सुथनी शकरकंद प्रजाति का एक कन्द है जो अब विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुका है. सुथनी को अंग्रेजी में लेसर येम कहा जाता है. यह जमीन में सात से 5 से 6 इंच नीचे पैदा होता है. इसकी लता 3 मीटर तक लंबी होती है. यह उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों खास तौर से एशिया और प्रशांत क्षेत्र में मुख्य खाद्य पदार्थों में से एक रहा है. चीन में 1700 शताब्दी से इसका उत्पादन किया जा रहा है. सुथनी पूरे साल में केवल छठ पर्व के समय ही देखने को मिलता है क्योंकि यह मुख्य फल है जिसके बिना यह व्रत अधूरा माना जाता है. सुथनी को उबाल कर खाया जाता है और इसका स्वाद हल्का मीठा होता है वैसे तो सुथनी के कई व्यंजन भी अब बनाए जाने लगे हैं.सुथनी का सेवन करने से स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं से छुटकारा मिलता है क्योंकि यह विटामिन बी का अच्छा सोर्स माना जाता है, साथ ही इसमें एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी बैक्टीरियल गुण भी मौजूद होते हैं, जो शरीर को स्वस्थ रखने में मददगार साबित होते हैं.
सुथनी असम के कर्बी जनजाति के लोगों का मुख्य भोजन में शामिल है. कर्बी जनजाति के लोग सुथनी को रुईफेंग या सेलु नाम से पुकारते हैं. कर्बी लोग सुथनी को उबालकर खाते हैं.
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भारत की असम में पाई जाने वाली कर्बी जनजाति के लोगों का मुख्य भोजन सुथनी माना जाता है. इसके अलावा अफ्रीका में सुथनी को काफी चाव से खाया जाता है. कैरेबियन द्वीप समूह के देशों में भी सुथनी को सुखाकर उसका आटा बनाया जाता है और फिर इस आटे का इस्तेमाल ब्रेड बनाने में किया जाता है. पापुआ न्यू गिनी में उगाई जाने वाली सुथनी को पोषक तत्वों से भरपूर माना जाता है. सुथनी यहां का मुख्य खाद्य पदार्थ है और यहां के बच्चे उन क्षेत्रों की बच्चों से ज्यादा पोषित है जहां सुथनी का उत्पादन नहीं होता है. इसके अलावा थाईलैंड में सुथनी को बड़े पैमाने पर खाया जाता है. थाईलैंड में सुथनी को उबालकर ,छिलकर और नमक ,चीनी या कभी-कभी नारियल के साथ भी खाया जाता है.
सुथनी को औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है. इसके सेवन से भूख नियंत्रित होती है. चीन में बेरी-बेरी रोग के उपचार के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. वहीं भारत में अल्सर के इलाज में सुथनी का प्रयोग किया जाता है. 2007 में अफ्रीकन जनरल आफ बायोटेक्नोलॉजी में प्रकाशित एक शोध के अनुसार सुथनी जलन और सूजन के उपचार में कारगर पाया गया है. सुथनी का सेवन स्किन को भी कई लाभ पहुंचाता है क्योंकि सुथनी एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर होता है, इसलिए इसका सेवन एजिंग के लक्षण को कम करने में मदद करता है, साथ ही इसका सेवन करने से स्किन हेल्दी रहती है और बुढ़ापे को दूर रखने में मददगार है.
सुथनी में शुक्राणुओं को गाढ़ा होने से रोकने वाले तत्व भी पाए जाते हैं. इसका उपयोग गर्भनिरोधक के तौर पर भी किया जाता है इसलिए इसे जनजाति के लोग इसका उपयोग गर्भनिरोधक के रूप में करते है. इसके अलावा पौरुष शक्ति बढ़ाने में भी ये मदतगार माना जाता है.
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