सोयाबीन अपने देश सबसे अहम तिलहन फसल है. आज के वक्त में देश में 135 लाख टन के उत्पादन के साथ लगभग औसतन 120 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की खेती की जाती है. इस साल खरीफ सीजन में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 18 अगस्त तक 124 लाख हेक्टयर में बुवाई की गई है. आप इसी से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि मध्य प्रदेश के किसानों ने प्रमुख खरीफ फसल के रूप में अपनाया और इसके बाद में इसकी खेती महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तरी कर्नाटक, गुजरात और उत्तरी तेलंगाना में भी बढ़ गई है.
हमारे देश में भी सोयाबीन की बंपर उपज होती है, क्योंकि यहां की मिट्टी और जलवायु इस फ़सल के लिए काफी अच्छी है. इस कारण किसान बड़े स्तर पर सोयाबीन की फ़सल लगाते हैं. किसानों की आर्थिक स्थिति काफी हद तक इस फ़सल पर निर्भर करती है. खेतों में खड़ी सोयाबीन की फसल अभी फूल और बीज पड़ने की प्रक्रिया में है. इस समय सोयाबीन की फसल में कई कीट-बीमारियों की आशंका रहती है जिसका रोकथाम करना जरूरी है.
सोयाबीन की फसल वर्तमान में देश में कुल तिलहन का 42 प्रतिशत और कुल तेल उत्पादन का 22 प्रतिशत योगदान दे रही है. लेकिन जानकारी के अभाव में कहीं फसल बर्बाद ना हो जाए, इसलिए इस वक्त इसमें लगने वाले कीट, होने वाली बीमारियों से बचने के उपाय जानना बहुत ज़रूरी है. सोयाबीन अनुसंधान केंद्र, इंदौर ने इस समय में सोयाबीन की फसल में लगने वाले कीट-बीमारियों से बचाव के लिए और फसल की देखरेख के सुझाव दिए हैं. संस्थान ने इस बारे में सुझाव दिए हैं. सूखे के समय में किसानों के पास सिंचाई की व्यवस्था होती है. वे लंबे समय तक बारिश का इंतजार करने के बजाय मिट्टी में दरार पड़ने के पहले ही सिंचाई कर दें. अगर नमी की कमी हो तो दो टन प्रति एकड़ पुआल से मल्चिंग करना चाहिए.
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सोयाबीन अनुसंधान केंद्र, इंदौर के कृषि वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि अगर सोयाबीन की फसल में पीला मोजैक वायरस रोग के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, तो शुरुआती लक्षण दिखते ही संक्रमित पौधों को तुरंत खेत से उखाड़ कर फेक दें और अपने खेत में अलग-अलग स्थानों पर पीला स्ट्रिकी ट्रेप लगा दें. इससे वायरस का वाहक कीट एफिड और सफेद मक्खी कीट चिपक कर मर जाएंगे. पीला मोजैक वायरस या सोयाबीन मोजैक वायरस रोग वाहक कीटों के एफिड और सफेद मक्खी नियंत्रण के लिए अनुशंसित कीटनाशक दवा एलेस्टामिप्रिड 25% + बिफेनलारेन 25% डब्लूजी 100 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें या इसके स्थान पर थायोलैमथोक्सम + लैम्ब्डासाइहालोलेरान मिश्रित दवा 50 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें.
सोयाबीन की फसल को फंगल रोग एन्थ्राक्नोज रोग से सुरक्षा के लिए अपनी फसलों पर टेबुकोनाजोल 25.9 ईसी 250 एलएम प्रति एकड़ या टेबुकोनाजोल 10% +सल्फर 65% डब्ल्यूजी 500 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करने की सलाह दी जाती है.
संस्थान के कृषि वैज्ञानिको के अनुसार सोयाबीन में इस समय गर्डल बीटल प्रकोप की भी आशंका रहती है. इस कीट को सोयाबीन तना छेदक के नाम से भी जाना जाता है. इस कीट की सुंडियां सफेद रंग की मुलायम शरीर और काले सिर वाली होती हैं. इसकी सुंडी तने में घुसकर आंतरिक भाग को खाती है. इससे पत्तियां सूख जाती हैं. इसके अलावा पौधे का मुख्य तना भी सूख जाता है. सोयाबीन गर्डल बीटल के नियंत्रण के लिए शुरुआती अवस्था में आइसोसायक्लोसेरम 10% डब्ल्यू/वीडीसी 250 मिली प्रति एकड़ या इलास्टामिप्रिड 25% + बिफेनलारेन 25% डब्ल्यूजी 100 ग्राम प्रति एकड़ दवा का छिड़काव करना चाहिए. इसके प्रसार को रोकने के लिए पौधे के संक्रमित हिस्से को प्रारंभिक अवस्था में ही नष्ट कर दें.
फसल पर बिहार कैटरपिलर कीट के प्रकोप की स्थिति में सलाह दी जाती है कि प्रारंभिक अवस्था में इन कैटरपिलर को पौधों सहित खेत से हटा दें. इस हानिकारक कीट के नियंत्रण के लिए फसल पर लैम्ब्डा साइहालोलरान 04.90 सीएस दवा 125 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से प्रयोग करें या इंडोक्सास के लिए 15.8 एस.सी. 133 एलएम एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें.
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कम अवधि वाली सोयाबीन की फसल में पकने वाली फलियों को चूहों से बचाना जरूरी होता है. फलियों को चूहे के खाने से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए फ्लूकोउमाफेन 0.005% रसायन दवा 8 बेट/प्रति एकड़ की दर से चूहे के छेद के पास रख दें.
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