भारत का पड़ोसी मुल्क नेपाल इन दिनों हिंसक विरोध प्रदर्शनों की आग में झुलस रहा है. सोशल मीडिया पर लगे बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ लोग सड़कों पर उतरे हुए हैं. चीन समर्थक पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली फिलहाल इस्तीफा देकर कहां हैं, किसी को नहीं मालूम. ओली के शासन में भारत और नेपाल के रिश्ते खूब बिगड़े. बॉर्डर इश्यू से लेकर कई और मसलों पर दोनों देशों में तनातनी रही. इन कई मसलों में एक मसला खेती से भी जुड़ा है. साल 2020 में बासमती चावल के मुद्दे पर नेपाल भारत से भिड़ गया था, हालांकि उसको खास तवज्जो नहीं मिली. बासमती के जीआई टैग यानी भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) पर नेपाल को पिछले कुछ वर्षों से आपत्ति रही है. जानें आखिर क्या हुआ था उस साल और कैसे नेपाल बासमती पर लगातार काम करता गया.
यूरोपियन यूनियन में बासमती पर जीआई टैग किसे मिले इस पर अभी तक भारत और पाकिस्तान ही भिड़ते आए थे, लेकिन 2020 में नेपाल ने भी इस मामले में एंट्री मार ली. नेपाल ने 9 दिसंबर, 2020 को यूरोपियन कमीशन को अपना विरोध पत्र कुछ सबूतों के साथ सौंपा. इसके साथ ही नेपाल इस खेल में तीसरा खिलाड़ी बन गया. नेपाल ने कमीशन के सामने इस बात को लेकर विरोध जताया कि भारत कैसे जीआई टैग के लिए आवेदन दायर कर सकता है, जबकि जमीनी स्तर पर वह इसके योग्य नहीं है. नेपाल का कहना था कि बासमती तो पारंपरिक तौर पर उसके यहां ही उगता है और ऐसे में उसके लिए यह बहुत स्वाभाविक है कि वह भारत की मांग का विरोध करे. नेपाल ने इसका लिखित विरोध दर्ज कराया था. विरोध में नेपाल ने तीन तर्क दिए थे.
नेपाल ने कहा था कि प्राचीन काल से ही वहां बासमती को उगाया जा रहा है और खाया जा रहा है. दावा किया गया कि नेपाल एग्रीकल्चर रिसर्च काउंसिल सहित कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक रिसर्च ऑर्गनाइजेशंस सन् 1960 के दशक से ही बासमती चावल पर काम कर रहे हैं और स्थानीय बासमती चावल की प्रजातियों का प्रयोग करके सुगंधित चावल की किस्में विकसित कर रहे हैं. खासतौर पर चावल की चार बासमती किस्मों को तो रजिस्टर्ड भी किया जा चुका है. नेपाली समुदायों में बासमती चावल के सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्य हैं.
स विरोध का नेपाल के ट्रेडर्स ने काफी समर्थन किया था. उनका कहना था कि ये पुरानी बातें हो गई हैं जब हमने अपनी इंटैलैक्चुअल प्रॉपर्टी को सहेजने में कोई उत्साह नहीं दिखाया है. लेकिन अब यह स्थिति बदल चुकी है और नेपाल जीआई टैग और बायो-डायवर्सिटी के साथ स्वदेशी और पारंपरिक ज्ञान की क्षमता को बढ़ाने के लिए कानूनी ढांचा विकसित करने की दिशा में काम कर रहा है. उनका कहना था कि भारत के लिए विरोध नेपाल की रुचि और अपने संभावित जीआई के लिए जागरूकता का प्रमाण है. उनका मानना था कि अब शायद नेपाली सरकार चाय, कॉफी और चियांगरा पश्मीना को लेकर गंभीर होगी.
बासमती पर जीआई टैग के लिए भारत और पाकिस्तान 2008 से लड़ रहे हैं. साल 2016 में भारत ने अपने घरेलू कानून के माध्यम से बासमती के लिए जीआई टैग हासिल किया. साल 2018 में यूरोपियन यूनियन (ईयू) में प्रोटेक्टेड जीआई स्टेटस के लिए अप्लाई किया. साल 2020 में पाकिस्तान ने इसका विरोध किया और तर्क दिया कि बासमती उसकी सांस्कृतिक और कृषि विरासत का समान तौर पर हिस्सा है. पाकिस्तान के अनुसार बासमती की खेती पंजाब और सिंध में की जाती है. देश ने अपने दावे को मजबूत करते हुए साल 2021 में घरेलू स्तर पर बासमती को जीआई टैग दे दिया.
पाकिस्तान के 14 जिलों और भारत के सात राज्यों में पारंपरिक तौर पर बासमती की खेती की जाती है. साल 2008 में दोनों देशों को बासमती उगाने वाले क्षेत्रों के तौर पर पहचानते हुए ईयू में एक साथ मिलकर इसके लिए आवेदन पेश करने के करीब थे. लेकिन मुंबई आतंकी हमलों ने आपसी सहयोग के इस असाधारण प्रयास को पटरी से उतार दिया. तब से ही यह विवाद और जटिल हो गया है.
एक दौर ऐसा भी था जब भारत और पाकिस्तान बासमती के लिए मिलकर काम करते थे. 1997 में, टेक्सास स्थित राइसटेक को 'टेक्समती' के लिए अमेरिकी पेटेंट मिला जिसमें बासमती की बेहतर वैरायटी विकसित करने का दावा किया गया. इसके बाद जो कुछ हुआ वह एतिहासिक था. भारत ने पेटेंट को चुनौती देने के लिए डीएनए और ऐतिहासिक सबूत इकट्ठा किए तो पाकिस्तान ने चुनौती का समर्थन किया. आखिरकार, राइसटेक ने 'बासमती' का उपयोग करने का अधिकार खो दिया.
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