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द‍िसंबर-जनवरी में भी गैस चैंबर बनती है द‍िल्ली, तो नवंबर तक ही जलने वाली पराली प्रदूषण के ल‍िए कैसे ज‍िम्मेदार

द‍िसंबर-जनवरी में भी गैस चैंबर बनती है द‍िल्ली, तो नवंबर तक ही जलने वाली पराली प्रदूषण के ल‍िए कैसे ज‍िम्मेदार

नवंबर में अमूमन पराली जलाने के मामले बंद हो जाते हैं तो आख‍िर द‍िसंबर और जनवरी में कैसे द‍िल्ली की हवा प्रदूषण की वजह से दम घाेंटू बन जाती है.

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द‍िल्ली के प्रदूषण के ल‍िए स‍िर्फ पराली का धुआं नहीं ज‍िम्मेदार- फोटो फ्रीप‍िक द‍िल्ली के प्रदूषण के ल‍िए स‍िर्फ पराली का धुआं नहीं ज‍िम्मेदार- फोटो फ्रीप‍िक

द‍िल्ली के प्रदूषण पर मैराथन राजनीत‍ि जारी है. अक्टूबर शुरु होते ही द‍िल्ली गैस चैंबर बननी शुरू हो जाती है. इसके साथ ही प्रदूषण को लेकर राजनीत‍िक आरोपों का दौर भी शुरू हो जाता है. द‍िल्ली में प्रदूषण पर राजनीत‍िक आरोप प्रत्यारोपों का ये स‍िलस‍िला बीते कई सालों से चल रहा है.

वहीं इन राजनीत‍िक आरोप प्रत्यारोप का सार न‍िकाले तो द‍िल्ली एनसीआर के प्रदूषण के ल‍िए पराली के धुएं को ज‍िम्मेदार बताया जाता है और इसका दोष क‍िसानों पर मढ़ द‍िया जाता है. मसलन, क‍िसानों की पराली जलाने से प्रदूषण होने का एजेंडा सेट क‍िया जाता है. थोड़ी देर के लि‍ए इस एजेंडा सेट करने की इन राजनीत‍िक कोश‍िशों को सच मान भी ल‍िया जाए तो बड़ा सवाल ये उठता है क‍ि पराली तो नवंबर तक ही चलती है. तो ऐसे में द‍िसंबर जनवरी में भी द‍िल्ली गैस चैंबर क्यों बनती है. 

पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की पूरी कहानी को व‍िस्तार से समझते हैं साथ ही ये भी जानते हैं क‍ि नवंबर में अमूमन पराली जलाने के मामले बंद हो जाते हैं तो आख‍िर द‍िसंबर और जनवरी में कैसे द‍िल्ली की हवा प्रदूषण की वजह से दम घाेंटू बन जाती है. साथ ही ये भी जानने की कोश‍िश करते हैं क‍िसानों को प्रदूषण के ल‍िए कसूरवार ठहराना क‍ितना सही है और क‍ितना गलत...

पहले पराली का गण‍ित 

द‍िल्ली के प्रदूषण और पराली के धुएं के कनेक्शन को समझने के ल‍िए जरूरी है क‍ि पहले पराली का गण‍ित समझा जाए. असल में 15 स‍ितंबर तक पंजाब में धान की फसल पकनी शुरू हो जाती है. मतलब धान कटाई भी शुरू हो जाती है. इसके साथ ही पंजाब से धान की पराली में आग लगने के मामले सामने आने लगते हैं. अगर प‍िछले 5 साल के आंकड़ों को देखा जाए तो अक्टूबर के महीने में पराली जलाने के मामलों में तेजी से बढ़ोत्तरी होती है और नवंबर के शुरुआती 10 से 15 द‍िन पराली में आग लगाने की घटनाओं का पीक होता है.

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इस दौरान दीपावली भी होती है और द‍िल्ली गैस चैंबर बन जाती है, लेक‍िन, प‍िछले साल के आंकड़ों को देखे तो पंजाब में ही पराली जलाने की घटनाएं कम हो रही है. मसलन, 2020 में पंजाब में पराली जलाने के 76 हजार मामले सामने आए थे, जबक‍ि इस साल अभी तक पराली जलाने के लगभग 30 हजार मामले सामने आए हैं.

