यूं तो अक्सर किसानों के लिए पौधों के पूरी तरह से खिलने और उनमें फूल आने की स्थिति जश्न की स्थिति होती है. पौधों के खिलने पर किसानों को भरपूर फसल की उम्मीद होती है. लेकिन मिजोरम में ऐसा नहीं है और यहां बांस के पेड़ों पर फूल आना किसानों में डर की स्थिति पैदा करता है. पूर्वोत्तर राज्य में इस घटना को 'मौतम' के नाम से जाना जाता है, जिसका मतलब होता है 'मृत्यु'. ऐसा इसलिए क्योंकि बांस के पौधों में फूल आने से चूहे की तरह दिखने वाले एक जानवर की आबादी में इजाफा होता है. यह जानवर बांस के बीजों को खाता है और तेजी से प्रजनन करता है.
ये जानवरी बड़ी संख्या में खेती योग्य भूमि पर हमला करते हैं और खाद्यान्नों को नष्ट कर देते हैं. ये यही नहीं रुकते और जो कुछ भी उन्हें मिलता है उसे खा लेते हैं जिसकी वजह से अकाल जैसी स्थिति पैदा हो जाती है. अच्छी बात यह है कि यह स्थिति हर साल नहीं पैदा होती बल्कि बांस की प्रजाति के आधार पर करीब हर 30 से 50 साल में एक बार ही सामने आती है. कई रिपोर्ट्स पर अगर यकीन करें तो धान के खेतों पर चूहों के हमले से अक्सर गंभीर खाद्यान्न की कमी हो जाती है, खासकर आदिवासी समुदायों में जो पूरी तरह से अपनी खेती और फसल पर ही निर्भर हैं.
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इस समस्या के बार-बार सामने आने के बाद मिजोरम सरकार ने साल 2005 में बांस के फूल और अकाल से निपटने की योजना (BAFFACOS) शुरू की थी. उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री जोरमथांगा के नेतृत्व में, कृषि, स्वास्थ्य, ग्रामीण कार्य और सार्वजनिक कार्यों सहित विभिन्न विभागों को स्थिति से निपटने के लिए एक साथ लाया गया था जो अक्सर चूहों की आबादी बढ़ने के कारण नियंत्रण से बाहर हो जाती थी.
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चूहों की समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए राज्य सरकार की तरफ से एक खास स्कीम की शुरुआत की गई. राज्य सरकार ने इस खास योजना में हर चूहे की पूंछ के लिए 2 रुपये देने की पेशकश की थी. हालांकि इस योजना को कम कारगर बताया गया था. स्थानीय लोगों की मानें तो मौतम एक दुर्लभ घटना है जो बांस के पौधे के जीवन में सिर्फ एक बार होती है. फूल आने के बाद बांस मर जाता है और अपने पीछे विनाश की विरासत छोड़ जाता है. वहीं इसकी ढीली मिट्टी अक्सर भूस्खलन का कारण बनती है, जिससे खाद्यान्न की कमी और अकाल जैसी चुनौतियां सामने आती हैं.
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