॉर्डिसेप्स यानि कीड़ा जड़ी ऐसी प्रजाति है,. जिसके औषधीय गुणों के कारण विदेशों और देश के नामी घरानों तक में इसकी पहुंच है. और इस मशरूम का रेट भी लाखों में होता है. जोकि चाय की तरह पानी में उबालकर पीने से तंदरुस्ती आती है. इसके अलावा ऑर्गेनिक सब्जी और अन्य उत्पाद बनाने शुरू किए. लोग की डिमांड बढ़ती चली गई तो उन्होंने अपने प्रोडेक्ट की पैकिंग और मार्केटिंग शुरू कर दी.

क्या है खासियत कीड़ा जड़ी मशरूम में?

सीमा बताती हैं कि मशरूम की लगभग 400 प्रजातियां हैं, जिनमें से दो प्रजातियां माइकोलॉजिस्ट और कॉर्डीसेप्स मिलिटारिस मशरूम. यह दक्षिण-एशिया के हिमालयी क्षेत्र में पाई जाती हैं. यह चीनी हर्बलिज्म, तिब्बती चिकित्सा और यहां तक कि भारत के प्राचीन आयुर्वेद में सदियों से इस्तेमाल किया जाता रहा है. आज यह सबसे बेशकीमती मशरूम में से एक है, जिसकी कीमत भारत में लगभग 3 लाख रुपए प्रति किलो से ऊपर तक भी चली जाती है. सीमा ने कॉर्डिसेप्स मशरूम का उत्पादन कर अपनी आमदनी को भी बढ़ाया है. सोनीपत के जिले के कस्बे गनौर में एग्रीकल्चर के एक प्रोग्राम में सीमा ने कॉर्डिसेप्स मशरूम की चाय बनाकर राष्ट्रपति राम नाथ गोविन्द को भेजी थी.

कहां और मिलता है कीड़ा जड़ी मशरूम?

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ और धारचूला के 3500 मीटर की ऊचाईयों में एक बड़े पैमाने पर कीड़ा जड़ी पाया जाता है. स्थानीय लोग इसका दोहन कर रहे हैं, क्योंकि चीन में इसकी ज्यादा कीमत मिलती है. यह एक प्रकार का जंगली मशरूम है जो एक विशेष कीड़े कैटरपिलर्स को मारकर उगता है. इसका वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स साइनेसिस है, जो हैपिलस फैब्रिकस कीड़े पर पलता है. स्थानीय लोग इसे कीड़ा-जड़ी कहते हैं, क्योंकि यह आधा कीड़ा और आधा जड़ी होता है. मई से जुलाई के बीच जब बर्फ पिघलती है तो यह उगने लगता है.

सीमा का आॉर्गेनिक खेती का शौक

मशरूम उत्पादन के अलावा सीमा मिक्स्ड फार्मिंग भी करती हैं. वो ऑर्गेनिक सरसों के साथ कई तरह के अनाज का उत्पादन भी कर रही हैं. सीमा ने लगभग 8 एकड मे आलू, अंग्रेजी सब्जियां, ब्रोकली, लहसुन, गोभी सहित कई रंग और कई प्रकार के सलाद पत्तों की खेती करती हैं. उन्होने आधा एकड़ में ग्रीन हाउस भी लगा रखा है. इसके साथ ही एक एकड़ में मशरूम की खेती और प्रोसेसिंग का काम कर रही हैं. उन्होंने ना केवल फल-फूल और सब्जियों के उत्पादन में बल्कि इनकी पैकेजिंग और ब्रांडिंग पर भी विशेष रूप से ध्यान दिया है. उन्होने अपने ब्रांड का नाम ऐले रखा है. वो इस प्रोडक्ट को बेहतर मार्केटिंग के दम पर लोगों तक पहुंचा रही हैं.

सीमा को कई पुरस्कार भी मिले   

सीमा राष्ट्रीय स्तर और राज्य स्तरीय प्रदर्शनियों में भी अपने उत्पादों की बिक्री कर चुकी हैं. इन प्रदर्शनियों से सीमा कई पुरस्कार भी जीत चुकी हैं. मशरूम उत्पादन के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद सोलन इकाई ने उन्हें पुरस्कृत भी किया है. इसके अलावा उन्हें कई बार प्रगतिशील किसान का पुरस्कार भी मिला है. सीमा अपनी सफलता का श्रेय सरकार की योजनाओं और अपने पिता सुंदर लाल मदान को देती हैं. सीमा लोगों को बागवानी और फसल विविधीकरण से होने वाले फायदे के बारे में बताती हैं. इस तरह की खेती के लिए लोगों को प्रेरित भी करती हैं. सीमा कहती हैं खेती पर बस थोड़ा ध्यान देने की ज़रूरत है और फिर जमीन केवल पेट भरने का साधन नहीं होगी. इससे सुरक्षा, रूतबा और सम्मान तीनों ही मिल सकता है.
 

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