मणिपुर में किसान समुदाय इन दिनों खासा परेशान है. 3 मई 2023 को यहां पर शुरू हुए मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा ने लंबे समय से परेशान किया हुआ है. राज्य की कभी उपजाऊ जमीन अब बंजर होती जा रही है. साथ ही खेती पर निर्भर हजारों ग्रामीण परिवारों की रोजी-रोटी पर भी गहरा संकट मंडरा रहा है. इंफाल पूर्वी जिले के बाहरी इलाके में स्थित सबुंगखोक खुनौ गांव इस संकट की असली तस्वीर दिखाता है. यहां के किसान जो कभी अपनी जमीन से भरपूर फसल लेकर परिवार का पेट पालते थे, अब गुजारे के लिए जूझ रहे हैं.
यहां के किसान थंगजाम रोजित के पास 4.3 एकड़ जमीन है, जो पहले अच्छी पैदावार देती थी. लेकिन अब वह जमीन एक साल से ज्यादा समय से खाली पड़ी है. साथ ही कई तरह की खरपतवारों से ढक गई है. न्यूज एजेंसी एएनआई से रोजित ने कहा, 'जिंदगी जीने और अच्छी इनकम के लिए मैं दूसरों के खेतों में मजदूरी कर रहा हूं. हम सरकार से मदद चाहते हैं ताकि हमारी ज़मीन बहाल हो और हम फिर से खेती कर सकें.' मणिपुर में फसलों को मोटे तौर पर अनाज, दलहन, तिलहन और बाकी व्यावसायिक फसलों की खेती होती है. राज्य में हालांकि आज भी मुख्य अनाज फसलें चावल और मक्का हैं.
वे अकेले ऐसे नहीं हैं. पूरे मणिपुर के सैकड़ों किसान इसी हालात से गुजर रहे हैं. एक और किसान खेत्रीमायुम प्रेमानंद अपनी तीन एकड़ जमीन पर हिंसा शुरू होने के बाद से काम नहीं कर पा रहे. उन्होंने कहा, 'हमारे इलाके में सुरक्षा इंतजाम अभी भी पर्याप्त नहीं हैं, जबकि आसपास कुछ सुरक्षाकर्मी मौजूद हैं.' आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, हिंसा शुरू होने के बाद से करीब 5,127 हेक्टेयर कृषि भूमि खाली पड़ी है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हालात जल्द नहीं सुधरे तो इसके गंभीर सामाजिक और आर्थिक नतीजे सामने आएंगे.
कृषि और ग्रामीण अर्थशास्त्र विशेषज्ञ डॉ. हंजाबाम ईश्वरचंद्र शर्मा ने बताया, 'यह रुकावट मणिपुर की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गहराई से प्रभावित करेगा. लोगों को अपने खर्च कम करने पड़ेंगे, वो उच्च शिक्षा पर खर्च नहीं कर पाएंगे और शायद उन्हें अपनी प्रॉपर्टी तक बेचनी पड़ जाए. अगर इस समस्या का समय रहते हल नहीं हुआ तो मानव संसाधन तक खत्म हो जाएंगे और बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा.'
लगातार जारी संघर्ष ने किसानों को अपनी जमीन और खेतों से दूर कर दिया है. कृषि चक्र पूरी तरह से बाधित हो गया है. जिन खेतों से पहले परिवारों और गांव की आजीविका चलती थी, वे अब उजड़कर नुकसान और अनिश्चितता की तस्वीर बन गए हैं. आज मणिपुर के किसानों की फूड सिक्योरिटी खतरे में है और उनकी आय एकदम खत्म हो गई है. वो बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं कि हालात सामान्य हों और फिर से अपने खेतों में लौटकर जीवनयापन किया जा सके.
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