केंद्र सरकार ने चीनी की एमएसपी यानी न्यूनतम बिक्री मूल्य में बढ़ोत्तरी को फिर से टाल दिया है. चीनी मिलों के संगठन कई साल से एमएसपी में बढ़ोत्तरी की मांग कर रहे हैं. केंद्र ने 6 साल पहले चीनी के MSP में बदलाव किया था. मिलर्स के अनुसार महाराष्ट्र की कई चीनी मिलों पर वित्तीय बोझ बढ़ता जा रहा है, क्योंकि केंद्र ने गन्ना के एफआरपी को बढ़ा दिया है, जिससे किसानों को गन्ना भुगतान की लागत बढ़ी है. ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि किसानों को कहीं गन्ना भुगतान में देरी का सामना न करना पड़े.
रिपोर्ट के अनुसार चीनी का औसत खुदरा बिक्री मूल्य 45 रुपये प्रति किलोग्राम के आसपास रहने के चलते गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली मंत्रियों की समिति ने चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य (MSP) को बढ़ाने के प्रस्ताव को फिलहाल टाल दिया है. एमएसपी में पिछला बदलाव 6 साल पहले हुआ था. किसानों के हितों की रक्षा के उद्देश्य से जून 2018 से चीनी MSP शुरू की गई थी, ताकि उद्योग को कम से कम चीनी उत्पादन की न्यूनतम लागत मिल सके.
अधिकारियों ने कहा कि इसका उद्देश्य चीनी मिलों को किसानों के गन्ना मूल्य बकाया का भुगतान करने में सक्षम बनाना भी था. 2018 में चीनी का MSP 29 रुपये प्रति किलोग्राम तय होने के बाद सरकार ने 2019 में इसे बढ़ाकर 31 रुपये कर दिया. इसके बाद MSP में कोई बदलाव नहीं किया गया है. चीनी उद्योग पिछले कुछ वर्षों से सरकार से MSP में बढ़ोत्तरी का का आग्रह कर रहा है, लेकिन इस मुद्दे का समाधान नहीं किया गया है.
कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) ने भी गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में बढ़ोत्तरी के आधार पर चीनी के एमएसपी में नियमित बदलाव की सिफारिश की थी. 2024-25 सीजन (अक्टूबर-सितंबर) के लिए गन्ना मूल्य नीति रिपोर्ट में सीएसीपी ने कहा कि पिछले तीन चीनी सीजन के दौरान चीनी के खुदरा और थोक मूल्य के बीच अंतर में गिरावट का रुझान दिखा है. सीएसीपी ने कहा कि पिछले 5 सीजन के दौरान चीनी के थोक और खुदरा दोनों मूल्य एमएसपी से काफी ऊपर रहे हैं. इसमें कहा गया है कि सितंबर 2023 तक 6 महीनों में चीनी के का दाम 4,025 रुपये प्रति क्विंटल और खुदरा कीमत 4,343 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई.
आयोग ने कहा कि चीनी की कीमतें बाजार की आपूर्ति और मांग के हिसाब से तय की जानी चाहिए. सीएसीपी की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीनी में दोहरी कीमत, घरेलू उपभोक्ताओं को उचित, सस्ती कीमत पर चीनी की एक तय मात्रा उपलब्ध कराने और मिलों को अपने उत्पादन का एक हिस्सा कमर्शियल कंज्यूमर्स को अधिक कीमत पर बेचने की अनुमति देना चीनी कीमतों के बीच के अंतर पाटने का विकल्प हो सकता है.
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