पराली जलना आधा, पॉल्यूशन डबल... अब तो जाग जाओ दिल्ली

पराली जलना आधा, पॉल्यूशन डबल... अब तो जाग जाओ दिल्ली

जितनी जल्दी हो सके हमें यह बात मान लेनी होगी कि दिल्ली में प्रदूषण की समस्या पराली नहीं है. पराली से इतर कोई गंभीर मर्ज है जो दिल्ली को धुएं और स्मॉग में झोंके जा रहा है. अगर पराली असली विलेन होती तो हरियाणा-पंजाब का एक्यूआई दिल्ली की तुलना में इतना कम क्यों होता जबकि हवा की गति में दोनों जगहों पर कोई भारी अंतर नहीं है.

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पराली जलना आधा, पॉल्यूशन डबल... अब तो जाग जाओ दिल्लीक्या दिल्ली में पराली ही वायु प्रदूषण की असली वजह है?

तारीख है 24 नवंबर. दोपहर का समय है. 12 बजे का डेटा हमारे सामने है. संभव है कि जिस समय आप इन लाइनों को पढ़ या देख रहे हों, दिन या समय बदल गया हो. लेकिन हमारे लिए जरूरी है कि किसी खास दिन को चुनकर प्रदूषण का विश्लेषण करें. वजह यह है कि भले ही प्रदूषण के मामले में देश के कुछ और शहरों के हालात बहुत खराब हों. लेकिन फोकस दिल्ली पर रहता है. रहेगा भी, आखिर राजधानी है. यहां देश का सुप्रीम कोर्ट है, जहां हर साल अक्टूबर-नवंबर में लगातार इस पर बात होती है.. इस शहर के शहरी लोगों की आम राय यही है कि इस धुएं के लिए किसान जिम्मेदार हैं. इसलिए किसी एक खास दिन और खास समय का डेटा लेकर विश्लेषण की जरूरत थी.

तो एक बार फिर अपनी पहली लाइन दोहराना चाहता हूं. आज दिन है शुक्रवार, तारीख 24 नवंबर, डेटा है 12 बजे का. दिल्ली में जहांगीरपुरी को हमने चुना है. उसकी भी खास वजह है. यह जगह दिल्ली का इंडस्ट्रियल एरिया है. दूसरा, हरियाणा यहां से बहुत दूर नहीं है. वही हरियाणा, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि इस राज्य या पंजाब से होती हुई प्रदूषित हवाएं हमारे ‘साफ-सुथरे’ दिल्ली की हवा खराब करती हैं.

धुआं-प्रदूषण में भेद क्यों?

...तो 24 नवंबर को दिन में 12 बजे जहांगीरपुरी का एक्यूआई लेवल 886 है. यह हम सब जानते ही हैं कि 400 से ऊपर सीवियर कैटेगरी मानते हैं. इस वक्त दिल्ली के बहुत कम इलाकों में 400 से नीचे एक्यूआई है. जहां कम है भी, वो भी 350 से 400 के बीच है.

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सुप्रीम कोर्ट में दलील दे रहे वकीलों, फैसला कर रहे जज या किसी भी आम नागरिक के लिए यह समझना जरूरी है कि नवंबर महीने के अंत में फसल की कटाई का भी अंतिम समय होता है. यह वो वक्त होता है, जब पराली जलना लगभग खत्म हो रहा होता है. ज्यादातर जगह बुवाई चल रही होती है. इसको भी आंकड़ों में समझने की कोशिश करते हैं. गुरुवार यानी 23 नवंबर को सैटेलाइट के जरिए पंजाब में पराली जलाने की 205 घटनाएं रिकॉर्ड हुईं. इससे एक दिन पहले यानी बुधवार को यह संख्या 512 थी. हरियाणा में गुरुवार को 23 घटनाएं सामने आईं. यही दो राज्य हैं, जहां के किसानों पर दिल्ली की हवा खराब करने का सबसे ज्यादा आरोप लगता है.

बात समझे अदालत

काश, सुप्रीम कोर्ट से लेकर आम आदमी तक यह बात समझ या समझा सकें कि पराली जलना इतना कम हो गया तो प्रदूषण कम क्यों नहीं हो रहा? और अगर अब भी प्रदूषण कम नहीं हो रहा, तो हवा में खराबी की सही वजहों पर रोक लगाई जाए, न कि किसानों को विलेन बनाया जाए.

बार-बार एक आंकड़ा आता है, लेकिन उसे अनदेखा कर दिया जाता है. इसलिए जरूरी है कि उस पर और बात हो. साल में पराली की वजह से प्रदूषण का प्रतिशत करीब चार है. अभी जब पराली जलाने का सीजन है, तब भी दिल्ली की हवा में इसका प्रतिशत आठ के करीब है. Decision Support System के मुताबिक 13 फीसदी प्रदूषण ट्रांसपोर्ट का है, जिसमें हमारी आपकी गाड़ियों से लेकर बस और ट्रक शामिल हैं. 42.6 फीसदी अन्य वजहों से हैं. इनमें सड़क की धूल से लेकर कंस्ट्रक्शन और इंडस्ट्रीज शामिल हैं. इसी वजह से हमने इंडस्ट्रियल एरिया जहांगीर पुरी के एक्यूआई लेवल से बात शुरू की थी. 

धुएं का ऐसे निकलेगा हल

इसी जहांगीरपुरी की पूसा क्षेत्र से तुलना कर लेते हैं. वहां 24 नवंबर को 12 बजे एक्यूआई 342 है, जो इंडस्ट्रियल एरिया नहीं है. तो हम ये मानें कि पंजाब और हरियाणा की हवा सिर्फ जहांगीर पुरी या आनंद विहार में इंटर स्टेट बस टर्मिनल को तो जोरदार अटैक करती है. लेकिन पूसा और शांति पथ जैसी जगहों पर रहम बरतने लगती है? एक लेवल और आगे चलते हैं. पंजाब में जहां पराली जल रही है, वहां के शहर का आंकड़ा ले लेते हैं. पटियाला का एक्यूआई 176 है. चंडीगढ़ में 166. हरियाणा के पंचकूला में 110 है. दिल्ली की तरफ बढ़ते हुए रोहतक पहुंचते हैं तो एक्यूआई लेवल आता है 223. 

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पूरी चर्चा का मतलब यही है कि हमारा फोकस गलत है. हम एक महीने की समस्या को थोपकर बाकी 11 महीने और रहने वाले दानव से आंख चुराना चाहते हैं. हमारी दलीलें गलत हैं, जो किसान सेंट्रिक हैं. जब तक फोकस सही नहीं होगा, हर साल सिर्फ अक्टूबर-नवंबर में रस्म अदायगी होगी. हल कभी नहीं निकलेगा.(लाइव एक्यूआई लेवल का डेटा सोर्स दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड है)

 

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