क्या है ग्रीन हाइड्रोजन जो पेट्रोल-डीजल से दिलाएगी छुटकारा, PM Modi ने शुरू किया इसका खास मिशन

क्या है ग्रीन हाइड्रोजन जो पेट्रोल-डीजल से दिलाएगी छुटकारा, PM Modi ने शुरू किया इसका खास मिशन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस ग्रीन हाइड्रोजन की बात कही है, क्या चीज है वो? क्या है नेशनल हाइड्रोजन मिशन. ग्रीन हब और ग्रीन जोन कैसे बनेगा? पहले समझते हैं कि ग्रीन हाइड्रोजन क्या है. फिर इससे जुड़े बाकी सवालों के जवाब भी जानिए.

Advertisement
क्या है ग्रीन हाइड्रोजन जो पेट्रोल-डीजल से दिलाएगी छुटकारा, PM Modi ने शुरू किया इसका खास मिशनक्या है ग्रीन हाइड्रोजन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर एक बार फिर ग्रीन हाइड्रोजन की बात की. इसकी जरूरतों के बारे में बताया. कहा कि ग्रीन हाइड्रोजन के लिए हब बनाना है. ताकि देश रिन्यूएबल ऊर्जा के रास्ते पर स्वतंत्र हो सके. जीवाश्म ईंधन यानी पेट्रोल, डीजल और कोयले की गुलामी से मुक्ति मिल सके. ऐसे में आइए जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस ग्रीन हाइड्रोजन की बात कही है, क्या चीज है वो? क्या है नेशनल हाइड्रोजन मिशन. ग्रीन हब और ग्रीन जोन कैसे बनेगा? पहले समझते हैं कि ग्रीन हाइड्रोजन क्या है. फिर इससे जुड़े बाकी सवालों के जवाब भी जानिए.

क्या है ग्रीन हाइड्रोजन?

पूरी दुनिया को पता है कि H2O यानी पानी. सामान्य भाषा में इसमें दो कण हाइड्रोजन (H2) के हैं. एक हिस्सा ऑक्सीजन (O) का. अब अगर इन्हें इलेक्ट्रोलाइजर से अलग कर दें, तो जो हाइड्रोजन बचेगा, वो है ग्रीन हाइड्रोजन. इलेक्ट्रोलाइजर वह धातु है जो बिजली का करंट पैदा करके अणुओं को तोड़ने का काम करता है.

कैसे और कहां से मिलेगा?

ग्रीन हाइड्रोजन पानी से मिलेगा. वह भी सौर, पवन और जल ऊर्जा की मदद से. जैसे पनचक्की चलाकर बिजली पैदा की जाती है. उसी बिजली से इलेक्ट्रोलाइजर की मदद से पानी के अणुओं को तोड़कर ग्रीन हाइड्रोजन पैदा किया जा सकता है. यानी रेन्यूबल ऊर्जा से नई ऊर्जा पैदा करना.  

भारत को क्या फायदा?

भारत हर साल ऊर्जा प्राप्त करने के लिए 12 ट्रिलियन रुपये खर्च करता है. यानी 12 लाख करोड़ रुपये. जिसमें से अधिकतर हिस्सा जाता है जीवाश्म ईंधन के नाम पर. यानी पेट्रोल, डीजल और कोयला. इससे कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है. जलवायु गर्म होती है. मौसम बदलता है. फिर ढेरों आपदाएं आती हैं. ग्रीन हाइड्रोजन से जीवाश्म ईंधन की खपत कम होगी और धीरे-धीरे मौसम सुधरेगा साथ ही गर्मी कम होती चली जाएगी.  

नेशनल हाइड्रोजन मिशन

भारत ने नेशनल हाइड्रोजन मिशन बनाया है ताकि ग्रीन हाइड्रोजन का टारगेट जल्दी पूरा किया जा सके. कैसे प्रोडक्शन होना है. कहां होना है. कितना एक्सपोर्ट करना है. साथ ही इसकी मदद से जमीन का सही इस्तेमाल कर सोलर और विंड एनर्जी की तैयारी करनी है क्योंकि इनकी मदद से ग्रीन हाइड्रोजन बनाने में मदद मिलेगी.

