Stubble Burning: पंजाब में पराली जलाने के मामलों में र‍िकॉर्ड ग‍िरावट, क‍िसानों ने जगाई नई उम्मीद

Stubble Burning: पंजाब में पराली जलाने के मामलों में र‍िकॉर्ड ग‍िरावट, क‍िसानों ने जगाई नई उम्मीद

विशेषज्ञों के अनुसार पराली को मिट्टी में मिलाना एक मुश्किल प्रक्रिया है. वहीं उत्तर भारत में धान की कटाई का समय और गेहूं की एक ही फसल के बीच बहुत कम अंतर होता है. ऐसे में पंजाब के किसान आसान विकल्‍पों की तरफ मुड़ रहे हैं क्योंकि इससे काम करना आसान हो जाता है और ज्‍यादा इनकम की गुंजाइश होती है. 

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Stubble Burning: पंजाब में पराली जलाने के मामलों में र‍िकॉर्ड ग‍िरावट, क‍िसानों ने जगाई नई उम्मीदपंजाब के किसानों ने इस बार किया कमाल

पराली जलाने के ल‍िए बदनाम रहे पंजाब के क‍िसानों ने इस बार हालात बदल द‍िए हैं. प‍िछले साल के मुकाबले यहां पराली जलने के मामले करीब 55 फीसदी कम हो गए हैं. भारतीय कृष‍ि अनुसंधान पर‍िषद (ICAR) की ओर से जारी आंकड़ों के इस साल मुताब‍िक 15 स‍ितंबर से 27 अक्टूबर तक सूबे में 890 जगहों पर पराली जलाई गई है, जबक‍ि 2024 में इसी अवध‍ि के दौरान 1995 केस सामने आए थे. साल 2020 में इसी अवध‍ि के दौरान पंजाब में र‍िकॉर्ड 20,910 जगहों पर पराली जली थी. पंजाब के क‍िसान लगातार पराली जलाना कम कर रहे हैं. इसल‍िए वो आलोचना नहीं बल्क‍ि तारीफ के योग्‍य हैं.

खत्‍म हो जाती उर्वरा शक्ति 

कृष‍ि वैज्ञान‍िकों के मुताब‍िक एक एकड़ में पराली जलाने से 12.5 क‍िलो फास्फोरस, 20 क‍िलो नाइट्रोजन और 30 किलो पोटैशियम का नुकसान हो जाता है. खेत की उर्वरा शक्त‍ि कम होती है. म‍ित्र जीव खत्म हो जाते हैं. इस तरह पराली जलाने वाले क‍िसान अपना शुद्ध नुकसान करते हैं. ज्यादातर क‍िसान अब इस बात को समझने लगे हैं, इसल‍िए उन्होंने पराली जलाना करीब बंद कर द‍िया है. सरकारी एक्शन का डर भी है. कुल म‍िलाकर पराली जलाने की घटनाएं कम हो रही हैं, यह कृष‍ि, क‍िसान और पर्यावरण सबके ल‍िए अच्छा है.

क्‍या कहते हैं ICAR के आंकड़ें 

विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार सरकार की सख्ती, सब्सिडी वाले बेलर और कंप्रेसर की बेहतर उपलब्धता, तथा किसानों को वैकल्पिक उपायों के प्रति जागरूक करने से फर्क पड़ा है.  पराली जलाने की घटनाओं पर नजर रखने के लिए सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग का इस्तेमाल किया जाता है. यह फसल अवशेष जलाने की निगरानी के लिए तय नेशनल स्‍टैंडर्ड प्रोटोकॉल के अनुसार ही है. 27 अक्टूबर 2025 को छह राज्यों में कुल 189 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं. 

अगर हम पिछले पांच साल के ट्रेंड पर नजर घुमाएंगे तो पता चलता है कि पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में वाकई कमी आई है. आंकड़ें भी इसकी गवाही देते हैं. 15 सितंबर से 27 अक्‍टूबर 2020 से अगर हम इस साल तक इन्‍हीं तारीखों के आंकड़ों को देखें तो वो कुछ इस तरह से नजर आते हैं.  

2025: 890 
2024: 1995
2023: 4059
2022: 8147
2021: 6742
2020: 20910 

पराली मैनेजमेंट पर खर्च  

धान की पराली का मैनेजमेंट करने के ल‍िए केंद्र सरकार पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली पर व‍िशेष ध्यान दे रही है. इन राज्यों में 2018-19 से फसल अवशेष मैनेजमेंट स्कीम चलाई जा रही है. ज‍िसके तहत 28 फरवरी 2025 तक 3698.45 करोड़ रुपये जारी क‍िए गए हैं. इसकी मदद से इन सूबों में पराली मैनेजमेंट के ल‍िए 41,900 से अधिक सीएचसी यानी कस्टम हायर‍िंग सेंटर बनाए गए हैं. इन सीएचसी और व्यक्तिगत किसानों को 3.23 लाख से अधिक पराली मैनेजमेंट मशीनें मुहैया कराई गई हैं. ज‍िनमें सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम, हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, स्मार्ट सीडर, सरफेस सीडर, जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, बेलर और स्ट्रॉ रेक आदि शाम‍िल हैं. पराली मैनेजमेंट के ल‍िए पंजाब को सबसे ज्यादा पैसा और मशीनें मुहैया करवाई गई हैं.

किसानों में बढ़ रही जागरुकता 

काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) की रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब के करीब आधे किसान  पराली मैनेजमेंट के लिए रेसिड्यू मैनेजमेंट (CRM) मशीनों का इस्तेमाल करते हैं. वो मशीन के अच्छे से चलने और पेस्ट कंट्रोल के लिए कुछ ढीली धान की पराली जलाते हैं. रिपोर्ट में पाया गया है कि सर्वे में शामिल 58 फीसदी किसानों ने सुपर सीडर और रोटावेटर जैसी मशीनों का इस्तेमाल करके पराली को मैनेज किया. रिपोर्ट के अनुसार पराली जलाने को खत्म करने में अभी भी थोड़ी मुश्किल हैं जैसे कि CRM मशीनों तक समय पर पहुंच, उन्हें इस्तेमाल करने की सही ट्रेनिंग की कमी और उनका इस्तेमाल करके बोए गए गेहूं पर कम पैदावार और पेस्ट अटैक को लेकर गलतफहमियां. लेकिन इसके बाद भी किसान लगातार जागरूक हो रहे हैं. 

कौन सा तरीका पसंद कर रहे किसान 

पराली मैनेजमेंट के तरीके, जैसे पराली को चारे या एनर्जी प्रोडक्शन के लिए इस्तेमाल करना, फसल अवशेष बेचने से एक्स्ट्रा इनकम की संभावना की वजह से पॉपुलर हो रहा है. CEEW की रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वे में शामिल लगभग 33 परसेंट किसानों ने फसल अवशेष मैनेजमेंट के उस तरीके को चुना जो बेहद आसान था और जिनमें एक्‍स्‍ट्रा इनकम की भी संभावना थीं. विशेषज्ञों के अनुसार पराली को मिट्टी में मिलाना एक मुश्किल प्रक्रिया है. वहीं उत्तर भारत में धान की कटाई का समय और गेहूं की एक ही फसल के बीच बहुत कम अंतर होता है. ऐसे में पंजाब के किसान आसान विकल्‍पों की तरफ मुड़ रहे हैं क्योंकि इससे काम करना आसान हो जाता है और ज्‍यादा इनकम की गुंजाइश होती है. 

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