मशहूर शायर नवाब मुस्तफा खान शेफ़्ता का एक मशहूर शेर है. अर्ज किया है...हम तालिब-ए-शोहरत हैं, हमें जंग से क्या काम, बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा. बदनामी से नाम कमाने के इस हुनर को नवाब मुस्तफा खान ने खूब पहचाना था. तब से लेकर अब तक इस हुनर के सहारे कई बदनाम लोगों ने खूब नाम कमाया, लेकिन बदनामी की ये कहानी, कईयों पर बेहद ही भारी पड़ी है.
हमने पिछले दिनों Tel ka khel: सरसाें क्यों हो रही बदनाम! अमेरिका-यूरोप में सरसों तेल पर बैन, किसान बेचैन पर विस्तार से बात की थी, जिसका सार ये ही है कि अमेरिका और यूरोप के कई देशों में खाद्य तेलों के रूप में सरसों के तेल का प्रयोग बैन कर दिया है, जबकि इसके उलट भारत में सदियों से खाद्य तेल के तौर पर सरसों के तेल का प्रयाेग होता रहा है.
अमेरिका और यूरोप के कई देशों में सरसों के तेल पर बैन के इस फैसले को कई एक्सपर्ट साजिश करार देते हैं. अगर भारत में ही आजादी के बाद तेल के खेल में सरसों की यात्रा की पड़ताल करें तो समझा जा सकता है कि देश में सरसों पहले भी बदनाम हई है. आइए इसी कड़ी में आज बात करते हैं खाद्य तेलों के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने वाले सफल ऑपरेशन गोल्डन फ्लो के साजिशन खात्मे की कहानी की...
खाद्य तेलों के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने वाले सफल ऑपरेशन गोल्डन फ्लो के साजिशन खात्मे की कहानी से पहले बात करते हैं. देश में खाद्य तेलों की कंकाली और सरसों के गिरते दाम से परेशान किसानों की कहानी पर. असल में भारत खाद्य तेलों के मामले में कंकाली झेल रहा है. भारत अपनी घरेलू जरूरतों का 60 फीसदी खाद्य तेल विदेशों से मंंगवाता है, जिसमें आधे से अधिक मात्रा पाम ऑयल की होती है, इसके बाद सोयाबीन है. इन हालातों में होना ये चाहिए था कि देश में पैदा होने वाली सरसों जैसी तिलहनी फसलों को बेहतर दाम मिलते, लेकिन इसका उलटा हो रहा है. मसलन, खाद्य तेलों की कमी के बाद भी देश के किसानों को MSP से नीचे बेचना पड़ता है. सरसों की इस बदहाली से किसान परेशान है.
खाद्य तेलों के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश भारत में पहले भी हुई है, जिसमें भारत सफल भी हुआ, लेकिन इस कोशिश का समापन सरसों की बदनामी के साथ हुआ. असल में खाद्य तेलों के मामले में भारत को आत्म निर्भर बनाने के लिए भारत में ऑपरेशन गोल्डन फ्लो शुरू किया गया था. आपातकाल यानी साल 1977 में जनता पार्टी सरकार के वित्त मंत्री हीरूभाई पटेल ने अमूल डेयरी कॉपरेटिव मॉडल की तर्ज पर खाद्य तेलों का कॉपरेटिव मॉडल खड़ा करने की जिम्मेदारी डॉ वर्गीज कुरियन को दी, जिसे ऑपरेशन गोल्डन फ्लो का नाम दिया गया.
इस ऑपरेशन गोल्डन फ्लो से धारा का जन्म हुआ. ये वहीं धारा है, 90 के दशक में जन्मे लोगों के बीच जलेबी वाले तेल के एडवाइजमेंट के तौर पर जाना जाता हैं, जिसमें रूठे दादा जी अपने पोते के मनाने के लिए घर में बन रही जलेबी का जिक्र करते हैं और ये जलेबी धारा ब्रांड के तेल में तली गई थी, जो शुद्ध देशी तेल था, जिसका जन्म एनडीडीबी ऑपरेशन गोल्डन फ्लो से जन्मा था.
असल में अगस्त 1988 में धारा को लांच किया गया था. वहीं ऑपरेशन गोल्डन फ्लो को सफल बनाने के लिए शुरूआत में विदेशों से इंपोर्ट हुए खाद्य तेल को धारा ब्रांड के नाम से बेचा. इसके बाद एनडीडीबी ने अपने नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए किसानों से तिलहनी फसलों की खरीदारी की. एनडीडीबी की ये कोशिश बेहद ही सफल रही और किसानों ने भी जमकर तिलहनी फसलों एनडीडीबी को बेची. नतीजतन 3 साल में ही एनडीडीबी धारा ब्रांड के तहत सरसों, बिनौला, मूंगफली की सीरीज लांच की. ऑपरेशन गोल्डन फ्लो की सफलता का आलम ये रहा कि शुरूआती 4 से 5 साल में ही एनडीडीबी यानी धारा ने खाद्य तेलों के बाजार में अपना कब्जा जमा लिया, जिसका सीधा फायदा देश के किसानों को हुआ.
धारा ब्रांड में सरसों के तेल की हिस्सेदारी अधिक थी. मसलन, देश के सरसों किसानों को बेहतर दाम मिल रहा था, लेकिन माना जाता है कि सरसों यानी घरेलू तिलहनी फसलों की सफलता कईयों को रास नहीं आई. असल में 1995 में भारत ने WTO के साथ करार किया, जिसके तहत साल 1998 में भारत ने 10 लाख टन सोयाबीन के बीच अमेरिका से इंपोर्ट किए. इसके बाद दिल्ली में ड्रॉप्सी यानी सरसों के तेल में मिलावट का मामले सामने आए.
इस वजह से देश में 60 लोगों की मौत हो गई, जबकि 3 हजार लोग बीमार पड़ गए. ड्रॉप्सी के मामले सामने आने के बाद सरकार ने खुले सरसों के तेल पर प्रतिबंध लगा दिया तो एनडीडीबी को विज्ञापन जारी कर लोगों से धारा सरसों का तेल ना खरीदने का आग्रह लोगों से करना पड़ा.
माना जाता है कि सरसों के तेल को बदनाम करने के लिए ये सुनियोजित हमला था, जिसके बाद देश में कई ब्रांडेड और कई तरह के तेल बाजार में आए और सरसों के तेल में समश्रिण का नियम बना, जिसके तहत सरसों के तेल में पॉम आयल जैसे तेलों की मिलावट अनिवार्य की गई. इससे सरसों के दाम बाजार में गिरने लगे, जो आज तक सम्मान वापिस की चाह में है.
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