सीधी सी बात है पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं प‍िछले साल की तुलना में कम हुई है और इस बार प‍िछले सालों की तुलना में दीपावाली पर पटाखे भी कम फोड़े गए हैं. इसके मायने न‍िकाले जाएं तो समझ आता है क‍ि पराली के धुएं के ब‍िना भी द‍िल्ली में प्रदूषण है.

हालांक‍ि ये भी सच है क‍ि द‍िल्ली के प्रदूषण में पराली के धुएं की ह‍िस्सेदारी है, लेक‍िन प्रदूषण काे लेकर पराली के धुएं और क‍िसानों पर ज‍िस तरीके से राजनीत‍ि होती है. वह जरूरत से ज्यादा है. द‍िल्ली के प्रदूषण के ल‍िए द‍िल्ली के अंदर का उत्सर्ज‍ित होने वाला प्रदूषण बड़ा ज‍िम्मेदार है. 

द‍िसंबर और जनवरी में भी दम घाेंटू होती है द‍िल्ली की हवा 

द‍िल्ली के प्रदूषण के ल‍िए पराली का धुआं ज‍िम्मेदार है या पराली का धुआं द‍िल्ली के प्रदूषण को और अध‍िक बढ़ाता है, इस फर्क को द‍िसंबर और जनवरी में प्रदूषण की वजह से दम घोंटू होने वाली हवा के माध्यम से समझा जा सकता है.

असल में अक्टूबर से नवंबर तक पराली जलती है. इसी समय ठंड भी दस्तक देती और हवा की गत‍ि कम होती है. तो वहीं द‍ीपावली में पटाखे भी जलते हैं. तो वहीं गाड़‍ियों और उद्योगों के साथ म‍िलकर पराली का धुआं प्रदूषण बढ़ता है.

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नवंबर के बाद, जब पराली का धुआं खत्म हो जाता है, लेक‍िन ठंड बढ़ने से गाड़‍ियों और उद्योगों से न‍िकलने वाला प्रदूषण द‍िसंबर और जनवरी में द‍िल्ली की हवा का दम घोंटू बनाता है. सीपीसीबी के प‍िछले 5 साल के आंकड़ों को देखा जाए तो नवंबर में जहां औसतन 7 से 10 द‍िन द‍िल्ली की हवा बेहद खराब से गंभीर की श्रेणी में रहती है तो वहीं द‍िसंबर और जनवरी में भी औसतन 5 से 7 द‍िन द‍िल्ली की हवा बेहद खराब से गंभीर की श्रेणी में रहती है.

वहीं द‍िल्ली के प्रदूषण के कारकों पर बात की जाए तो द‍िल्ली के प्रदूषण में वाहनों से न‍िकलने वाले धुएं की सबसे अध‍िक ह‍िस्सेदारी है. पृथ्वी व‍िज्ञान मंत्रालय की प्रदूषण न‍िगरानी संस्थान सफर ने द‍िल्ली के प्रदूषण को लेकर 2018 में एक र‍िपोर्ट तैयार की थी. सफर की र‍िपोर्ट के मुताब‍िक द‍िल्ली के प्रदूषण में वाहनों के धुएं की ह‍िस्सेदारी 40 फीसदी से अध‍िक है, जबक‍ि इसके बाद उद्याेगों से उठने वाले धुएं की 24 फीसदी की ह‍िस्सेदारी है, जबक‍ि हवा के बहाव के साथ आने वाले प्रदूषण की कुल प्रदूषण में मात्र 10 फीसदी की ह‍िस्सेदारी है. वहीं सफर ने अपने र‍िपोर्ट में द‍िल्ली के प्रदूषण का तुलनात्मक अध्ययन भी क‍िया था, ज‍िसमें सफर ने साल 2010 और साल 2018 के प्रदूषण की तुलना की थी. सफर की इस तुलनात्मक र‍िपोर्ट के अनुसार 2010 की तुलना में 2018 में वाहनों और उद्योगों से होने वाले प्रदूषण में 40 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है, जबक‍ि हवा के साथ आने वाले प्रदूषण में 20 फीसदी की कमी आई है.