
हर साल 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य मिट्टी के संरक्षण, महत्व और उसके टिकाऊ उपयोग के प्रति जागरूकता बढ़ाना है. मिट्टी पृथ्वी पर जीवन का आधार है क्योंकि भोजन के लिए यही मिट्टी सबसे बड़ा रोल अदा करती है. साथ ही पर्यावरण के संतुलन में भी मिट्टी अहम भूमिका निभाती है.

वैसे तो भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है. भारत की सांस्कृतिक विविधताओं के चर्चे दुनियाभर में है. लेकिन, सच ये है कि भारत की ये सांस्कृतिक विविधताओं का मुख्य आधार देश में पाई जाने वाली मिट्टी हैं. असल में देश के अंदर पाई जाने वाली मिट्टी में ही विविधिताएं हैं, जो पूरे देश को एक होने के बाद भी अपना अलग-अलग रंग और रूप लिए हैं.

असल में मिट्टी जमीन के ऊपर का वह भाग होता है जिसकी उपजाऊ क्षमता अलग अलग जगहों में अलग अलग होती है, यदि आप कृषि के क्षेत्र में आते हैं और खेती करना चाहते हैं तो आपको मिट्टी की गुणवत्ता और उसके प्रकार के बारे में जानना बहुत जरूरी होता है. ऐसे में आज हम बात करेंगे भारत की 8 प्रमुख मिट्टियों की. ये कौन-कौन सी हैं, इनकी खासियत क्या है, और इनमें कौन सी फसलें सबसे शानदार तरीके से उगती हैं?

काली मिट्टी, जिसे रेगुर (कपास-मिट्टी) के नाम से भी जाना जाता है. यह महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में पाई जाती है. इस मिट्टी का रंग हल्के काले से गहरे काले रंग तक होता है. इसमें चूना, लौह तत्व और मैग्नीशियम की भरमार होती है, जिससे यह खूब उपजाऊ बनती है. पैदावार की बात करें तो इस मिट्टी में कपास, गन्ना, गेहूं, तिलहन और सूरजमुखी जैसी फसलें उगाई जाती हैं.

लाल मिट्टी की बात करें तो यह राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बंगाल, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश के कुछ कोनों में बिछी है. इसमें चूना, फॉस्फेट, मैग्नीशियम, नाइट्रोजन, ह्यूमस और पोटाश की थोड़ी कंजूसी है, लेकिन एल्यूमिनियम और लोहा खूब भरा है. यह दालों और मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, मक्का के लिए जैकपॉट है. ये मिट्टी बनावट में हल्की होने की वजह से पानी को जल्दी सोख लेती है.

मरुस्थलीय मिट्टी ऐसे स्थान जहां वर्षा बहुत कम होती है इस मिट्टी में ह्यूमस की कमी होती है, राजस्थान, गुजरात, पंजाब और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में यह मिट्टी पाई जाती है, इस तरह की मिट्टी में मोटे अनाज की खेती की जाती है.

लवणीय मिट्टी इस तरह की मिट्टी में लवण (नमक) की मात्रा अधिक होती है, जिसके कारण बीजों का अंकुरण और पौधे का विकास प्रभावित होता है, यह बिहार, गुजरात, हरियाणा, पंजाब और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में पाई जाती है, इस तरह की मिट्टी में गेहूं और सरसों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, क्योंकि गेहूं की फसल अन्य फसलों की तुलना में खारेपन को सहन कर सकती है.

लैटेराइट शुष्क इलाकों में पाई जाने वाली मिट्टी है. यह मिट्टी चट्टानों के टूटने से बनती है, इसमें लोहा और चूना की मात्रा काफी अधिक होती है. यह मिट्टी कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, बंगाल और उड़ीसा के इलाकों में पाई जाती है, इसमें उगने वाली प्रमुख फसलें, चावल, गेहूं, कपास कॉफी और नारियल होती हैं.

दलदली मिट्टी की उपजाऊ क्षमता अधिक होती है, यह केरल, बंगाल और उत्तराखंड में पाई जाती है, इसमें दलहनी फसलों की खेती की जाती है. इसके अलावा इस मिट्टी चावल जैसी फसलें भारी मात्रा में उगाई जाती हैं. यह आर्द्रभूमि क्षेत्रों में पाई जाती है और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर होती है.

पर्वतीय मिट्टी यह मिट्टी मुख्य रूप से पहाड़ी ढलानों में पाई जाती है, ये मिट्टी कार्बनिक ढलानों में पाई जाती है इस मिट्टी में चाय, कॉफी, सेब और मसालों की खेती की जाती है. इन क्षेत्रों के किसान, इस मिट्टी में पारंपरिक फसलों की खेती कम कर पाते हैं.

भारत के पीली मिट्टी भी पाई जाती है. जिसमें केरल पीली मिट्टी का मुख्य गढ़ है. असल में पाली मिट्टी लाल रंग की एक मिट्टी का प्रकार है. लेकिन, इसे भी अलग मिट्टी की तरह पहचाना गया है. लाल मिट्टी वाले क्षेत्र में अधिक बारिश की वजह से जब उससे रासायनिक तत्व अलग हो जाते हैं. तो फिर वह पीली मिट्टी बन जाती है. इस मिट्टी में मसालों की खेती अधिक होती है.
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