'किसानों को हो रही ये खतरनाक बीमारी', ICMR की स्टडी पर CCFI का ऑब्जेक्शन, जानें पूरा मामला

'किसानों को हो रही ये खतरनाक बीमारी', ICMR की स्टडी पर CCFI का ऑब्जेक्शन, जानें पूरा मामला

CCFI ने ICMR द्वारा सितंबर में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट को वापस लेने की मांग की है. दरअसल, पश्चिम बंगाल के एक जिले में किए गए अध्ययन के आधार पर कृषि मजदूरों में कीटनाशकों के संपर्क में खतरनाक बीमारी फैल रही है.

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'किसानों को हो रही ये खतरनाक बीमारी', ICMR की स्टडी पर CCFI का ऑब्जेक्शन, जानें पूरा मामलाICMR की स्टडी पर CCFI का ऑब्जेक्शन

कीटनाशक उद्योग निकाय क्रॉप केयर फेडरेशन ऑफ इंडिया (सीसीएफआई) ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक शोध पर आपत्ति जताई है. दरअसल, CCFI ने ICMR द्वारा सितंबर में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट को वापस लेने की मांग की है, जिसमें पश्चिम बंगाल के एक जिले में किए गए अध्ययन के आधार पर कृषि मजदूरों में कीटनाशकों के संपर्क में आने से दिमागी सेहत पर असर देखा जा रहा है, जिससे मजदूर डिप्रेशन में जा रहे हैं.

शोध को वापस लेने का आग्रह

'बिजनेस लाइन' के मुताबिक, इस सप्ताह के शुरू में ICMR के महानिदेशक राजीव बहल को लिखे पत्र में CCFI की कार्यकारी निदेशक निर्मला पथरावाल ने कहा कि इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित विशेष शोध को वापस लेने का आग्रह किया है.

जनसंख्या आधारित अध्ययन, जिसका शीर्षक है, "कृषि मजदूरों में कीटनाशक से दिमागी बीमारी हो रही है.  ग्रामीण भारत में मामला नियंत्रण अध्ययन में दिमागी बीमारी से साथ या उसके बिना 18.9 प्रतिशत का नुकसान, संज्ञानात्मक हानि के साथ या उसके बिना बीमारी के 8.3 प्रतिशत और संभावित दिमागी बीमारी के 1.5 प्रतिशत बढ़ोतरी की पहचान की है.

कृषि मजदूरों को हो रही बीमारी

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया है कि कीटनाशकों के संपर्क में आने से महिला कृषि मजदूरों को गर्भावस्था के दौरान सूजन और दिमागी रोग का जोखिम है. पूर्व बर्धमान जिले के गलसी II ब्लॉक में 808 प्रतिभागियों के बीच किए गए अध्ययन के अनुसार, "बायोमार्करों में, PON1 उन प्रतिभागियों में काफी अधिक पाया गया, जिन्होंने कृषि कार्य में अधिक घंटे बिताए और कीटनाशकों का अधिक बार प्रयोग किया.

क्यों किया गया था ये शोध?

शोध करने वाले लेखकों ने कहा कि यह अध्ययन आने वाले समय में कीटनाशक जोखिम और दिमागी बीमारी के बीच संबंध की पहचान करने के लिए किया गया था. इसके लिए लक्षण-आधारित मान्य जांच  का उपयोग किया गया और खासकर के ग्रामीण आबादी, विशेष रूप से कृषि श्रमिकों के बीच आरबीसी एसिटाइलकोलिनेस्टरेज़ (एसीएचई), प्लाज्मा ब्यूटिरिलकोलिनेस्टरेज़ (बीसीएचई) और पैराऑक्सोनेज 1 (पीओएन1) के स्तर का आकलन किया गया.

लेकिन, CCFI की कार्यकारी निदेशक निर्मला पथरावाल ने अपने पत्र में इस बात पर ज़ोर दिया है कि भारत कृषि रसायनों का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है, जो 150 से ज़्यादा देशों में बेचा जाता है. 640 अरब डॉलर के वैश्विक कृषि उत्पादन के साथ भारत दूसरे सबसे बड़े देश के रूप में भी उभरा है, लेकिन कीटनाशकों की खपत के मामले में यह 171वें स्थान पर है. उन्होंने आरोप लगाया, कि यह दर्शाता है कि भारतीय किसान कृषि रसायनों का कुशल और विवेकपूर्ण उपयोग करते हैं. दुर्भाग्य से, आईसीएमआर सहित कुछ लोग अपना अलग एजेंडा चलाने के लिए इस तथ्य को दबाना पसंद करते हैं.

पैरासिटामोल का दिया गया हवाला

पैरासिटामोल के मामले का हवाला देते हुए, जिसमें कुछ रिपोर्टों का दावा है कि यह लोगों के लिए नुकसानदायक है, जबकि कुछ अन्य रिपोर्टों का कहना है कि यह बीमारी को कम करता है, सीसीएफआई ने कहा है कि केस-कंट्रोल अध्ययनों के परिणाम व्यापक रूप से अलग हो सकते हैं.

सीसीएफआई ने कहा कि यदि केस-कंट्रोल अध्ययन में नियंत्रण और केस समूह समान हैं, तो यह अमान्य है, क्योंकि दोनों समूहों में समान विशेषताएं होंगी, जिससे रोग या जोखिम से संबंधित किसी भी अंतर की पहचान करना असंभव हो जाएगा. सीसीएफआई ने आईसीएमआर को यह भी बताया है कि केंद्र के "एनीमिया मुक्त भारत सर्वेक्षण" से पता चला है कि पूर्वी बर्धमान ज़िले में गंभीर रूप से एनीमिया से ग्रसित लोग हैं. पथरावल ने कहा, "यह सर्वविदित है कि आयरन की कमी वाले लोग एनीमिया से ग्रस्त होते हैं और उनमें संज्ञानात्मक अक्षमताएं जैसे ध्यान, दिमागी कमी और विकास संबंधी समस्याएं दिखाई देती हैं.

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