मिट्टी की सेहत से जुड़ी जरूरी बातेंWorld Soil Day 2025: मिट्टी हमारे अस्तित्व और जीवन का अहम हिस्सा है और इसका संरक्षण बेहद जरूरी है. आज विश्व मृदा दिवस है. इस मौके पर पंजाब के बठिंडा के प्रगतिशील किसान और एक्सपर्ट परगट सिंह से जानिए मिट्टी की सेहत से जुड़ी कुछ अहम और रोचक बातें. वह पेशे से इंजीनियर भी रह चुके हैं. उन्होंने यह बातें हाल ही में एक 'किसान तक' के साथ खास बातचीत में साझा की. परगट सिंह खेती के साथ-साथ Crops Information नाम से यूट्यूब चैनल भी चलाते हैं और किसानों को जागरूक करने का काम कर रहे हैं. वह यूनिवर्सिटी और गांवों में जाकर सॉइल हेल्थ पर लेक्चर भी देते हैं. परगट सिंह का कहना है कि अगर मिट्टी जिंदा रहेगी तभी किसान की खेती लंबे समय तक चलेगी.
परगट सिंह बताते हैं कि एक जर्मन वैज्ञानिक ने लिखा था कि दुनिया में करीब आठ अरब लोग रहते हैं. लेकिन अगर हम मुट्ठी भर मिट्टी उठाएं तो उसमें इससे भी ज्यादा सूक्ष्म जीव मौजूद होते हैं. यही माइक्रोब हमारे खाने का आधार तैयार करते हैं. गेहूं से लेकर हर फसल इन्हीं जीवों की बदौलत हमें भोजन देती है. हम आटा बनाकर जो रोटी खाते हैं वह असल में मिट्टी के ऑर्गेनिक कार्बन से ही तैयार होती है.
उन्होंने बताया कि खेत में पड़ा पराली का मलबा भी उसी मिट्टी की ताकत से बना होता है. जब यह मलबा डिकम्पोज होता है तो इसमें मौजूद सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम जैसे जरूरी पोषक तत्व दोबारा मिट्टी में मिल जाते हैं. यही मिट्टी का असली भोजन है. अगर हम यह खाना मिट्टी से छीन लेंगे तो उसके अंदर मौजूद माइक्रोब भूखे रह जाएंगे.
परगट सिंह कहते हैं कि खेत के नीचे जो दुनिया रहती है, उसकी जरूरतों को हमने कभी गंभीरता से समझा ही नहीं. कोई माइक्रोब नाइट्रोजन फिक्स करता है तो कोई कार्बन फिक्स करता है. एजोटोबैक्टर और कई तरह के फायदेमंद बैक्टीरिया मिट्टी को जिंदा रखते हैं. मगर किसान खुद दिन में 10-20 बार खेत में जाता है और मिट्टी के अंदर 24 घंटे चल रही मेहनत को नजरअंदाज कर देता है.
उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि साल 2016 में उनके खेत की ऑर्गेनिक कार्बन वैल्यू सिर्फ 0.25 थी. लगातार प्रयोग करते हुए उन्होंने इसे 0.85 तक पहुंचा दिया. अमेरिका के टेक्सास इलाके के एक सीनियर वैज्ञानिक का कहना है कि अगर ऑर्गेनिक कार्बन 10 प्रतिशत तक पहुंच जाए तो खेत को सिर्फ पानी और बीज की जरूरत रह जाती है.
उसके बाद न खाद की जरूरत रहती है और न ही पेस्टिसाइड की. खेत खुद इतना मजबूत हो जाता है कि वह सब कुछ संभाल लेता है. परगट सिंह बताते हैं कि उन्होंने धान के बाद सीधे गेहूं की बुआई की. यह तरीका उनके खेत को पूरी तरह सूट कर गया.
उनका कहना है कि अब वह किसी के कहने पर नहीं चलते कि यह तरीका फेल है या सक्सेस है. जब उनका उत्पादन बाकी किसानों के बराबर है और खर्च कम है तो उन्हें किसी की मंजूरी की जरूरत नहीं.
उन्होंने किसानों से अपील की कि पराली की गांठें बनाकर खेत से बाहर ले जाना या बेच देना मिट्टी की माइनिंग करने जैसा है. किसान पहले अनाज निकालता है और फिर पराली भी बाहर निकाल देता है. इसका मतलब है कि डबल पैदावार खेत से बाहर जा रही है.
परगट सिंह इसे इंसान की नींद से जोड़कर समझाते हैं. जैसे इंसान 24 घंटे में 8 घंटे सोता है तभी बाकी 16 घंटे बेहतर प्रदर्शन कर पाता है. अगर वह ज्यादा सोए या बिल्कुल न सोए तो दोनों हालत में नुकसान होता है. ठीक वैसे ही मिट्टी 24 घंटे काम कर रही है लेकिन उसे कभी आराम ही नहीं दिया जाता.
उन्होंने कहा कि जब हम सारी पराली जला देते हैं या बाहर निकाल देते हैं तो मिट्टी के अंदर रहने वाली दुनिया के लिए भोजन नहीं बचता. फिर हम मिट्टी में सिर्फ यूरिया, डीएपी और पोटाश डालते हैं. यह सब मैन मेड चीजें हैं जो लंबे समय तक टिकाऊ नहीं होती. कुदरत की बनाई हुई व्यवस्था लाखों सालों से चल रही है और वही सबसे मजबूत है.
परगट सिंह ने पराली जलाने के पीछे की एक बड़ी वजह भी बताई. उन्होंने कहा कि पंजाब में बड़ी संख्या में किसान अपनी जमीन खुद नहीं जोतते. कई किसान ठेके पर जमीन लेकर खेती कर रहे हैं. जब किसान का खेत से रिश्ता किराए का हो जाता है तो जमीन से लगाव खत्म हो जाता है. यही वजह है कि मिट्टी की सेहत की चिंता भी कम होती जाती है.
उन्होंने पेस्टिसाइड और फर्टिलाइजर के नकली कारोबार पर भी सवाल उठाया. परगट सिंह का कहना है कि पंजाब में हजारों करोड़ का पेस्टिसाइड बाजार है. जब नोट तक नकली हो सकते हैं तो यहां नकली दवाएं और खाद न हों यह संभव नहीं. इसका सीधा नुकसान किसान को उठाना पड़ता है. अंत में उन्होंने कहा कि किसान को अब सिर्फ फसल नहीं बल्कि मिट्टी की भी फिक्र करनी होगी. जब तक हम मिट्टी को जिंदा नहीं रखेंगे तब तक खेती का भविष्य सुरक्षित नहीं रहेगा.
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