गर्मियों का मौसम आते ही तरबूजों की डिमांड काफी बढ़ जाती है. अब तक आप सब लोगों ने लाल रंग का तरबूज तो खूब खाया होगा. लेकिन आज जिस तरबूज की बात कर रहे हैं, वो दिखने में बाहर से एक दम लाल तरबूज की तरह ही दिखाई देता है. लेकिन जब इसे काटा जाता है, तो यह अंदर से पीला रंग का होता है. आप जान कर हैरान हो जाएंगे कि लाल तरबूज से कहीं ज्यादा बेहतर होता है पीला तरबूज. इस तरबूज में कई तरह के पौष्टिक गुण पाए जाते हैं. बाजार में भी अब लाल तरबूज की तरह पीले तरबूज की डिमांड काफी तेजी से बढ़ रही है और लोग अब इस तरबूज को ज्यादा चाव से खाने लगे हैं. साथ ही आपको बताएं तो पीले तरबूज का स्वाद लाल तरबूज से बेहतर होता है. आइए जानते हैं क्या है पीले तरबूज से जुड़ी सारी जानकारी.
आपके दिमाग में यह आ रहा होगा कि धरती पर पीला तरबूज वैज्ञानिकों ने हाल में ही तैयार किया होगा, लेकिन ऐसा नहीं है, यह हजारों सालों से इस धरती पर उगाया जा रहा है. पहले किसान इसकी खेती सबसे अधिक मात्रा में करते थे. लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता गया किसान लाल तरबूज की खेती करने लगे. वैसे दुनिया में पीला तरबूज सबसे पहले अफ्रीका के खेतों में उगाया जाता था. लेकिन इसके अंदर के मौजूद गुणों के चलते इसे पूरी दुनिया में उगाया जाने लगा और आज के समय में करीब सभी देशों में इसकी खेती जोरों से की जाने लगी है. साथ ही इस तरबूज की डिमांड भी पूरे देश में तेजी से बढ़ रही है.
साइंस के अनुसार, तरबूजों का रंग कैसा होगा ये निर्धारित लायकोपीन नाम का एक केमिकल करता है. वहीं यह केमिकल लाल तरबूज में अधिक मात्रा में पाया जाता है. जिसके चलते तरबूज के अंदर के हिस्से का रंग लाल हो जाता है. लेकिन वहीं जिस तरबूज में केमिकल की मात्रा न के बराबर होती है, तो उस तरबूज का रंग पीला हो जाता है.
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पीले तरबूज की खासियत अपने खासियत के लिए काफी डिमांड में है. लाल तरबूज के मुकाबले पीला तरबूज ज्यादा मीठा होता है. साथ ही पीला तरबूज खाने में बेहद भी काफी स्वादिष्ट होता है. इसमें विटामिन ए की मात्रा अधिक होती है. उसके अलावा इसकी एक और खासियत ये है कि पीला तरबूज का स्वाद एक दम शहद की तरह ही होता है.
इस तरबूज को किसान हर जगह नहीं उगा सकते हैं. इस तरबूज को उगाने के लिए रेगिस्तान सबसे अच्छा जगह माना जाता है. इसलिए इस तरबूज को डेजर्ट किंग भी कहा जाता है, यानी रेगिस्तान का राजा. अगर भारत में आप इस तरबूज की खेती करना चाहते हैं तो इसे सिर्फ गुजरात और राजस्थान के कुछ इलाकों में ही उगाया जा सकता हैं.
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