प्याज की बढ़ती महंगाई के बीच जलगांव के खानदेश क्षेत्र में रबी सीजन ग्रीष्मकालीन) के प्याज की खेती इस साल कम हो सकती है. ऐसा लगता है कि इस साल रकबा साढ़े आठ से नौ हजार हेक्टेयर रहेगा. जो पहले से कम होगा. कई किसान खेती के लिए नर्सरी बनाने की योजना बनाने लगे हैं, लेकिन पहले के कम भाव के रिकॉर्ड को देखते हुए वो रकबा कम करने की योजना बना रहे हैं. जलगांव जिले के चालीसगांव, धरणगांव, एरंडोल, यावल, चोपड़ा और जलगांव इलाकों में ग्रीष्मकालीन प्याज अधिक होता है. बता दें कि दो साल से किसानों को प्याज की लागत तक नहीं मिल पा रही है. जब दाम बढ़ने लगा था तब सरकार ने 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी और बाजार में सस्ता प्याज बेचकर दाम कम करवा दिया. अब प्याज की खेती कम होगी तो इसकी महंगाई बढ़ सकती है.
कुछ किसानों ने इस क्षेत्र में प्याज की नर्सरी लगाने की योजना बनाई है. किस्मों का चयन और भूमि आदि की तैयारी पूरी कर ली गई है. हालांकि, अभी कुछ ही किसानों ने नर्सरी में प्याज के बीज बोये हैं. कुछ किसान पौधे बेचकर अपना खर्च निकालने की योजना बना रहे हैं. यहां 50 फीट गुणा तीन फीट साइज के प्याज के पौधे एक से डेढ़ हजार रुपये तक में बिकते हैं.
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उधर, इस साल धुले में करीब साढ़े तीन हजार हेक्टेयर और नंदुरबार में करीब डेढ़ हजार हेक्टेयर में प्याज की खेती होने की उम्मीद है. इस वर्ष पौधारोपण कम होगा. क्योंकि पिछले दो सीजन में प्याज की कीमतें उम्मीद के मुताबिक नहीं रहीं. वर्षा भी अनियमित हो गई है, जिससे इसकी खेती डिस्टर्ब है. पिछले अप्रैल से अगस्त तक प्याज की कीमतें दबाव में थीं. सरकार ने उसे बढ़ने नहीं दिया, इससे किसानों का भारी नुकसान हुआ. किसानों में इसे लेकर सरकार के खिलाफ गुस्सा भी है कि बढ़ते दाम को जान बूझकर कम किया गया.
कुछ किसानों ने प्याज की खेती कम कर मक्का और कलिंदर (तरबूज) की बुवाई करने की तैयारी कर ली है. कलिंदर की फसल 60 से 65 दिन में आ जाती है. मक्के की फसल प्याज की फसल से भी कम लागत पर पैदा होती है और दाम अच्छा मिलता है. इसलिए किसान प्याज का विकल्प खोज रहे हैं. नवंबर के अंत में प्याज की रोपाई शुरू हो जाएगी, तब असली तस्वीर सामने आएगी की इस साल किसान कम दाम से निराश होकर खेती कितनी कम रहे हैं. लेकिन, अगर खेती कम हो गई तो उपभोक्ताओं को प्याज महंगा मिलेगा.
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