पिछले साल मिला अप्रूवल

पिछले साल 4 जनवरी 2022 को नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को कैबिनेट ने मंजूरी दी थी. इसके बाद इस मिशन के लिए शुरुआत में 19,744 करोड़ रुपये का आउटले तैयार किया गया. ये आउटले 2029-30 तक के लिए है. इसमें 17,490 करोड़ रुपये का आउटले स्ट्रैटेजिक इंटरवेंशन फॉर ग्रीन हाइड्रोजन ट्रांजिशन (SIGHT) प्रोग्राम के लिए तय किया गया था.

ये भी पढ़ें:-  K-DSS प्लेटफॉर्म क्या है जिससे खेती की मिलेगी हर एक जानकारी, मौसम का पता भी चलेगा

इसमें 1466 करोड़ रुपये का पायलट प्रोजेक्ट था. 400 करोड़ रुपए रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए. इसके अलावा 388 करोड़ रुपये मिशन के कंपोनेंट्स के लिए था. इसके अलावा 2029-30 तक 455 करोड़ रुपये लो कार्बन स्टील प्रोजेक्ट्स, 2025-26 तक 496 करोड़ रुपये मोबिलिटी पायलट प्रोजेक्ट्स और 2025-26 तक 115 करोड़ रुपये शिपिंग पायलट प्रोजेक्टस के लिए तय किए गए.  

मिशन का क्या है मकसद?

ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का मकसद है कि साल 2030 तक देश में ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन कम से कम 5 मिलियन मीट्रिक टन हो. इसमें करीब 8 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा. इसकी वजह से 6 लाख नौकरियां बनेंगी. जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होगी. इससे करीब एक लाख करोड़ रुपए का फायदा होगा.

सबसे बड़ा फायदा होगा कि साल भर में 50 मिलियन मीट्रिक टन ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम हो जाएगा. यानी प्रदूषण का स्तर बहुत कम होगा. भारत पूरी दुनिया को ग्रीन हाइड्रोजन का सबसे बड़ा उत्पादक और सप्लायर बन पाएगा. पेट्रोल, डीजल और कोयले की खपत कम होगी. स्वदेशी कंपनियों को फायदा होगा.  

ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए इलेक्ट्रोलाइजर की जरूरत पड़ेगी. इसे बनाने वाली कंपनियों को फायदा होगा. देश में ऐसी कंपनियों के आने से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. मिशन के अनुमान के तहत देश को शुरुआत में 60 से 100 गीगावॉट इलेक्ट्रोलाइजर क्षमता की जरूरत होगी.

उद्योगों में इसका क्या फायदा?

लोहा और स्टील उत्पादन करने वाली इंडस्ट्री में हाइड्रोजन ले सकता है कोयले की जगह. पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन वाले उद्योगों में एक है स्टील इंडस्ट्री. इस सेक्टर को अगर ग्रीन हाइड्रोजन से जोड़ दें तो दुनिया में प्रदूषण की मात्रा कम हो जाएगी. इसका असर जलवायु पर सकारात्मक पड़ेगा.

ग्रीन हाइड्रोजन से यातायात

फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक व्हीकल (FECV) हाइड्रोजन फ्यूल पर ही चलेंगे. इससे कोई प्रदूषण भी नहीं होगा. हल्के यात्री वाहनों के लिए बैटरी इलेक्ट्रिक व्हीकल (BEV) सही रहते हैं. ताकि कम दूरी में आसानी से बिना प्रदूषण के कवर की जा सके. लंबी दूरी के लिए FECV की जरूरत होगी. जैसे- बस, ट्रक और अन्य व्यावसायिक वाहन.  

क्या है ग्रीन हाइड्रोजन हब?

ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत उन स्थानों की पहचान की जाएगी जहां पर ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन बड़े पैमाने पर होगा. इसे ग्रीन हाइड्रोजन हब कहेंगे. साल 2025-26 तक ऐसे हब बनाने के लिए मिशन में 400 करोड़ रुपए का प्रावधान है. इसमें ऐसे हब का ढांचा खड़ा किया जाएगा. शुरुआत में दो ग्रीन हब बनाने की योजना है. (ऋचीक मिश्रा की रिपोर्ट)

POST A COMMENT