केंद्र सरकार ने पिछले साल नवंबर में कृषि मार्केटिंग पर राष्ट्रीय नीति रूपरेखा का मसौदा जारी किया था. इसके बाद पंजाब में किसानों का विरोध देखा गया जो अभी तक जारी है. पंजाब विधानसभा में उस प्रस्ताव को खारिज भी कर दिया. हालांकि, पंजाब के अलावा किसी अन्य राज्य से सार्वजनिक रूप से मसौदे का विरोध नहीं हुआ है. इसके बावजूद हो सकता है केंद्र सरकार उस नीति पर आगे नहीं बढ़ेगी.
सूत्रों ने 'बिजनेसलाइन' को बताया कि चूंकि यह मसौदा स्वैच्छिक है, इसलिए राज्य अपनी मर्जी से इस नीति को जारी करने के लिए स्वतंत्र हैं. अगर वे जारी करते हैं तो समय आने पर इसके बारे में जरूर जानकारी मिल जाएगी. अगर इस नीति को राज्य खारिज भी करते हैं तो अपनी राय रखकर उसे खारिज कर सकते हैं.
पंजाब में कृषि सुधार 2.0 के रूप में जाने जाने वाले इस "मसौदा नीति" के खिलाफ विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसे कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने "राजनीतिक" करार दिया, क्योंकि सबसे पहले तो यह एक मसौदा था और किसी भी राज्य के लिए अनिवार्य नहीं था. इसलिए विधानसभा में इसे खारिज करने के लिए प्रस्ताव लाने पर कई तरह के सवाल उठाए गए.
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इस नीति का नियम कहता है कि अगर इसके कुछ प्रस्ताव से राज्य सरकारें सहमत हैं तो उसे वे स्वतंत्र रूप से लागू कर सकती हैं. इसके लिए पूरी कृषि मार्केटिंग नीति को लागू करने की जरूरत नहीं है. यानी पूरी नीति में कोई प्रस्ताव लागू करने की इच्छा है, तो राज्य ऐसा कर सकते हैं.
संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) जिसने 2020 में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था, उसने 5 मार्च को अलग-अलग प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर कृषि मार्केटिंग की मसौदा नीति को खारिज करने की अपील की है. एसकेएम का दावा है कि इस कृषि मार्केटिंग नीति के तहत केंद्र सरकार देश की सभी मंडियों को एक यूनाइटेड स्ट्रक्चर के तहत लाएगी और उसे पीपीपी मोड में दोबारा विकसित करेगी. इसके बाद सभी मंडियों को डिजिटल मोड में जोड़ा जाएगा.
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हालांकि, एसकेएम के कुछ संगठन मंडियों को लेकर एकमत नहीं हैं क्योंकि कुछ संगठनों का मानना है कि केरल में इनकी जरूरत नहीं है लेकिन अन्य राज्यों में ये बहुत जरूरी हैं. अभी केरल और बिहार में कोई APMC कानून नहीं है और किसान अपनी उपज बेचने के लिए पूरी तरह से निजी व्यापारियों पर निर्भर हैं, जबकि अधिकांश प्रमुख कृषि राज्यों में किसानों के पास मंडियों में या सीधे लाइसेंस होल्डर व्यापारियों को बेचने का विकल्प है.
एसकेएम ने आरोप लगाया कि इस मसौदा नीति का मकसद सभी कृषि गतिविधियों को प्राइवेट कॉरपोरेशन और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नियंत्रण में देना है और यह मसौदा नीति एमएसपी, सरकारी खरीद और पीडीएस राशन वितरण पर पूरी तरह से चुप है. एसकेएम (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) के नेतृत्व में किसानों का एक और समूह पिछले साल फरवरी से पंजाब-हरियाणा के दो बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन कर रहा है, क्योंकि उन्हें दिल्ली जाने से रोक दिया गया था. वे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं ताकि उन्हें धान से दूसरी कम पानी वाली फसलों की खेती करने में मदद मिल सके.
कृषि क्षेत्र में राज्यों ने अपने हिसाब से कानून बनाए हैं, लेकिन एक लाइसेंस के तहत दूसरे राज्य में कृषि उपज की खरीद बिक्री अभी भी मुश्किल है. इसे देखते हुए नए फ्रेमवर्क की जरूरत महसूस की जा रही है. केंद्र सरकार के नए प्रस्तावित फ्रेमवर्क में इन बातों का ध्यान रखा गया है. इसमें एक साथ कई मार्केट जैसे कलेक्शन सेंटर, एग्रीगेशन पॉइंट्स, प्राइवेट मार्केट, डीम्ड मार्केट, ग्रामीण एग्रीकल्चरल मार्केट्स, एफपीओ परिसर, कॉमन एग्रीबिजनेस सेंटर एंड मार्केट प्लेस (CACMP) और एपीएमसी मंडियों को ई नाम पोर्टल से जोड़ा जाएगा.
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